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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर० ओमकार साहू के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • महाभारत पर दोहा : 10 पात्रों की व्याख्या

    महाभारत पर दोहा : 10 पात्रों की व्याख्या

    महाभारत पर दोहा संग्रह। अर्जुन, भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, द्रौपदी और अन्य पात्रों की जीवन गाथाओं को संक्षेप में काव्य रूप में जानें। जानिए इन महाकाव्य नायकों की विशेषताएं और शिक्षाएं।

    महाभारत भारत का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है। यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। 

    महाभारत पर दोहा संग्रह

    महाभारत पर दोहा

    कौरव पर दोहा

    अनुचित हठ अंकुश करें, संतानों की आप।
    कौरव सम असहाय हो, हठी पुत्र अभिशाप।।

    कर्ण पर दोहा

    अस्त्र शस्त्र विद्या धनी, खड़े अधर्मी साथ।
    निष्फल सब वरदान हों, शक्ति रहित दो हाथ।।

    अश्वत्थामा पर दोहा

    विद्या बल करने लगे, शाश्वत जग का नाश।
    चाह असंगत पुत्र की, बाँध ब्रह्मा के पाश।।

    भीष्म पितामह पर दोहा

    भीष्म प्रतिज्ञा कीजिये,सोच धर्महित ज्ञान।
    वरन अधर्मी पग तले, सहन करो अपमान।।

    दुर्योधन पर दोहा

    शक्ति राज्य अरु संपदा, दुराचार सह भोग।
    स्वयं नाश दर्शन करे, यही नियत संयोग।।

    धृतराष्ट्र पर दोहा

    नेत्रहीन के हाथ में, मुद्रा मदिरा मोह।
    सर्वनाश निश्चित करे, सत्ता काया खोह।।

    अर्जुन पर दोहा

    चंचल मन विद्या रखें, बाँध बुद्धि की डोर।
    विजय सदा गांडीव दे, जयकारे चहुँओर।।

    शकुनि पर दोहा

    द्वेष कपट छल छोड़िए, कूटनीति की दाँव।
    सफल सुखद संभव कहाँं, शूल वृक्ष की छाँव।।

    युधिष्ठिर पर दोहा

    धर्म कर्म पथ में रहें, पालन प्रतिपल नाथ।
    अविजित जग में धर्म है, विजय तुम्हारे हाथ।।

    श्री कृष्ण पर दोहा

    धर्म न्याय संगत रहें, सोच प्रथम परमार्थ।
    चक्र सुदर्शन थाम कर, करें कर्म चरितार्थ।।

    महाभारत पर दोहा के अर्थ

    महाभारत के पात्रों पर आपके द्वारा प्रस्तुत दोहों के अर्थ इस प्रकार हैं:

    1. कौरव
      अनुचित हठ और जिद से अपनी संतानों पर नियंत्रण नहीं करना अनर्थकारी हो सकता है। कौरवों की तरह जिद्दी पुत्र परिवार और समाज के लिए अभिशाप होते हैं।
    2. कर्ण
      भले ही कर्ण अस्त्र-शस्त्र और विद्या में प्रवीण था, लेकिन वह अधर्म के साथ खड़ा था। उसके सारे वरदान निष्फल हो गए, और उसकी ताकत भी बेकार हो गई क्योंकि उसका साथ अधर्मी था।
    3. अश्वत्थामा
      अश्वत्थामा, जो विद्या और बल से संपन्न था, अंततः अपनी क्रोधी प्रवृत्ति से संसार का नाश करने पर उतारू हो गया। पिता की असंगत अपेक्षाओं ने उसे विनाश की ओर धकेल दिया।
    4. भीष्म पितामह
      भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा धर्म और ज्ञान के नाम पर की, लेकिन अधर्मियों के साथ जुड़ने के कारण उन्हें अपमान सहना पड़ा। उनका बलिदान उन पर भारी पड़ा।
    5. दुर्योधन
      शक्ति, राज्य और संपदा के लोभ में दुर्योधन ने दुराचार का रास्ता अपनाया। इस कारण वह स्वयं अपने नाश को सामने देखते हुए भी उसे रोक नहीं पाया, क्योंकि यही उसकी नियति थी।
    6. धृतराष्ट्र
      धृतराष्ट्र, जो नेत्रहीन थे, सत्ता और मोह के नशे में खोए हुए थे। उनका यह मोह परिवार और राज्य का सर्वनाश करने वाला साबित हुआ।
    7. अर्जुन
      अर्जुन के चंचल मन को विद्या और ज्ञान ने बांधे रखा, और जब उसने अपनी बुद्धि से गांडीव का सहारा लिया, तब उसे सर्वत्र विजय मिली और उसकी जयकार पूरे संसार में गूंज उठी।
    8. शकुनि
      शकुनि के द्वेष, छल और कपट ने उसके जीवन में विष बो दिया। छल-कपट और कूटनीति की चालों से जीवन में कोई सच्चा सुख और सफलता संभव नहीं होती, यह ठीक वैसा ही है जैसे कांटे के वृक्ष की छाया में सुख तलाशना।
    9. युधिष्ठिर
      युधिष्ठिर धर्म के पथ पर चलते हुए अपने कर्मों का पालन करते रहे। उनके धर्म के प्रति समर्पण ने उन्हें जग में अजेय बना दिया, और विजय उनके हाथ में थी क्योंकि धर्म ही सबसे बड़ी विजय है।
    10. श्रीकृष्ण
      श्रीकृष्ण का संदेश है कि धर्म और न्याय का पालन करते हुए हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचें। उन्होंने सुदर्शन चक्र उठाकर कर्म के महत्व को सिद्ध किया, जिससे धर्म की स्थापना हुई।

    महाभारत पर दोहा संग्रह महाभारत के विभिन्न पात्रों के गुण, दोष, और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं, जो हमें जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में सही दिशा दिखाते हैं।

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    देवी देवता पर कविता

  • भाषाओं के अतिक्रमण

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    भाषाओं के अतिक्रमण

    kavita

    सर्वनाम से पूछ रहे हैं, संज्ञा नाम कहाँ जाएँ…
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…

    स्वर व्यंजन के मेल सुहाने, संयुक्ताक्षर देते हैं।
    वर्ण-वर्ण की संधि देखिये, नव हस्ताक्षर देते हैं।
    हिंदी की बिंदी को देखो, अनुस्वार है छोटा सा।
    अर्ध चंद्र अनुनासिक मानों, काजर आँजे मोटा सा।

    साधारण से मिश्र वाक्य अब, पूर्ण विराम कहाँ जाएँ…
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…

    लुप्त हो रहे नामों को अब, कविता ही अपनाती है।
    काव्य जगत में उपनामों को, कुण्डलियाँ महकाती है।
    छंदों के बन्धों से सजती, शब्द प्रभाव बढ़ाती है।
    अलंकार श्रृंगार करे तो, नव उपमा गढ़ जाती है ।

    हिंदी में जो साधक बनता, वह विश्राम कहां पाये…
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…
    सिद्ध पुरोधा के नामों की, हिंदी ही महतारी है।
    कला भाव सह लोचकता है, हर भाषा में भारी है।
    “मृदुल” करे करबद्ध निवेदन, अब हिंदी की बारी है।
    नाम कमाओ इस भाषा में, हिंदी ही सरकारी है।

    नाम अमर कर लें जग में हम, नेह प्रणाम सदा पाएँ….
    भाषाओं के अतिक्रमण में, हिंदी धाम कहाँ पाएँ…

    ==डॉ ओमकार साहू मृदुल 07/10/20==

  • सलिल हिंदी – डाॅ ओमकार साहू

    सलिल हिंदी (सरसी छंद)

    *स्वर व्यंजन के मेल सुहाने, संधि सुमन के हार।*
    *रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

    वर्णों का उच्चारण करतें, कसरत मुख की जान।
    मूर्धा जिह्वा कंठ अधर सह, दंतो से पहचान।
    ध्वनियों को आधार बनाकर, करते भेद सुजान।
    *भाव सहित संदर्भ समाहित, सहज शील संचार…*
    *रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

    अभिव्यक्ति की सरल इकाई, मधुरस से है बोल।
    तत्सम अरु तद्भव कानों में, मिश्री देते घोल।
    मुहावरे गागर में सागर, सामासिक अनमोल।
    *जाति धर्म में मेल बढ़ाती, सामंजित संस्कार….*
    *रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

    अपने ही घर में गुमसुम है, देखो हिंदी आज
    अंग्रेजी उर्दू में होते, शासन के सब काज।
    लौटा दो हिंदी का गौरव, आसन सत्ता राज।
    *हिंदी भाषी राज्य बने सब,नाद करे टंकार…*
    *रस छंदों से सज धज आई, हिंदी कर श्रृंगार..*

    == डॉ ओमकार साहू *मृदुल* 14/09/22==

  • महाशिव भोले भंडारी पर गीत

    महाशिव भोले भंडारी पर गीत

    भोर वंदन-महाशिव तांटक छन्दगीत
    *******************************
    *महाकाल भोले भंडारी, बहुनामी त्रिपुरारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    सूर्या समाधि धारण करते, अष्टंगी के लाला है।
    चक्र कमण्डल गले नाग अरु, अंग वसन मृगछाला है।।
    पेशानी चंदन त्रिपुंड है, शेषनाग गर माला है।
    अखिल लोक रक्षार्थ निहित है, नीलकंठ में हाला है।।

    *भाव समागम दृश्य विहंगम, अर्ध अंग में नारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    चंद्र भाल डमरू त्रिशूल ले, जीव चराचर काशी में।
    धर्म ध्यान विज्ञात समाहित, तीन लोक अविनाशी में।।
    गोमुख प्रभु का नित्य बसेरा, तारण करती काया है।
    केश जटाएँ गंगा धारे, शंभुनाथ की माया है।।

    *भव सागर से पार लगाते, शाश्वत तारणहारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    शक्ति स्वरूपा मातु भवानी, शिवा मिलन की बेला है।
    आदि शक्ति सह शिवशंकर के, भक्त जनों की रेला है।।
    दूध शहद जल बेल धतूरा, अक्षत पुष्प चढ़ाते है।
    शंखनाद जयघोष सुनाते, गीत मांगलिक गाते हैं।

    *सोलह सावन व्रत का पालन, महारात्रि शुभकारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    ==डॉ ओमकार साहू *मृदुल*26/07/21==

  • नोनी के लाज

    नोनी के लाज

    नोनी के लाज

    beti

    *देख ले रावण दुशासन, चीर बर तइयार हे….*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    कोनला बइरी बरोबर, कोन हितवा जान हूँ।
    नातदारी के भरम मा, कोनला पहिचान हूँ।
    कोन पानी में नशा हे, कोन ला मैं छान हूँ।
    देख पाहूँ जब शिकारी, जाल ला मैं तान हूँ।

    *रोज के संसो परे हे, मोह के संसार हे…
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    आजकल के छोकरा हा, नेट ले बीमार हे।
    हाथ मोबाइल धरे हे, जेब ले देवार हे।
    बाँस जइसन हे गठनहा, देख ले खुसियार हे।
    वाह लइका तोर आघू, देवता के हार हे।

    *राधिका जाने नहीं अउ, कृष्ण जैसन प्यार हे…*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    जान डारे कोख़ बेटी, भ्रूण हत्या में मरे।
    कोख़ ले जब बाँच जाबे, नोच गिधवा कस धरे।
    हाय बेटी के लुटइया, काम ते कइसन करे।
    देख ले कलजुग जमाना, ईशवर ले नइ डरे।

    *रामजी के राज मा अब, घोर अत्याचार हे…*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    ==डॉ ओमकार साहू *मृदुल* 06/10/2021==