आ.मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान म़े सादर समर्पित
मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान में दोहा छंद
प्रेम चन्द साहित्य में , भारत की त़सवीर।
निर्धन,दीन अनाथ की,लिखी किसानी पीर।।
सामाजिकी विडंबना , फैली रीति कुरीति।
चली सर्व हित लेखनी, रची न झूठी प्रीत।।
गाँव खेत खलिहान सब,ठकुर सुहाती मान।
गुरबत में ईमान का , पाठ लिखा गोदान।।
बूढ़ी काकी आज भी, झेल रही दुत्कार।
कफन,पूस की रात भी,अब भी है साकार।।
छुआछूत मिटती नहीं, जाति धर्म के द्वंद।
मुन्शी जी तुमने लिखा, हाँ बेशक निर्द्वंद।।
गिल्ली डंडा खेलते, गबन करे सरकार।
नमक दरोगा अफसरी,आज हुई दरकार।।
ऐसी रची कहानियाँ, पढ़िए निकले आह।
ईदगाह हामिद पढे, भाग्य अमीना वाह।।
उपन्यास सम्राट या, कह दो धनपत नाम।
प्रेम चंद्र मुंशी कहूँ , शत शत बार प्रणाम।।
युग का लेखक मानते, हम सब के आदर्श।
उनकी यादों को करें, तन मन यादें स्पर्श।।
✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ
सिकन्दरा 303326
दौसा,राजस्थान