मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ
जिससे अपना मतलब निकला, क्यों मैं उसके लात लगाऊँ
दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ।
मगरमच्छ के आँसू गिरते, जब वह सुख से भोजन करता
बगुला भगत यहाँ पर देखो,अपनों पर यों कभी न मरता
जिस थाली में भोज खिलाया, क्यों मैं उसमें छेद बनाऊँ
दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ।
आपाधापी के इस युग में, कौन किसी का हुआ सगा है
जीवन की परिभाषा बदली, अपनेपन में मिला दगा है
आज यहाँ पर बोलो किसको, क्यों मैं अपना भेद बताऊँ
दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ।
कितनी बनी संस्थाएँ हैं, होते कितने गोरख धंधे
अब समाज- सेवा के पीछे, लोग हो रहे कितने अंधे
काला धन उजला करके क्यों, लाचारों को सबक सिखाऊँ
दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ।
लोग गधे को बाप बनाकर, सीधा करते उल्लू अपना
गिरगिट जैसा रंग बदलते,होता पूरा उनका सपना
तिकड़म के ताऊ से मिलकर, क्यों अपना कर्तव्य भुलाऊँ
दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ।
कोतवाल हों जिसके सइयाँ, उसको नहीं किसी का भी डर
चाँदी का जूता जो मारे, उसका काम करें सब मिलकर
खाली हाथ यहाँ पर बोलो, किस पर अपना रौब जमाऊँ
दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ।
ऊँट भला किस करवट बैठे, किसका चमके यहाँ सितारा
अब आँसू पीकर रहता है, बेचारा किस्मत का मारा
आस्तीन में साँप छिपे हैं, कैसे उनसे मैं बच पाऊँ
दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ।
रचनाकार उपमेंद्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ०प्र०)
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