Author: कविता बहार

  • श्याम छलबलिया – केवरा यदु

    श्याम छलबलिया – केवरा यदु

    श्याम छलबलिया – केवरा यदु

    shri Krishna
    Shri Krishna

    श्याम छलबलिया कइसे भेज दिहे व पाती।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
    कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।
    ऊधो आइस पाती सुनाइस।
    पाती पढ़ पढ सखी ला सुनाईस।
    पाती सुन के


    पाती सुन के धड़कथे मोर छाती।।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
    कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
    एक जिवरा कहिथे जहर मँय खातेंवं।
    श्याम के बिना जिनगी ले मुक्ति पातेंवं
    एक जिवरा कहिथे


    एक  जिवरा कहिथे मँय देहूँ काशी।।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
    कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
    जिवरा कहिथे श्याम बन बन खोजँवं।
    बइठ कदम  तर जी भर के रो लंव।
    जिवरा मोर कहिथे


    जिवरा मोर कहिथे लगा लेऊँ फांसी।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
    कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
    मन मोर दस बीस नइहे कान्हा
    साँस के ड़ोरी बंधे तोरे संग कान्हा।
    जियत नहीं पाहू


    जियत नहीं पाहू  मोला दे देहू माफी।।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी।।
    कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे।।
    श्याम छलबलिया कइसे भेज दिहेव पाती।
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी
    तुम्हरे दरस बर तरसथे मोर आँखी
    कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे कान्हा रे


    केवरा यदु “मीरा”

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  • भ्रूण हत्या पर कविता

    भ्रूण हत्या पर कविता

    भ्रूण हत्या का मचा एक नीरव रोर है,
    चोरी छिपे लिंग जाँच हर दिशा हर ओर है।
    जाने क्यों बेटी की हत्या का शौक ये चढ़ आया,
    गर्भ में ही भेदभाव का ये कृत्य सबको भाया।


    अपने ही कोख के अंश का माँ गला घोंट देती है,
    लिंग जाँच में बेटा हो तो हत्या रोक लेती है,
    लड़की के आने की खबर आहत उसे कर जाती है,
    माता -पिता दोनों की आत्मा अति व्याकुल हो जाती है।


    जब तक भ्रूण  मिटा न डाला नींद उन्हें नहीं आती है,
    चंद स्वार्थों की खातिर रक़्तिम हत्या की जाती है,
    बेचारी लड़की गर्भ में गिड़गिड़ाती है,
    माँ तू मुझे दुनिया में क्यों नहीं आने देती है।


    माँ मुझको भी दुनिया में आने दे माँ,
    बस एक बार कली से फूल बन जाने दे माँ,
    लड़का-लड़की एक समान है ये सोच तू भी अपना ले माँ,
    मत कर कोख में मेरी हत्या,
    अस्तित्व मुझे पा जाने दे माँ।


    हर माँ यदि लड़की न चाहे,
    दुनिया भला चल पाएगी?
    सिर्फ पुरुषों से क्या जग चलता है?
    कब हर माँ यह समझ पाएगी,
    लड़की भावी नारी बनकर
    जीवन में मधुरस भरती है माँ
    जन्मदात्री है मानव की, सर्वस्व समर्पित करती है माँ।


    माँ तू भी नारी मैं भी भावी नारी,
    फिर कैसी है ये लाचारी,
    भ्रूण हत्या नहीं रुकी तो
    नारी विहीन होगी वसुधा हमारी।


    नाम- कुसुम लता पुंडोरा

  • जब लेखनी मुँह खोलती है

    जब लेखनी मुँह खोलती है

    जिंदगी में कुछ अपनो के किस्से खास होते हैं
    छलते हैं वे ही हमें जो दिल के पास होते हैं।
    वंचना भी करते हैं
    फिर भी खुशी की आस होते हैं
    लहरों के नर्तन में नाविक का विश्वास होते हैं।


    न जाने क्यों फिर भी हम उनके साथ होते हैं
    वे ही हमारी सुबह शाम और रात होते हैं।
    उनकी आँखों में उल्फत का न कोई नाम होता है
    फिर भी उन्हीं के नाम हर साकी और जाम होता है।
    उनके सितम आह भरकर झेल जाते हैं
    न जाने लोग जज्ब़ातों से कैसे खेल जाते हैं।


    संवेदना के नाम पर गैरत की चाल चलते हैं
    बेगानों से वह प्यार का मसीहा बनकर मिलते हैं।
    आंधी,तूफान,आपदा उनकी नफ़रत से भी हल्के लगते हैं
    हमारे बिना महफ़िल में उनके खूब ठहाके लगते हैं।
    बिना प्यार जीवन सूना किताबी बातें लगती हैं,
    अपनों के बिना ही रस्म रिवाजों की शामें ढलती हैं।


    तीज त्योहार सूने खुद ही मनाने पड़ते हैं
    मुट्ठी में नमक लिए फिरते हैं लोग
    ज़ख्म छुपाने पड़ते हैं।
    लवों पर हँसी,रौनक जग को दिखानी पड़ती है
    खुद अपना हमसफर बनकर रीत निभानी पड़ती है।

    अपने गैर बन जाएं तो दुनिया वीरानी लगती है
    उनके बदलने की आशा बड़ी नादानी लगती है।
    रुख हवाओं का एक सा नहीं रहता
    झूठी तसल्ली लगती है
    पतझड़ मधुऋतु सी सुखद लगती
    जब लेखनी मुँह खोलती है।

    कुसुम

  • सायली छंद में रचना

    सायली छंद में रचना

    चेहरा
    देख सकूँ
    नसीब में कहाँ
    बिटिया दूर
    बसेरा।

    अहसास
    बस तुम्हारा
    पल-पल याद
    सताती रही
    आज।

    याद
    आते रहे
    वो पल हरदम
    जो सुनहरे
    बीते।

    तेरी
    नटखट शैतानियाँ
    महकता रहता था।
    घर आँगन
    मेरा।

    अर्चना पाठक (निरंतर)
    अम्बिकापुर

  • माता शारदे वंदन

    माता शारदे वंदन करूँ -भुवन बिष्ट


    माता शारदे वंदन करूँ।
                         मिले अब वरदान।।
    वाणी में विराजती माता।
                           सदा देना ज्ञान।।
    आलोकित हो हर पथ मेरा।
                           लेखनी पहचान।।
    होवे विनती यह बार बार।
                          माता हो महान।।
    सदा सदा सच पथ पर होता।
                         मातु का गुणगान।।
    वीणावादनी माता सदा।
                          मिट जाये अज्ञान।।
                         …भुवन बिष्ट
                 रानीखेत, उत्तराखंड
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