औरत को थोड़ा सुख मिलता तो चेहरे पर झलक जाता दुख का उसके चेहरे से बहुत देर तक पता ही नहीं चलता था सबको खिलाने के बाद जो बचता, वो खाती और सुखी हो जाती सुखी गृहस्थी का यह सुख उसने छुटपन में गुड्डे गुड़ियों के ब्याह से सीखा था।
विनोद सिल्ला के दोहे भाईचारे की अनमोल भावना को व्यक्त करते हैं। ये दोहे पाठकों को रिश्तों के महत्व को समझने और उन्हें सहेजने की प्रेरणा देते हैं। भाई के प्रति सच्चे प्रेम और सम्मान की भावना को व्यक्त करते हुए, ये दोहे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, जो भाईयों के बीच के अटूट बंधन को सम्मान देते हैं।
इस प्रकार, विनोद सिल्ला के “भाई पर दोहे” पारिवारिक संबंधों की गहराई और उनके महत्व को सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करते हैं।
भाई पर दोहे / विनोद सिल्ला
भाई जैसा आसरा, भाई जैसा प्यार। देख जगत सारा भले, भाई है संसार।।
भाई तज जोभी करे,सकल कार व्यवहार। आधा वो कमजोर हैं, जग में हो तकरार।।
परामर्शदाता सही, भाई जैसा कौन। भाई से मत रूठिए, नहीं साधिए मौन।।
रूठे बचपन में बड़े, जाते पल में मान। भाई-भाई हो वही, बनी अलग पहचान।।
भाई से ही मान है, भाई से है लाड। भीड़ पड़े भाई अड़े, भाई ऐसी आड।
भाई-भाई जब-जब लड़ें, दुश्मन हो मजबूत। भाई-भाई संग हों, सभी लगें अभिभूत।।
भाई मेरा पवन है, रहता है करनाल। बातें सांझी सब करे, रखता मेरा ख्याल।।
‘सिल्ला’ सबसे कह रहा, भाई ऐसी डोर। रिश्तों को बांधे रहे, आए कैसा दौर।।
-विनोद सिल्ला
विनोद सिल्लाद्वारा रचित दोहे “भाई पर दोहे ” पारंपरिक भारतीय काव्य शैली का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जिसमें भाईचारे, पारिवारिक संबंधों और आपसी प्रेम की भावनाओं को व्यक्त किया गया है। दोहों के माध्यम से भाई-भाई के बीच के रिश्ते, उनकी आपसी समझ और समर्थन का महत्व स्पष्ट होता है।
जीवन में आखिर कब तक हम, बोलो स्वस्थ यहाँ रह पाएँ बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।
मानव तन इतना कोमल है, देता है सबको लाचारी तरह -तरह के रोगों से अब, घिरे हुए कितने नर- नारी बेचैनी जब बढ़ जाती है, रात कटे तब जगकर सारी बोझ लगे जीवन जब हमको, बने समस्या यह फिर भारी
मौत खड़ी जब लगे सामने, तब दिन में तारे दिख जाएँ बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।
अपनी भूख- प्यास को भूले, सेवा में दिन- रात लगे हैं धन्य डॉक्टर साहब ऐसे, जन-जन के वे हुए सगे हैं सचमुच देवदूत हैं वे अब, उन्हें देख यमदूत भगे हैं मौत निकट जो समझ रहे, उनमें जीवन के भाव जगे हैं
जिनके पास नहीं हो पैसा, उनका भी वे साथ निभाएँ बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।
जीव-जंतुओं के इलाज में, लगे हुए उनको क्यों भूलें पशु- पक्षी की सेवा करके, आज यहाँ वे मन को छू लें जो भी हमसे जुड़े हुए हैं, उन्हें देखकर अब हम फूलें आओ उनके साथ आज हम, सद्भावों का झूला झूलें
जिनके आगे लगे डॉक्टर, उनकी महिमा को हम गाएँ बीमारी से पीड़ित हों तो, काम डॉक्टर साहब आएँ।
बीत गए गर्मी की छुट्टी,अब तो तुम आजाओ, क्या-क्या किए हैं,इस छुट्टी में हमे भी बताओ। श्याम-पट्ट,स्कूल की वो घंटी तुम्हें निहारता है, प्यारे बच्चों तुम्हें,स्कूल का दहलीज पुकारता है।
गर्मी-छुट्टी में घुम लिए हैं,बच्चे अपने ननिहाल, गांव-शहर में सैर करके,देखें हैं सुखे,नदी-ताल। अब तो वापस आओ,कर्मभूमि तुम्हें दुलारता है, प्यारे बच्चों तुम्हें,स्कूल का दहलीज पुकारता है।
कठिन-अथक प्रयास से,नित नए सोपान चढ़ो, लेकर संकल्प तुम भी,एक नया इतिहास गढ़ो। नए सत्र-की कक्षा में,स्कूल में नए दोस्त मिलेंगे, पढ़ोगे खुब,तभी तो सफलता का चमन खिलेंगे। इतिहास गवाह है शिक्षा,भविष्य को संवारता है, प्यारे बच्चों तुम्हें,स्कूल का दहलीज पुकारता है।
सहपाठी का गुस्सापन,रूठे मन से प्यारी बातें, स्कूल से बाहर आकर,भुल जाते हो सभी बातें। यकीनन विद्यार्थीयों को,विद्यालय निखारता है, प्यारे बच्चों तुम्हें,स्कूल का दहलीज पुकारता है।
नए कपड़े,पुस्तक कापी,के साथ स्कूल आओ, राष्ट्रगान-गीत इश – वंदना को फिर से सुनाओ। कहता है ‘अकिल’ समय सभी को सुधारता है, प्यारे बच्चो तुम्हें,स्कूल का दहलीज पुकारता है।