Author: कविता बहार

  • मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान में दोहा छंद

    मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान में दोहा छंद

    आ.मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान म़े सादर समर्पित

    मुंशी प्रेमचंद्र जी के सम्मान में दोहा छंद

    व्यक्तित्व विशेष कविता संग्रह
    Premchand


    प्रेम चन्द साहित्य में , भारत की त़सवीर।
    निर्धन,दीन अनाथ की,लिखी किसानी पीर।।

    सामाजिकी विडंबना , फैली रीति कुरीति।
    चली सर्व हित लेखनी, रची न झूठी प्रीत।।

    गाँव खेत खलिहान सब,ठकुर सुहाती मान।
    गुरबत में ईमान का , पाठ लिखा गोदान।।

    बूढ़ी काकी आज भी, झेल रही दुत्कार।
    कफन,पूस की रात भी,अब भी है साकार।।

    छुआछूत मिटती नहीं, जाति धर्म के द्वंद।
    मुन्शी जी तुमने लिखा, हाँ बेशक निर्द्वंद।।

    गिल्ली डंडा खेलते, गबन करे सरकार।
    नमक दरोगा अफसरी,आज हुई दरकार।।

    ऐसी रची कहानियाँ, पढ़िए निकले आह।
    ईदगाह हामिद पढे, भाग्य अमीना वाह।।

    उपन्यास सम्राट या, कह दो धनपत नाम।
    प्रेम चंद्र मुंशी कहूँ , शत शत बार प्रणाम।।

    युग का लेखक मानते, हम सब के आदर्श।
    उनकी यादों को करें, तन मन यादें स्पर्श।।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ
    सिकन्दरा 303326
    दौसा,राजस्थान

  • तीज पर कविता – चौपाई छंद

    छंद
    छंद

    तीज पर कविता – चौपाई छंद _बाबूलालशर्मा,विज्ञ_

    वर्षा ऋतु सावन सुखदाई।
    रिमझिम मेघ संग पुरवाई।।
    मेह अमा हरियाली लाए।
    तीज पर्व झूले हरषाए।।

    झूले पटली तरुवर डाली।
    नेह डोर सखियाँ दे ताली।।
    लगे मेंहदी मने सिँजारा।
    घेवर संग लहरिया प्यारा।।

    झूला झूले नारि कुमारी।
    गाए गीत नाचती सारी।।
    करे ठिठोली संग सहेली।
    हँसे हँसाए तिय अलबेली।।

    झूले पुरुष संग सब बच्चे।
    पींग बढ़ाते लगते सच्चे।।
    धीर सुजान पेड़ लगवाते।
    सत्य पुण्य ऐसे जन पाते।।

    धरा ओढती चूनर धानी।
    गाय बया नग लगे गुमानी।।
    कीट पतंग जन्मते मरते।
    ताल तलैया जल से भरते।।

    वर्षा सावन तीज सुहानी।
    लगती है ऋतु रात रुहानी।।
    विज्ञ लिखे मन की चौपाई।
    मन भाई मन ही मन गाई।।


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा,’विज्ञ’
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

  • नागपंचमी पर हिन्दी कविता

    नागपंचमी पर हिन्दी कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    गीत- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    नाग पंचमी के अवसर पर, नागों का पूजन कर आएँ
    आस्तीन में नाग छिपे जो, उनसे तो भगवान बचाएँ।

    मानवता का ओढ़ लबादा, सेवा का जो ढोंग कर रहे
    जिसको चाहें डस लेते वे, पीड़ित कितना कष्ट अब सहे

    इच्छाधारी बने आज जो, वे तो हैं सब से टकराएँ
    आस्तीन में नाग छिपे जो, उनसे तो भगवान बचाएँ।

    सरकारी ठेका है जिनपर, जिसको चाहें करें पुरस्कृत
    पात्र आज आँसू पीता है, उसको तो कर दिया तिरस्कृत

    अब साहित्य- कला में भी तो, हाय माफिया रंग दिखाएँ
    आस्तीन में नाग छिपे जो, उनसे तो भगवान बचाएँ।

    लोग पिलाते दूध नाग को, और बिनौला उसमें डालें
    लेकिन पीते नहीं इसे वे, ऐसी बात न मन में पालें

    जहर उगलते खूब आजकल, कैसे उनको गले लगाएँ
    आस्तीन में नाग छिपे जो, उनसे तो भगवान बचाएँ।

    नाग देवता पूजनीय हैं, लेकिन अब कुछ बात और है
    लोटें वे जिसकी छाती पर, किसने उस पर किया गौर है

    तिकड़म का है दौर चल रहा, तंत्र- मंत्र को सफल बनाएँ
    आस्तीन में नाग छिपे जो, उनसे तो भगवान बचाएँ।

    तरह-तरह के नाग आजकल, यहाँ देखने को मिलते हैं
    अपना उल्लू सीधा करके,फिर डसने को वे हिलते हैं

    मन के हैं वे इतने काले, काम अनैतिक खूब कराएँ
    आस्तीन में नाग छिपे जो, उनसे तो भगवान बचाएँ।

    उपमेंद्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)

  • नाग पंचमी पर कविता – अमृता प्रीतम

    नाग पंचमी पर कविता – अमृता प्रीतम

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मेरा बदन एक पुराना पेड़ है…
    और तेरा इश्क़ नागवंशी –
    युगों से मेरे पेड़ की
    एक खोह में रहता है।

    नागों का बसेरा ही पेड़ों का सच है
    नहीं तो ये टहनियाँ और बौर-पत्ते –
    देह का बिखराव होता है…

    यूँ तो बिखराव भी प्यारा
    अगर पीले दिन झड़ते हैं
    तो हरे दिन उगते हैं
    और छाती का अँधेरा
    जो बहुत गाढ़ा है
    – वहाँ भी कई बार फूल जगते हैं।

    और पेड़ की एक टहनी पर –
    जो बच्चों ने पेंग डाली है
    वह भी तो देह की रौनक़…

    देख इस मिट्टी की बरकत –
    मैं पेड़ की योनि में आगे से दूनी हूँ
    पर देह के बिखराव में से
    मैंने घड़ी भर वक़्त निकाला है

    और दूध की कटोरी चुराकर
    तुम्हारी देह पूजने आई हूँ…

    यह तेरे और मेरे बदन का पुण्य है
    और पेड़ों को नगी बिल की क़सम है
    और – बरस बाद
    मेरी ज़िन्दगी में आया –
    यह नागपंचमी का दिन है…

  • संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस पर कविता

    संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस पर कविता

    संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस पर कविता

    जन्म जनवरी दस को इक दिन,राष्ट्र संघ बन जाता है।
    शांति राह में चलने को ही,अपना कदम बढाता है।।

    विश्वयुद्ध भड़काने वाले,लालच रख कर डोले थे।
    साम्राज्य बढ़ाने उत्साहित,दुनिया से भी बोले थे।।

    गुप्त संधि करके रखते थे,झगड़े खूब बढ़ाने को।
    मित्र राष्ट्र सब के सब साथी,लड़ने और लड़ाने को।।

    विश्वयुद्ध दुनिया का पहला,धीरे से छिड़ जाता है।
    जान माल सब झोंके इसमें,नहीं समझ कोई पाता है।।

    मारे जाते लोग करोड़ो,चिंता खूब सताती है।
    दौर क्रांति की चलकर आगे,बढ़ती ही वह जाती है।।

    हार जर्मनी की होते ही,राष्ट्र संघ बन जाते हैं।
    संधि किए वर्साय वहाँ पर,भार बड़े भी लाते हैं।।

    राष्ट्र विजेता बेकाबू हो,खूब दबाए हारे को।
    करके कमजोर जर्मनी को,रोज दिखाते तारे को।।

    राष्ट्र संघ से हिटलर नेता,आगे आकर उभरे थे।
    तानाशाही उनके शासन,नहीं कहीं कुछ सुधरे थे।।

    राजकिशोर धिरही
    छत्तीसगढ़