अंतर्द्वंद्व बड़ा अलबेला

द्वंद्वभरी जीवन की राहें,भटक रहे तुम मन अलबेले!
संतोषी मग  पकड़ बावरे,इस जीवन के बड़े झमेले!!


तृप्त हुआ तू नहीं आज तक,मनमर्जी रथ को दौड़ाया!
चौराहे पर फिरा भटकता,ज्यों कुंजर वन में बौराया!
दृग ऊपर माया का पर्दा,देखे सपने सदा नवेले!
संतोषी मग पकड़ बावरे,इस जीवन के बड़े झमेले!!……(१)


पैसा पैसा जोड़ बैंक में,मन ही मन में तू इतराया!
नाते रिश्ते हुए बैगाने,बेटे पोतों ने ठुकराया!
अंतसमय उलझा क्यों मनवा,जा बैठे क्यों आज अकेले!
संतोषी मग पकड़ बावरे,इस जीवन के बड़े झमेले!!…….(२)


व्याकुल पंछी फिरा भटकता,दौड़ धूप में समय गँवाया!
बँगला गाड़ी नौकर चाकर,बिरथा बातों में भरमाया!
पल भी याद किया जो हरि को,’भावुक’ मनवा राम सुमिरले!
संतोषी मग पकड़ बावरे,इस जीवन के बड़े झमेले!!……(३)


~~~भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’


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