वीर सपूत की दहाड़ – सन्त राम सलाम
चलते हुए मेरे कदमों को देखकर,
जब मुझे पर्वत ने भी ललकारा था।
सीना ताने शान से खड़ा हो गया,
मैं भी भारत का वीर राज दुलारा था।।
मत बताना मुझे अपनी औकात,
मैंने पर्वतों के बीच में दहाड़ा था।
तेरे जैसे कई पहाड़ी के ऊपर में,
कई जानवरों को भी पछाड़ा था।।
तुझे याद दिला दूं बीते हुए इतिहास,
हमने पहाड़ों का सीना भी चीरा था।
तेरे ऊपर तो हमारे तिरंगा खड़ा है,
याद कर भारत में कितने वीरा था।।
खूब रोए थे तुम वर्षों-वर्षो तक,
तेरे छाती में जब नींव डाले थे।
इतने जल्दी तुम कैसे भूल गए,
याद करो सारे पत्थर काले थे।।
घोड़े की टाप से जब तुम बहुत थर्राये,
तब कराह से आह! शब्द निकला था।
गुंजी थी आवाज अंग्रेजों की कान में,
तब सुन आवाज अंग्रेज फिसला था।।
घबराहट की पसीना आज भी बह रही,
आज भी खूब दहशत है तेरे मन में।
तेरे तन के पसीना तो आज भी बह रही ,
भटक रही है तितर-बितर वन वन में।।
पर्वतों में पर्वत एक अमूरकोट,
जिसने सृष्टि प्रलय को देखा है।
अनादि काल से निरन्तर अब तक।
वंदनीय ये हिन्दूस्तान की लेखा है।।
ज्यादा अकड़न भी ठीक नहीं होता,
जिसमें ज्यादा अकड वही टूटता है।
ज्यादा गरम होना भी बहुत जरूरी,
बिना गरम किए लोहा कहां जूडता है।।
जय हिन्द,,,,🇮🇳 जय भारत,,,,🇮🇳
सन्त राम सलाम
भैंसबोड़ (बालोद),छत्तीसगढ़