अशक्तता पर विजय – आशीष कुमार

अशक्तता पर विजय – आशीष कुमार

सांझ सवेरे सड़क पर
प्रतिदिन वह नजर आता
आंखें उसकी पतली लकुटिया
कदम दर कदम बढ़ता जाता

ना जाने कब उसने
इस प्रकाशमयी संसार में
अपनी ज्योति खो दी
या जन्म ही अंधकार लेकर आया

पर अपनी इस कमजोरी से
वह कभी हारा नहीं
खुद की मदद स्वयं की
लिया कभी सहारा नहीं

शांत-चित्त सहज सरल
और अद्भुत सहनशीलता
बच्चे उसकी खिल्ली उड़ाते
पर कटु वचन कभी ना बोलता

समीप के मंदिर के बाहर
फूलों की टोकरी ले बैठता
सुंदर-सुंदर फूलों की
प्रेम से मालाएं गूँथता

अपनी बेरंग दुनिया में हो कर भी
ताजे-ताजे फूलों की सुंदरता का बखान करता
अपनी छठी इंद्रिय से महसूस कर लेता
आने जाने वाले भक्तों को पुकारता

अपनी इस परिस्थिति पर भी
उसकी पुकार में कभी
करुण स्वर नहीं रहता
सर्वदा मुख पर स्वाभिमान झलकता

नियति का खेल देखिए
जिसकी आंखें सदैव काला रंग देखती
उसी के हाथ सभी रंगों का
एक सूत्र में मिलन होता

सीख उसके जीवन से अनमोल मिलता
अपनी अशक्तता पर जो विजय पा लेता
अपनी कमजोरी को जो ताकत बना लेता
ईश्वर का आशीष भी उसी को मिलता

आशीष कुमार

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