Author: कविता बहार

  • लक्ष्य पर कविता

    लक्ष्य पर कविता

    लक्ष्य बना लो जीवन का तुम
    फिर सपने बुनना सीखो
    छोड़ सहारा और किसी का
    खुद पथ पर चलना सीखो

    लक्ष्य नहीं फिर जीवन कैसा?
    व्यर्थ यहां जीना तेरा
    साध लक्ष्य जीवन का अपने
    चल पथ का चीर अधेरा

    लक्ष्य बिना ना मंजिल मिलती
    न मिलता जीवन आधार
    पशु मानव में फिर अंतर क्या?
    होते हो धरती पर भार

    कभी लक्ष्य से ना हटना तुम
    पग पीछे तू ना रखना
    जीवन के इस संघर्षों में
    खुद ही खुद से ना थकना।

    कुछ करना है तो डटकर चल
    कदम चूम ले मंजिल का
    ध्यान ज्ञान मन चित को रखना
    असल निशाना अर्जुन सा।

    रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

  • महिमा वीर नारायण के

    महिमा वीर नारायण के

    महिमा वीर नारायण के ये,जे भुइँया म भारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    जन-जन के हितवा बनके,जे बेटा बिताईन जी।
    धन के लोभी छलिया मन ल,निसदिन यही सताइन जी।
    माल खजाना लूट लूट के, निर्धन मन ल दान करे।
    भांज अपन तलवार ल मेंछा,म साहस के ताव भरे।
    ममता दया करे जेकर बर, छत्तीसगढ़ महतारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    नाम अमर हे बलिदानी के,छत्तीसगढ़ परिपाटी म।
    आज भी जेहर हवय बिराजे,ये भुइँया के माटी म।
    सोनाखान धरा के धुर्रा,पबरित जइसे चंदन हे।
    बलिदानी के ये महिमा ल,कोहिनूर के वंदन हे।
    कल बलिदानी लड़ीस न्याय बर,अब हे हमरो पारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    वीर नारायण लड़ीस न्याय बर,अब हे हमरो पारी जी।
    सोनाखान हवय हमरो ,बलिदानी के चिन्हारी जी।

    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

  • अपना-अपना एक सितारा- उपमेंद्र सक्सेना

    अपना-अपना एक सितारा

    इतने तारे आसमान में, उनका क्यों संज्ञान करें
    अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।


    दुनिया के सब काम आजकल, मतलब से ही चलते हैं
    भोले -भालों की छाती पर, दुष्ट मूँग अब दलते हैं
    अपना उल्लू सीधा करने को सब खूब मचलते हैं
    आस्तीन के साँप यहाँ पर, चुपके-चुपके पलते हैं

    अब अपनी औकात भूलकर, लोग यहाँ अभिमान करें
    अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।


    एक-एक कर सबको मिटना, इस पर कोई गौर नहीं
    हाथ- पैर कितना भी फेंके, पर कोई सिरमौर नहीं
    एक-दूसरे का हित सोचें, ऐसा है अब दौर नहीं
    फैली आग आज नफरत की, बचने का है ठौर नहीं

    समाधान भी कुटिल हो गया, धूर्त यहाँ व्यवधान करें
    अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।

    पता नहीं कब क्या हो जाए, देखी किसने यहाँ घड़ी
    अफरा-तफरी मची हुई है, हाय समस्या हुई खड़ी
    सूझ-बूझ से काम न लें जो, लगता उनकी बुद्धि सड़ी
    लाचारों को सता रहे हैं, भूल करें वे बहुत बड़ी

    जाने क्यों बलवान यहाँ पर, निर्बल का अपमान करें
    अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।

    जिसका यहाँ सितारा डूबा, फूट-फूटकर वह रोए
    उसके लिए भला कोई क्यों, नींद यहाँ अपनी खोए
    नातेदार भूलकर उसको, आज चैन से हैं सोए
    पथ में उसके काँटे बोए, दिखें दूध के वे धोए

    जिससे लाभ न कोई उनका, उसका क्यों सम्मान करें
    अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।


    अपने साथ यहाँ क्या लाए, साथ किसी के क्या जाए
    धन -दौलत जो हड़प रहे हैं, वे हैं इतने इठलाए
    तिकड़म में वे सबसे आगे, चालाकी उनको भाए
    यम के हाथों मार पड़े जब, काम न तब कुछ भी आए

    जो सीधे- सच्चे हैं उनका, आओ हम गुणगान करें
    अपना-अपना एक सितारा, उसका ही सब ध्यान करें।

    रचनाकार -✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’

  • संविधान का सम्मान – अखिल खान

    संविधान का सम्मान

    स्वतंत्रता के खातिर,कितने गंवाएं हैं प्राण,
    संविधान के लिए,वीरों ने दी है अपनी जान।
    अस्पृश्यता,दुर्व्यवहार में लिप्त था समाज,
    समाज में अत्याचारी-राक्षस,करते थे राज।
    दु:खियों,बेसहारों का होता था नित अपमान,
    प्यारे हिन्दवासी किजीए,संविधान का सम्मान।

    एक – रोटी के टुकड़े के लिए,तरसते थे जन,
    आजादी के लिए पुकारता,धरती और गगन।
    ज्ञान की रोशनी से दूर हुआ,जुल्म का अज्ञान,
    प्यारे हिन्दवासी किजीए,संविधान का सम्मान।

    आजादी के बाद,संविधान का कार्य था अधूरा,
    संविधान का निर्माण,डॉ.साहेब ने किया पूरा।
    26 नवंबर1949 को,पारीत हुआ संविधान,
    26 जनवरी1950 को,लागू हुआ संविधान।
    संविधान के निर्माण से,हिन्द बना है “सुल्तान”,
    प्यारे हिन्दवासी किजीए,संविधान का सम्मान।

    अधिकार,कर्तव्य और नियम हम अपनाते हैं,
    खुशी-खुशी सभी के साथ,त्यौहार मनाते हैं।
    कहता है “अकिल” संविधान है,देश का जान,
    प्यारे हिन्दवासी किजीए,संविधान का सम्मान।

    अब कोई नहीं छिन सकता,हमारा अधिकार,
    संविधान लेकर आया है,खुशीयों का बहार।
    देश का काम आया डा.आंबेडकर जी का ज्ञान,
    प्यारे हिन्दवासी किजीए,संविधान का सम्मान।

    अकिल खान.
    सदस्य,प्रचारक “कविता बहार” रायगढ़ (छ.ग.)

  • संविधान पर दोहे

    संविधान पर दोहे

    ——संविधान——

    सपने संत शहीद के,थे भारत के नाम।
    है उन स्वप्नों का सखे, संविधान परिणाम।।

    पुरखों ने निज अस्थियों,का कर डाला दाह।
    जिससे पीढ़ी को मिले, जगमग ज्योतित राह।।

    संविधान तो पुष्प है, बाग त्याग बलिदान।
    अगणित अँसुवन धार ने,सींची ये मुस्कान।।

    भीमराव अंबेडकर,थे नव भारत दूत।
    संविधान शिल्पी कुशल, सच्चे धरा सपूत।।

    लोकतंत्र संदर्भ में, संविधान का अर्थ।
    ऐसी शासन-संहिता , जो जन करे समर्थ।।

    मनसा वाचा कर्मणा,लक्ष्य लोक कल्याण।
    लोकतंत्र में है यही, संविधान का प्राण।।

    संविधान केवल नहीं, है नियमों का ग्रंथ।।
    देशवासियों के लिए,यह जीने का पंथ।।

    मानव-मूल्यों पर हुआ, संविधान निर्माण।
    ध्येय सर्व हित सिद्ध हो, गिद्ध स्वार्थ से त्राण।।

    स्वतंत्रता बंधुत्व का,समता का आधार।
    राष्ट्र-एकता के लिए, आवश्यक व्यवहार।।

    हैं मौलिक अधिकार तो, कुछ मौलिक कर्तव्य।
    इनसे ही संभाव्य है,पहुँचें हम गंतव्य।।

    अविचल ऐक्य अखंडता,करें सुनिश्चित तत्त्व।
    गरिमा मानव की रखें,उनको दिए महत्त्व।।

    संविधान सुंदर मगर, यदि शासक हो धूर्त।
    कहें भीम, जनतंत्र तब, कभी न होगा मूर्त।।

    समझें नेता नागरिक, संविधान का मूल्य।
    शांति प्रगति संभव तभी,भारत बने अतुल्य।।

    रेखराम साहू
    बिटकुला, बिलासपुर, छ.ग.