कबाड़ पर कविता -उपमेंद्र सक्सेना

कबाड़ पर कविता -उपमेंद्र सक्सेना सब हुआ कबाड़ था,भाग्य में पछाड़ थारास्ता उजाड़ था, सामने पहाड़ था। छल- कपट हुआ यहाँ, सो गए सभी सपनकर दिया गया दहन, मिल सका नहीं कफ़नपास के बबूल ने ,दी जिसे बहुत चुभनबेबसी दिखा रही, है यहाँ विचित्र फनस्वार्थ के कगार पर, त्याग जब गया मचललोभ- लालसा बढ़ी, लोग … Read more

एक पड़ोसन पीछे लागी – उपमेंद्र सक्सेना

एक पड़ोसन पीछे लागी आज लला की महतारी कौ, अपुने मन की बात बतइहौं एक पड़ोसन पीछे लागी, बाकौ अपुने घरि लै अइहौं। बाके मारे पियन लगो मैं, नाय पियौं तौ रहो न जाबै चैन मिलैगो जबहिं हमैं तौ, सौतन जब सबहई कौ भाबै बाके एक लली है ताको, बाप हमहिं कौ आज बताबैकेतो अच्छो … Read more

निर्धन पर अत्याचार – उपमेंद्र सक्सेना

आज यहाँ निर्धन का भोजन, छीन रहा धनवान हैहड़प रहा क्यों राशन उनका, यह कैसा इंसान है। हमने देखा नंगे भूखे, राशन कार्ड बिना रहते हैंहाय व्यवस्था की कमजोरी, जिसको बेचारे सहते हैंजिसने उनका मुँह खोला है, वह खुद उनका पेट भरेगाअनुचित लाभ उठाने वालों, न्याय स्वयं भगवान करेगा जो सक्षम है आज किसलिए, करता … Read more

होबै ब्याहु करौ तइयारी – उपमेंद्र सक्सेना

होबै ब्याहु करौ तइयारी चलिऔ संग हमारे तुमुअउ, गौंतर खूब मिलैगी भारीराम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी। माँगन भात गई मइके बा, लेकिन नाय भतीजी मानीबोली मौको बहू बनाबौ, नाय करौ कछु आनाकानीजइसे -तइसे पिंड छुड़ाओ, खूबै भई हुँअन पै ख्वारीराम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी। पहिना … Read more

जब विपदा आ जाए सम्मुख – उपमेंद्र सक्सेना

जब विपदा आ जाए सम्मुख जिसका साथ निभातीं परियाँ, मनचाहा सुख पाता हैजब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता है। क्या है उचित और क्या अनुचित, बनी न इसकी परिभाषादुविधा में जो फँसा कभी भी, टूटी उसकी अभिलाषाजिसका मन हो लगा गधी में, वह उसको अपनाता हैजब विपदा आ जाए सम्मुख, कोई नहीं बचाता … Read more