Month October 2019

दिखा दे अपनी मानवता- शशिकला कठोलिया

दिखा दे अपनी मानवता लेकर कोई नहीं आया ,जीवन की अमरता ,क्षणभंगुर संसार में ,दिखा दे अपनी मानवता । देशकाल जाति पाति की ,दीवारों को तोड़कर ,छुआछूत ऊंच नीच की ,सबी विविधता को हर ,हर इंसान के मन से ,मिता…

मैं हूं एक लेखनी-शशिकला कठोलिया

मैं हूं एक लेखनी मैं हूं एक लेखनी ,क्यों मुझे नहीं जानता ,निरादर किया जिसने ,जग में नहीं महानता।जिसने मुझे अपनाया ,हुआ वह बड़ा विद्वान ,जिसने किया आदर ,मिला यश और सम्मान ,मेरे ही द्वारा हुआ ,रचना महाभारत रामायण ,साहित्यो…

वर्षा ऋतु पर कविता -हरीश पटेल

वर्षा ऋतु पर कविता आज धरा भी तप्त हुई है।हृदय से शोले निकल पड़े हैं।।कण-कण अब करे पुकार ।आ जाओ वर्षा एक बार।। प्यास अब उमड़ चुकी है ।जिंदगी को बेतरतीब कर विक्षिप्त पड़ा है।।तुम पहली बूंद बन कर आ…

मन करता है कुछ लिखने को-अमित कुमार दवे

मन करता है कुछ लिखने को जब भी सत्य के समीप होता हूँ, असत्य को व्याप्त देखता हूँ ,शब्द जिह्वा पर ही रुक जाते हैं, मन करता है…..कुछ लिखने को ।। वाणी से गरिमा गिरने लगती है, लज्जा पलकों से हटने लगती है…

Jai Sri Ram kavitabahar

चित चोर राम पर कविता / रश्मि

चित चोर राम पर कविता / रश्मि चित चोर कहो , न कुछ और कहो। मर्यादा पूरूषोत्तम है । हे सखी !सभी जो मन भायेवो मनभावन अवध किशोर कहो। चित चोर…….. है हाथ धनुष मुखचंद्र छटा, लेने आये सिय हाथ यहां। तारा अहिल्या  को जिसने हे सखि…

आत्महंता का अधिकार -आर आर साहू

आत्महंता का अधिकार जहाँ सत्य भाषण से पड़ जाता संकट में जीवन।वहाँ कठिन है कह पाना कवि की कविता का दर्शन।। गुरु सत्ता पे शासन की सत्ता जब होती हावी।वहाँ जीत जाता अधर्म,धर्म की हानि अवश्यंभावी।। जो दरिद्र है,वही द्रोण…

आर आर साहू-भावभरे दोहे

भावभरे दोहे प्रकृति प्रदत्त शरीर में,नर-नारी का द्वैत।प्रेमावस्था में सदा,है अस्तित्व अद्वैत।। पावन व्रत करते नहीं,कभी किसी को बाध्य।व्रत में आराधक वही, और वही आराध्य ।। परम्पराएँ भी वहाँ,हो जाती निष्प्राण।जहाँ कैद बाजार में,हैं रिश्तों के प्राण।। एक हृदय से…

मानवता पर कविता -भुवन बिष्ट

      मानवता पर कविता पावन मानवता का संगम,           हो नव आशाओं का संचार। नई सोच व नई उमंग से,             मानवता की हो जयकार।।  प्रभु नित नित वंदन करूँ जयकार।।……   प्रेम…

मेरा जीवन बना गुल्ली डंडा की परिभाषा-बाँके बिहारी बरबीगहीया

मेरा जीवन बना गुल्ली डंडा की परिभाषा सुबह सवेरे घर से भाग जाना पेड़ की टहनी से गुल्ली डंडा बनाना अमीरी -गरीबी ना छूत अछूत सबके निश्छल हृदय मिल के रहना खाना कितना सुख चैन था ना थी कोई निराशा मेरा जीवन बना गुल्ली डंडा…

न आंसू न आहें न कोई गिला है-नीतू ठाकुर

न आंसू न आहें न कोई गिला है न आंसू ,न आहें,न कोई गिला है,लिखा भाग्य में जो वही तो मिला है,पुकारूँ किसे पूछती है हथेली,कभी जो दिया था उसी का सिला है। उजाड़ा गया बाग ऐसे हमारा,कभी जो बना…