कटु वचन पर बौहरा के दोहे (Bhouhara’s Dohe)
कटु वचनों से हो चुके, बहुत बार नुकसान।
कौरव पाण्डव युद्ध से,खूब हुआ अवसान।।
कौरव पाण्डव युद्ध से,खूब हुआ अवसान।।
रसना नाहीं बावरी, कहती मन के भाव।
मन को वश में राखिए,उत्तम रखो स्वभाव।।
मन को वश में राखिए,उत्तम रखो स्वभाव।।
मिष्ठ वचन मिष्ठान्न से, जैसे भगवन भोग।
मधुर गीत संगीत से, भोर भजन संयोग।।
मधुर गीत संगीत से, भोर भजन संयोग।।
कटु वचनी आरोप से, हुआ न कागा मुक्त।
पिक सम वचन उचारिये,हो सबके उपयुक्त।।
पिक सम वचन उचारिये,हो सबके उपयुक्त।।
घाव भरे तलवार के, समय औषधी संग।
कटु वचनों के घाव से, जीवन रस हो भंग।।
कटु वचनों के घाव से, जीवन रस हो भंग।।
कटु वचन से है भले, रहना मौन सुजान।
कूकर भौंकें खूब ही, हाथी मौन प्रमान।।
मृदु मित सत बोलो सदा,उत्तम सोच विचार।
संगत सत्संगी रखो, उपजे नहीं विकार।।
संगत सत्संगी रखो, उपजे नहीं विकार।।
अपनेपन के भाव से, कहना अपनी बात।
शब्द प्रभावी बोल कर, उद्वेलित जज्बात।।
शब्द प्रभावी बोल कर, उद्वेलित जज्बात।।
वाणी मे मधु घोल कर, बोलो मन संवाद।
हृदय पटल सुरभित रहे,होगा नहीं विवाद।।
हृदय पटल सुरभित रहे,होगा नहीं विवाद।।
औषध कटु मीठे वचन, रोगी कर उपचार।
सार सत्य सर्वस सुने, हो जग का उपकार।।
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✍©
बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
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✍©
बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
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