अपने लिये जीना (अदम्य चाह)-शैली

“अदम्य चाह”, शीर्षक की कविता, एक मध्यमवर्ग की भारतीय स्त्री की दिली हसरत है। बेटी जन्म से बंधनों में रहती है, परिवार, समाज के सैकड़ों पहरे और प्रश्न झेलती है, शादी के बाद तो पहरे और भी बढ़ जाते हैं। मेरा स्वयं का मन एक स्वच्छंद जीवन के लिए तरसता है, मुझे लगता है कि मैने स्त्री मात्र की हार्दिक इच्छा को शब्द दिये हैं.

अपने लिये जीना (अदम्य चाह)-शैली

मैं चाहती हूं,
अपने लिये जीना
सिर्फ़ अपने लिये।

जवाबदेह होना
न हो कोई बंधन
बस मैं और मेरा स्वतंत्र जीवन।

कोई रोकने-टोकने वाला न हो
कोई कटघरे में खड़ा करने वाला न हो
कोई ये न पूछे कहाँ थी?
क्यों थी?
क्या कर रही थी?
मैं सिर्फ मेरे लिए जवाब दूँ।

मैं चाहूं तो गुनाह कुबूल करूँ

या अपना बचाव करूँ
न हों प्रश्न , न उत्तर देना हो
बस स्वच्छंद मन और स्वच्छ आकाश हो
जहाँ मैं अपने पंख ख़ुद तौलूँ,
अपनी क्षमतायें या कमियाँ टटोलूँ
ऊँचे या नीचे उड़ूँ,
वहाँ तक पहुँचूँ।

जहाँ तक औकात हो
पर उसके लिए
मन में कोई परिताप न हो।
ऊँचाईयाँ छूने की कोशिश में
अगर गिरूँ तो अपनी हिम्मत से उठ सकूँ।
थकूँ या चोट खाऊँ तो ख़ुद को दोष दूँ।
उपलब्धियों पर पीठ थपथपाऊं।
असफलता पर शर्म से गड़ जाऊँ।
चोट लगे तो अपने आँसू पी जाऊँ।
घाव लगे तो उन्हें सी पाऊँ।

रोने के लिए, किसी कंधे की तलाश न हो
किसी के साथ की, मन को कोई आस न हो
कोई ‘और’, ज़िम्मेदार न हो
कोई आरोप या सवाल न हो।

मैं जीतूँ या हार जाऊँ
आगे बढ़ूँ या रुक जाऊँ
अच्छा या बुरा, दुःखी या सुखी
जैसा भी जीवन हो
जी तो सकूँ,
या,
चैन से मर सकूँ
मृत्य पर मैं, श्मशान ख़ुद जाऊँ।
स्वयं की कीर्ति या लाश भी ख़ुद उठाऊं।

नाम – शैली
पता – 5/496 विराम खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, 226010,
चल-भाष-9140076535

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