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  • जिंदगी पर हरिगितिका छंद

    Submit : 16 Sep 2022, 10:56 AM
    Email : [email protected]

    1. रचनाकार का नाम
      दूजराम साहू अनन्य
    2. सम्पर्क नम्बर
      8085334535
    3. रचना के शीर्षक
      जीनगी
    4. रचना के विधा
      हरिगितिका छंद
    5. रचना के विषय
      जिनगी
    6. रचना
      हरिगितिका छंद

    ये जिंदगी फोकट गवाँ झन , बिरथा नहीं जान दे ।
    आँखी अभी मा खोल तयँ हा, आघू डहर ध्यान दे ।
    तन फूलका पानी सही हे , बनय हाड़ा माँस के ।
    अनमोल जिंदगी कर लेवव, भरोसा नइ साँस के ।।

    दूजराम साहू अनन्य🙏🙏🙏

    1. रचनाकार का पता
      दूजराम साहू अनन्य,
      निवास -भरदाकला,
      पोष्ट- – बलदेवपुर
      जिला-खैरागढ़ ( छ.ग.)
  • अटल बिहारी वाजपेई के लिए कविता

    अटल बिहारी वाजपेई के लिए कविता

    अटल बिहारी वाजपेई के लिए कविता

    atal bihari bajpei
    अटल बिहारी वाजपेयी

    हरिगीतिका छंद
    . (मापनी मुक्त १६,१२)
    . अटल – सपूत

    श्री अटल भारत भू मनुज,ही
    शान सत अरमान है।
    जन जन हृदय सम्राट बन कवि,
    ध्रुव बने असमान है।
    नहीं भूल इनको पाएगा,
    देश का अभिमान है।
    नव जन्म भारत वतन धारण,
    या हुआ अवसान है।
    .
    हर भारत का भरत नयन भर,
    अटल की कविता गात है।
    हार न मानूं रार न ठानू ,
    दइ अटल सौगात है।
    भू भारत का अटल लाड़ला,
    आज क्यो बहकात है।
    अमर हुआ तू मरा नहीं है,
    हमको भी विज्ञात है।
    .
    भारती प्रिय पूत तुम सपूत को ,
    मात अटल पुकारती।
    जन गण मन की आवाज सहज,
    अटल ध्वनि पहचानती।
    राजनीति के दल दलदल में,
    अटल सत्य सु मानती।
    गगन ध्रुव या धरा ध्रुव समान
    सुपुत्र है स्वीकारती।
    .
    सपूत तू धरा रहा पुत्र सम,
    करि नहीं अवमानना।
    अब देवों की लोकसभालय,
    प्रण सपूती पालना।
    अटल गगन मे इन्द्रधनुष रंग,
    सत रंग पहचानना।
    अमर सपूत कहलाये अवनि ,
    मेरी यही कामना।
    . _______
    बाबू लाल शर्मा ‘बौहरा’

  • हे शारदा तुलजा भवानी (सरस्वती-वंदना)

    हे शारदा तुलजा भवानी (सरस्वती-वंदना)

    सरस्वती
    मां शारदा
    • तमसो मा ज्योतिर्गमय* हरिगीतिका

    हे शारदा तुलजा भवानी, ज्ञान कारक कीजिये।…
    अज्ञानता के तम हरो माँ, भान दिनकर दीजिये।…

    है प्रार्थना नवदीप लेकर, चल पड़े जिस राह में।
    सम्मान पग चूमें पथिक के, हर खुशी हो बाँह में।।
    उत्तुंग पथ में डाल डेरा, नभ क्षितिज की चाह में।
    मन कामना मोती चमकते, चल चुनें हम थाह में।

    जो अंधविश्वासी बनें हैं, मूढ़ की सुध लीजिये।…
    अज्ञानता के तम हरो माँ, भान दिनकर कीजिये।…

    सारांश सुखमय सा लिए जन, त्याग दें छल द्वेष को।
    पट मन तिमिर को मूल मेंटे, ग्राह्य ग्राहक शेष को।
    विज्ञान का वरदान जानें, अंक से अवधेश को।
    सत्कर्म साधक मर्म ज्ञानी, भा रहे रत्नेश को।

    उत्थान जन कल्याण कर शिव, नाथ हाला पीजिये।…
    अज्ञानता के तम हरो माँ, भान दिनकर कीजिये।…

    आरोग्य सेवक स्वस्थ होंगे, लाभप्रद तन योग से।
    तज तामसिक भोजन रहेंगे, मुक्त नाशक रोग से।
    संज्ञान अधिकारी रखे तब, दूर शोषण भोग से।
    ज्ञानेंद्र बन इतिहास गढ़ता, देखिये संजोग से।

    सत्संग की हो बारिशें तो, प्रेमपूर्वक भीजिये।…
    अज्ञानता के तम हरो माँ, भान दिनकर कीजिये।…

    === डॉ ओमकार साहू मृदुल===