भाग्य मुकद्दर नसीब पर कविता
भाग्य/मुकद्दर/नसीब पर कविता- सोरठा छंद कर्म लिखे का खेल, भाग्य भूमि जन देश का।कौरव कुल दल मेल, करा न माधव भी सके।। लक्ष्मण सीताराम, भाग्य लेख वनवास था।छूट गये धन धाम, राजतिलक भूले सभी।। पांचाली के भाग्य, पाँच पति जगजीत थे।भोगे वन वैराग्य, कृष्ण सखी जलती रही।। कहते यही सुजान, भाग्य बदलते कर्म से।जग में … Read more