Author: कविता बहार

  • 7 अप्रैल स्वास्थ्य दिवस पर कविता

    उन आदतों को

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    बिस्तरों को छोड़ दो, सुबह की नींद तोड़ दो।

    जिनसे स्वास्थ्य नष्ट हो, उन आदतों को छोड़ दो ।

    सूर्य के उदय से पूर्व, सैर करने जाइए।

    शौच से निपट के, दाँत साफ करके आइए ॥

    इससे पहले चाय-नाश्ते की बात छोड़ दो।

    जिनसे स्वास्थ्य….

    सैर ही नहीं सवेरे नित्य कसरत करो।

    योग आसनों से रोग नित शरीर के हरो।

    जल से नहाओ, ड्राइबाथ लेना छोड़ दो।

    जिनसे स्वास्थ्य…

    पूरी, पराठे व बिस्कुटों को भूल जाइए।

    दूध, दही, छाछ, चने अंकुरित भी खाइए। ।

    तेज मिर्च, मसालों के माल खाना छोड़ दो।

    जिनसे स्वास्थ्य…

    खाओ तीन बार किंतु नाक तक भरो नहीं।

    स्वाद से चखो परंतु स्वाद पर मरो नहीं।

    नाक-भौं सिकोड़ने की आदतों को छोड़ दो।

    जिनसे स्वास्थ्य…

    बिस्तरों को छोड़ दो, सुबह की नींद तोड़ दो।

    जिनसे स्वास्थ्य नष्ट हो, उन आदतों को छोड़ दो ॥

  • 23 मार्च बलिदान दिवस पर कविता

    23 मार्च को तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। कम उम्र में इन वीरों ने देश के आजादी की लड़ाई लड़ी और अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी के साथ भारतीयों के लिए भगत सिंह, शिवराम राजगुरु, सुखदेव प्रेरणा के स्रोत बने हैं। इस लिए 23 मार्च को बलिदान दिवस मनाया जाता है .

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे

    प्रेम धवन

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    फूल क्या चीज़ है तेरे क़दमों पे हम

    भेंट अपनी सरों की चढ़ा जायेंगे।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    सह चुके हैं सितम हम बहुत गैर के

    अब करेंगे हर एक वार का सामना

    झुक सकेगा न अब सरफ़रोशी का सर

    चाहे हो खूनी तलवार का सामना

    बाँध कर सर पर क़फन और हँसते हुए

    मौत को हम गले से लगा जायेंगे।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे

    कोई पंजाब से कोई महाराष्ट्र से

    कोई यू.पी. से है कोई बंगाल से

    तेरी पूजा की थाली में लाये हैं हम

    फूल हर रंग के आज हर डाल से नाम

    कुछ भी सही पर लगन एक है।

    जोत से जोत दिल की जला जायेंगे।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे ।

    हम रहें न रहें पर कोई गम नहीं

    तेरी राहों को रौशन करा जायेंगे।

    ख़ाक में मिल गई जिन्दगी गर तो क्या

    माँग तेरी सितारों से भर जायेंगे।

    रंग अपने लहू का तुझे देके हम

    तेरे गुलशन की रौनक़ बढ़ा जायेंगे ।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    हम वो आवाज़ हैं तो तेरे नाम पे

    निकले मैदान में हैं मिट्टी को चूम के

    दे के आवाज़ देखो इसी चाह में

    सूलियों पर भी चढ़ जायेंगे झूम के

    शम्आ जलती रहे तेरी हर दौड़ में

    तेरे परवाने खुद को मिटा जायेंगे।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    तेरे जानिब उठी गर कोई भी नज़र

    उस नज़र को झुका करके दम लेंगे हम

    तेरी धरती पर है जो क़दम गैर का

    उस क़दम की निशाँ तक मिटा जायेंगे।

    ठोकरों से उसे हम गिरा जायेंगे ।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    हँस के रुख़सत करो हमको ऐ साथियों

    पूरी करने हम अपनी क़सम चल दिये

    राखी बाँधी थी बहना ने जिस हाथ में

    पहनकर हथकड़ी हमको रुखसत करो

    हम न देखेंगे कल की बहारें तो क्या

    तुझको हम तो बहारें दिखा जायेंगे।

    ऐ वतन ए वतन हमको तेरी कसम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    तू न रोना, तू है भगत सिंह की माँ

    मर के भी लाल तेरा मरेगा नहीं

    घोड़ी चढ़के तो लाते हैं दुल्हन सभी

    हँस के हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं

    इश्क़ आज़ादी ने अश्कों से है किया

    देख लेना हम उसे ब्याह कर लायेंगे।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    जब शहीदों की अर्थी उठें धूम से

    देश वालों तुम आँसू बहाना नहीं

    पर मनाना जब आज़ाद भारत का दिन

    उस घड़ी तुम हमें भूल जाना नहीं

    लौट कर आ सकें न जमाँ में तो क्या

    याद बनकर दिलों में तो आ जायेंगे।

    ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

    तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

    निछावर कर दें हम सर्वस्व

    ● जयशंकर प्रसाद

    हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दें उपहार ।

    उषा ने हँस अभिनन्दन किया और पहनाया हीरक हार ।

    जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक ।

    व्योम तम-पुंज हुआ तब नष्ट अखिल संसृति हो उठी अशोक ।

    विमल वाणी ने वीणा ली कमल-कोमल कर में सप्रीत ।

    सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत ।

    बचा कर बीज-रूप से सृष्टि नाव पर झेल प्रलय का शीत।

    अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण पथ में हम बढ़े अभीत।

    सुना है दधीचि का यह त्याग, हमारी जातीयता विकास ।

    पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरे इतिहास ।

    सिंधु-सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह ।

    दे रही अभी दिखाई भग्न, मन रत्नाकर में वह राह ।

    धर्म का ले लेकर जो नाम हुआ करती बलि, कर दी बंद ।

    हमी ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद ।

    विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम ।

    भिक्षु होकर रहते सम्प्रट्, दया दिखलाते घर-घर घूम ।

    यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि ।

    मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न शील की सिंहल को भी सृष्टि ।

    किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं ।

    हमरी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आये थे नहीं।

    जातियों का उत्थान-पतन आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर ।

    खड़े देखा झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर ।

    चरित के पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा सम्पन्न ।

    हृदय के गौरव में था, गर्व, किसी को देख न सके विपन्न ।

    हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव ।

    वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव ।

    वही है रक्त, वही है देश, वही, साहस है, वैसा ज्ञान ।

    वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य्य-संतान ।

    जिये तो सदा उसी के लिए यही अभिमान रहें यह वर्ष ।

    निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारत वर्ष ।

    बलिदान करो

    कान्त विद्रोही

    सुनकर माँ की करुण पुकार

    अपने गौरव का ध्यान करो।

    इस अस्थि कलश पर कर विचार

    अमरत्व हेतु बलिदान करो ॥

    यह मृत्यु नहीं यह आहुति है

    यह हवन कुण्ड है, चिता नहीं।

    जो इस पर जलकर हुई भस्म

    उसको मत कहना मृता कहीं ॥


    है शपथ तुम्हें भारत भू की

    इस नारी पर अभिमान करो।

    अमरत्व हेतु बलिदान करो ॥

    इस जाति-पाति के भेद भाव

    की गहराती खाई पाटो ।

    मत लहू बहाओ मन्दिर में

    गुरुद्वारों का कुछ दुख बाँटो ॥


    खालिस्तानी इतिहास मिटा

    निज करनी का सम्मान करो।

    अमरत्व हेतु बलिदान करो ।

    जग-जग कर जग में नाम करो

    कुछ मातृभूमि के काम करो ।

    जीवन का अर्थ समझ प्यारे

    अब और न तुम आराम करो ॥

    ओ बहादुरों आगे बढ़कर

    भारत का भी उत्थान करो ।

    अमरत्व हेतु बलिदान करो ।।

    आर्यावर्त की व्रत गरिमा

    का भाव फूँक दो प्राणों में।

    गूँथों कुछ पुष्प अहिंसा के

    अब संगीनों की शानों में ॥

    इंदिरा बनो बनकर अशोक

    जग में ऊँचा स्थान करो।

    अमरत्व हेतु बलिदान करो ।।

    लेखकों और कवियों सुन लो

    शृंगार विरह पर बिको नहीं ।

    हो पाये तो युग गीत लिखो

    इस भक्ति मात्र पर टिको नही ॥

    ‘विद्रोही’ शान्ति भाव लावो

    माँ गीता का गुण गान करो।

    अमरत्व हेतु बलिदान करो ।।

    अंगार है साथी

    ● रामधारी सिंह ‘दिनकर’

    उसे भी देख जो भीतर भरा अंगार है साथी

    शिखर पर तू न तेरी राह बाकी दाहिने बाएं,

    खड़ी आगे दरी यह मौत-सी विकराल मुंह बाएं,

    कदम पीछे हटाया तो अभी ईमान जाता है,

    उछल जा, कूद जा, पल में दरी यह पार है साथी।

    न रुकना है तुझे, झण्डा उड़ा केवल पहाड़ों पर,

    विजय पानी है तुझको चांद-सूरज पर, सितारों पर,

    वधू रहती जहां नरवीर की, तलवार वालों की,

    जमीं वह इस जरा से आसमां के पार है साथी।

    भुजाओं पर मही का भार, फूलों-सा उठाएं जा,

    कंपाए जा गगन को, इन्द्र का आसन हिलाएं जा

    जहां में एक ही है रोशनी, वह नाम की तेरे,

    जमीं जो एक तेरी आग का आधार है साथी।

    जिसने भारत को किया अमय

    ● डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

    जिसने भारत को किया अभय ।

    बोलो श्री भगत सिंह की जय ॥

    विद्या जननी थे किशन पिता, सरदार अजीत, स्वर्ण चाचा ।

    भारत आजाद कराने को, पढ़ रहे सभी आज़ाद ऋचा ।

    सत्ताइस सितंबर अंबर में, तारागण चंद्र हिलोल करें।

    लायलपुर बंगा थे पुलकित, नर छौना कुदक किलोल करें।

    भोला- छोरा, रंग था गोरा, अँखियाँ चंचल अरु भाल विमल ।

    दंतावलि दुग्ध, सबल बाहु, तन श्वेत कमल मन गंगाजल।

    मकरंद लिये अलि दौड़ पड़े, स्वच्छंद समीर की गंध लुटी ।

    हो गई सुहागिन दशों-दिशा, घनघोर तिमिर की साँस घुटी।

    जन-जन, छन-छन परिजन, कनकन, तन-मन था आज पुकार उठा।

    ‘मन मंदिर जल गए दीप मधुर, भारती अहम् ललकार उठा।

    थी धन्य धरा बालक बचपन, पिस्तौल बम्ब की फसल उगी।

    बेड़ी कॉंटू भारत माँ की रणसिंह भुजा फड़फड़ा उठी।

    शादी न करूँ, करूँ मौत वरण, कर लिया था मस्ताने ने तय ।।

    जिसने भारत को किया अभय ।

    बोलो श्री भगत सिंह की जय।

    कर सावधान बाँटे परचे, जंजीर गुलामी की तोड़ो।

    बहरों को सुना रहे दहाड़, फिरंगियों, भारत छोड़ो।

    मियाँवाली जेल कर दई फेल, लाहौर सेंट्रल भेज दिया।

    करने को भेंट, घिर गया गेट, गोरों ने दमन कर तेज दिया।

    क्या कर विधाता, चला मुकदमा, दिल में था सबके संशय ।

    जिसने भारत को किया अभय ।

    बोलो श्री भगत सिंह की जय ॥

    आँखों में सृजन, भृकुटि में प्रलय, तब इन्कलाब था जिंदाबाद |

    गोरों से कहा बाँधो बिस्तर, होगा मेरा भारत आजाद ।

    सरकार नहीं सर कर पाई, ‘सर-सर’ कहकर ना झुकाया सर।

    “सर-सर’ कर झूले तीनों सर, झुक गए शर्म से दुश्मन के सर ।

    रुक गया पवन, सहम गया गगन, सतलज की लहरें शांत हुईं।

    है धन्य मात की कोख, धन्य, धन्या है वह पंजाब मही ।

    सरफरोशी की तमन्ना, जिनकी आज गूँजती लय ।

    जिसने भारत को किया अभय ।

    बोलो श्री भगत सिंह की जय ॥

    ऊधमसिंह से बलिदानी को

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’


    ऊधम सिंह से बलिदानी को आओ मन से नमन करें।

    देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें ।।

    भारत माता की सेवा में तिल-तिल जीवन-दान दिया

    आजादी के लिए जिन्होंने निसंकोच बलिदान किया।

    लेकर उनका नाम साथियों अपना जीवन सफल करें।

    देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें ।।

    जनरल डायर ने फायर कर हिंदुस्तान भून दिया ।

    जलियाँवाला बाग नाग ने यहाँ हजारों खून किए।

    ठान लिया ऊधम सिंह ने हम खून के बदले खून करें।

    देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें।

    लंदन जाकर उस पापी को मौत के घाट उतार दिया।

    जान हथेली पर रखकर ऊधम ने उस पर वार किया।

    देशद्रोहियों का सब मिलकर आज दुबारा दमन करें।

    देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें ।।

    ऊधम सिंह के दृढ चरित्र से देशप्रेम की शिक्षा लें।

    बलिदानों के भगवा रंग में स्वार्थ त्याग की भिक्षा लें ।

    सारे भारतवासी मिलकर मातृभूमि को नमन करें।

    देशभक्ति के बीज…

  • 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता

    8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कविता

    1857 में 8 मार्च को न्यूयॉर्क में कपड़ा मिलों की कामकाजी महिलाओं ने अधिक वेतन व काम के घण्टे 15-16 से घटाकर 10 घण्टे करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। चुकीं यह विश्व की महिलाओं का यह प्रथम प्रदर्शन था, इस लिए इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रुक में मनाया जाता है उनकी एकता के लिए.

    परन्तु उस समय के श्रम संघों ने भी नापसन्द किया। परिणामस्वरूप यह आन्दोलन असफल रहा, किन्तु यह आन्दोलन पुलिस द्वारा कुचलने के बावजूद महिला संघर्ष के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गया।

    आज नारी का स्वत:

    आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    आज नारी का स्वतः सम्मान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है।

    अब निरक्षरता ने होगी शीश पर ढोनी।

    हर कदम पर एक आशा की फसल बोनी ।

    कर्म के पथ में अथक संधान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है ॥

    सजग होती शक्ति से संसार नत होगा।

    कर्तव्य के उत्थान से अधिकार नत होगा ॥

    त्याग की झंकार से बलिदान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है।

    बातियाँ ये नित्य निज तल जलाएँगी।

    तम हरेंगी सत्यपथ वो जगमगाएँगी ॥

    ज्योति में रवि-रश्मि का आह्वान जागा है

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है।

    किरण को कोई कहीं क्या रोग पाया है ?

    उसे ज्ञानाभाव ने बंदी बनाया है ।

    विस्मरण में आत्मबल का ज्ञान जागा है।

    अस्मिता का आज फिर अभिमान जागा है ।

  • 23 दिसम्बर किसान दिवस पर कविता

    तुझे कुछ और भी दूँ !

    रामअवतार त्यागी

    तन समर्पित, मन समर्पित

    और यह जीवन समर्पित

    चाहता हूँ, देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ!

    माँ ! तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन

    किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन,

    थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब

    स्वीकार कर लेना दयाकर वह समर्पण!

    गान अर्पित, प्राण अर्पित

    रक्त का कण-कण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !

    माँज दो तलवार को, लाओ न देरी

    बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी

    भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी

    शीश पर आशीष की छाया घनेरी

    स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित

    आयु का क्षण-क्षण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

    तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,

    गाँव मेरे, द्वार घर आँगन क्षमा दो,

    आज बाएँ हाथ में तलवार दे दो,

    और सीधे हाथ में ध्वज को क्षमा दो !

    ये सुमन लो, यह चमन लो

    नीड़ का तृण-तृण समर्पित

    चाहता हूँ देश की धरती तुझ कुछ और भी दूँ !

    श्रम के देवता किसान

    • वीरेंद्र शर्मा

    जाग रहा है सैनिक वैभव, पूरे हिन्दुस्तान का,

    गीता और कुरान का।

    मन्दिर की रखवारी में बहता ‘हमीद’ का खून है,

    मस्जिद की दीवारों का रक्षक ‘त्यागी’ सम्पूर्ण है।

    गिरजेघर की खड़ी बुर्जियों को ‘भूपेन्द्र’ पर नाज है,

    गुरुद्वारों का वैभव रक्षित करता ‘कीलर’ आज है।

    धर्म भिन्न हैं किंतु एकता का आवरण न खोया है,

    फर्क कहीं भी नहीं रहा है पूजा और अजान का।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

    दुश्मन ने इन ताल-तलैयों में बारूद बिछाई है,

    खेतों-खलियानों की पकी फसल में आग लगाई है।

    खेतों के रक्षक-पुत्रों को, मां ने आज जगाया है,

    सावधान रहने वाले सैनिक ने बिगुल बजाया है।

    पतझर को दे चुके विदाई, बुला रहे मधुमास हैं,

    गाओ मिलकर गीत सभी, श्रम के देवता किसान का।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

    सीमा पर आतुर सैनिक हैं, केसरिया परिधान में,

    संगीनों से गीत लिख रहे हैं, रण के मैदान में।

    माटी के कण-कण की रक्षा में जीवन को सुला दिया,

    लगे हुए गहरे घावों की पीड़ा तक को भुला दिया।

    सिर्फ तिरंगे के आदेशों का निर्वाह किया जिसने,

    पूजन करना है ‘हमीद’ जैसे हर एक जवान का।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

    खिलते हर गुलाब का सौरभ, मधुवन की जागीर है,

    कलियों और कलम से लिपटी, अलियों की तकदीर है।

    इसके फूल-पात पर, दुश्मन ने तलवार चला डाली,

    शायद उसको ज्ञान नहीं था, जाग गया सोया माली ।

    गेंदे और गुलाबों से सब छेड़छाड़ करना छोड़ो,

    बेटा-बेटा जागरूक है, मेरे देश महान् का ।

    गीता और कुरान का,

    पूरे हिन्दुस्तान का।

  • 16 दिसम्बर कारगिल विजय दिवस पर कविता

    जीत मरण को वीर

    ● भवानी प्रसाद तिवारी

    जीत मरण को वीर, राष्ट्र को जीवन दान करो,

    समर-खेत के बीच अभय हो मंगल-गान करो।

    भारत माँ के मुकुट छीनने आया दस्यु विदेशी,

    ब्रह्मपुत्र के तीर पछाड़ो, उघड़ जाए छल वेशी।

    जन्मसिद्ध अधिकार बचाओ, सह-अभियान करो,

    समर खेत के बीच, अभय हो, मंगल-गान करो।

    क्या विवाद में उलझ रहे हो हिंसा या कि अहिंसा ?

    कायरता से श्रेयस्कर है छल-प्रतिकारी हिंसा ।

    रक्षक शस्त्र सदा वंचित है, द्रुत संधान करो,

    समर-खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।

    कालनेमि ने कपट किया, पवनज ने किया भरोसा,

    साक्षी है इतिहास विश्व में किसका कौन भरोसा ।

    है विजयी विश्वास ‘ग्लानि’ का अभ्युत्थान करो,

    समर खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।

    महाकाल की पाद भूमि है, रक्त-सुरा का प्याला,

    पीकर प्रहरी नाच रहा है देशप्रेम मतवाला ।

    चलो, चलो रे, हम भी नाचें, नग्न कृपाण करो,

    समर खेत के बीच, अभय हो मंगल-गान करो।

    आज मृत्यु से जूझ राष्ट्र को जीवन दान करो,

    रण खेतों के बीच अभय हो मंगल-गान करो।

    सबकी प्यारी भूमि हमारी

    कमला प्रसाद द्विवेदी

    सबकी प्यारी भूमि हमारी, धनी और कंगाल की ।

    जिस धरती पर गई बिखेरी, राख जवाहरलाल की ॥

    दबी नहीं वह क्रांति हमारी, बुझी नहीं चिनगारी है।

    आज शहीदों की समाधि वह, फिर से तुम्हें पुकारी है।

    इस ढेरी को राख न समझो, इसमें लपटें ज्वाल की ।

    जिस धरती पर … ॥१॥

    जो अनंत में शीश उठाएं, प्रहरी बन था जाग रहा।

    प्राणों के विनिमय में अपना, पुरस्कार है माँग रहा।

    आज बज गई रण की श्रृंगी, महाकाल के काल की ।

    जिस धरती पर… ॥२॥

    जिसके लिए कनक नगरी में, तूने आग लगाई है।

    जिसके लिए धरा के नीचे, खोदी तूने खाई है।

    सगर सुतों की राख जगाती, तुझे आज पाताल की।

    जिस धरती पर … ॥ ३॥

    रण का मंत्र हुआ उद्घोषित, स्वाहा बोल बढ़ो आगे ।

    हर भारतवासी बलि होगा, आओ चलो, चढ़ो आगे।

    भूल न इसको धूल समझना, यह विभूति है भाल की।

    जिस धरती पर… ॥४..

    बज उठी रण-भेरी

    ● शिवमंगलसिंह ‘सुमन’

    मां कब से खड़ी पुकार रही,

    पुत्रों, निज कर में शस्त्र गहो ।

    सेनापति की आवाज हुई,

    तैयार रहो, तैयार रहो ।

    आओ तुम भी दो आज बिदा, अब क्या अड़चन, अब क्या देरी ?

    लो, आज बज उठी रण-भेरी ।

    अब बढ़े चलो अब बढ़े चलो,

    निर्भय हो जय के गान करो।

    सदियों में अवसर आया है,

    बलिदानी, अब बलिदान करो।

    फिर मां का दूध उमड़ आया बहनें देतीं मंगल-फेरी !

    लो, आज बज उठी रण-भेरी।

    जलने दो जौहर की ज्वाला,

    अब पहनो केसरिया बाना |

    आपस की कलह-डाह छोड़ो,

    तुमको शहीद बनने जाना ।

    जो बिना विजय वापस आये मां आज शपथ उसको तेरी !

    लो, आज बज उठी रण-भेरी।