Author: कविता बहार

  • हम हलचल कर देंगे

    हम हलचल कर देंगे

            (प्रॉज शैली में)

                तर्क,
          कुछ निकलेंगे..
    कुछ अंधविश्वास टूटेंगे।
      ज्ञान ग्रहण जो सार,
        हम तुम खोजते,
           ग्रहण जो,
             करेंगे।

                हर,
           पक्ष विपक्ष,
         हर पहलु का,
      कोई न कोई सार,
      निकलता है प्यारे,
       अनुसंधान जो,
             करेंगे।

              भावी,
            भूत वर्त,
          सब कुछ है,
    विज्ञान के पहिये में,
         बस संग जो,
         चक्रण हम,
            बढ़ेंगे।

             आओं,
         घणी विरासत,
    देखें हमारी वैज्ञानिकी,
    हमने किया अविष्कृत और,
        नुतन कल सखी,
         मिलकर हम,
            लिखेंगे।

         *_पुखराज*
           महासमुन्द

    [email protected]

  • छूकर मुझे बसंत कर दो

    छूकर मुझे बसंत कर दो – निमाई प्रधान

    छूकर मुझे बसंत कर दो
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    तुम बिन महज़ एक शून्य-सा मैं
    जीकर मुझे अनंत कर दो ….।

    पतझर-पतझर जीवन है
    छूकर मुझे बसंत कर दो ।।

    इन्द्रधनुष एक खिल रहा है,
    मेरे हृदय के कोने में…..
    बस जरुरत एक ‘हाँ’ की …
    शून्य से अनंत होने में ।
    छू लो ज़रा लबों को मेरे..
    शंकाओं का अंत कर दो ।

    जीकर मुझे अनंत कर दो ..
    छूकर मुझे बसंत कर दो ।।

    जीवन के हर सम-विषम में ,
    मैं रहूँ तुम्हारे संग …..
    मयूरपंखी इस ‘क्षितिज’ को,
    मैं रंगूँ तुम्हारे रंग …


    स्वर बनो तुम , बनूँ मैं व्यंजन
    रहूँ तुम बिन हरदम अधूरा
    मुझको स्वरे ! हलंत कर दो ।

    जीकर मुझे अनंत कर दो…
    छूकर मुझे बसंत कर दो ।।

    तुम्हारे अश्क़ गिरे जब मेरे हृदय में
    मैं तो हो गया न्यारा …..
    सौंधी-सौंधी महक उठा फिर
    तन-मन-जीवन सारा..
    हो रहा हूँ….मैं तुम्हारा ..
    ये चर्चा दिक्-दिगंत कर दो ।

    जीकर मुझे अनंत कर दो…
    छूकर मुझे बसंत कर दो ।।

    निमाई प्रधान’क्षितिज

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  • दिलीप कुमार पाठक सरस का ग़ज़ल

    दिलीप कुमार पाठक सरस का ग़ज़ल

    hindi gajal
    kavita bahar

    जिंदादिली जिसकी बदौलत गीत गाना फिर नया |
    हँसके ग़ज़ल गाते रहो छेड़ो तराना फिर नया ||

    है जिंदगी जी लो अभी फिर वक्त का कोई भरोसा है नहीं |
    पल भर ख़ुशी का जो मिले किस्सा सुनाना फिर नया ||

    हँसना हँसाना रूठ जाना फिर मनाना आ गया |
    अच्छा लगे  ऐसा बनाना तुम बहाना फिर नया ||

    दीदार पहले हुस्न का जी भर जरा कर लीजिए |
    लिपटी लता का ख़्वाब आँखों में सजाना फिर नया ||

    खींचातनी में रात बीती कह रही है आँख सब |
    महके बदन उस गुलबदन का गुल खिलाना फिर नया ||

    तबदीलियाँ होने लगी हैं देख लेना ऐ “सरस”|
    है गुनगुनाती गूँज आयेगा ज़माना फिर नया ||

    दिलीप कुमार पाठक “सरस”

  • सेवा पर कविता

    सेवा पर कविता – मानक छत्तीसगढ़िया

    सेवा पर कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    ठंडी में गरीब को कपड़े दे दो,
    गर्मी में प्यासे को पानी।
    हर मौसम असहाय की सेवा,
    ऐसे बीते जवानी।।

    अशिक्षित को शिक्षित बना दो,
    कमजोर को बलशाली।
    भटके को सच राह दिखा दो,
    भीखारी को भी दानी।।

    दीन दुखियों को खुशियां दे दो,
    रोते को हंसी सारी।
    रोगी को आराम दिला दो,
    हो ऐसा कर्म कहानी।।

    प्रेम भाव का दीप जला दो ,
    बोलकर अमृत वाणी।
    मानव ही नहीं आपसे
    प्रेम करे हर प्राणी।।

    मानक छत्तीसगढ़िया

  • दीपक पर कविता

    नव्य आशा के दीप जले – मधु सिंघी

    नव्य आशा के दीप जले,
    उत्साह रूपी सुमन खिले।
    कौतुहल नवनीत जगाकर,
    नया साल लो फिर आया।

    मन के भेद मिटा करके,
    नयी उम्मीद जगा करके।
    संग नवीन पैगाम लेकर ,
    नया साल लो फिर आया।

    सबसे प्रीत जगा करके,
    सबको मीत बना करके।
    संग में सद्भावनाएँ लेकर ,
    नया साल लो फिर आया।

    मुट्ठी में भर सातों आसमान,
    रखके मन में पूरे अरमान।
    संग इंन्द्रधनुषी रंग  लेकर,
    नया साल लो फिर आया।

    मधु सिंघी
    नागप

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