गुरु की महिमा कोन जान पाया है
गुरु को भगवान का दूजा रूप बताया है
आप हमें डांटते हैं पीटते हैं
आप जीवन का सार सिखाते हैं
आप की प्रवृत्ति जैसे कुम्हार
पीटता है घड़े को देने को आकार
क्षति न पहुंचे तो देता है आधार
मार में ही तो छिपा है आप का प्यार
अगर किसी से एक अक्षर भी शिखा हो
जिसके आदर में सर झुक जाता हो
वही गुरु है।।
आपसे भेट को हर पल तत्पर रहता हूं
आपके चरणों में मेरा सादर प्रणाम करता हूं
©Mr.Agwaniya
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