Author: कविता बहार

  • वीर सपूत की दहाड़ – सन्त राम सलाम

    वीर सपूत की दहाड़ – सन्त राम सलाम

    tiranga



    चलते हुए मेरे कदमों को देखकर,
    जब मुझे पर्वत ने भी ललकारा था।
    सीना ताने शान से खड़ा हो गया,
    मैं भी भारत का वीर राज दुलारा था।।

    मत बताना मुझे अपनी औकात,
    मैंने पर्वतों के बीच में दहाड़ा था।
    तेरे जैसे कई पहाड़ी के ऊपर में,
    कई जानवरों को भी पछाड़ा था।।

    तुझे याद दिला दूं बीते हुए इतिहास,
    हमने पहाड़ों का सीना भी चीरा था।
    तेरे ऊपर तो हमारे तिरंगा खड़ा है,
    याद कर भारत में कितने वीरा था।।

    खूब रोए थे तुम वर्षों-वर्षो तक,
    तेरे छाती में जब नींव डाले थे।
    इतने जल्दी तुम कैसे भूल गए,
    याद करो सारे पत्थर काले थे।।

    घोड़े की टाप से जब तुम बहुत थर्राये,
    तब कराह से आह! शब्द निकला था।
    गुंजी थी आवाज अंग्रेजों की कान में,
    तब सुन आवाज अंग्रेज फिसला था।।

    घबराहट की पसीना आज भी बह रही,
    आज भी खूब दहशत है तेरे मन में।
    तेरे तन के पसीना तो आज भी बह रही ,
    भटक रही है तितर-बितर वन वन में।।

    पर्वतों में पर्वत एक अमूरकोट,
    जिसने सृष्टि प्रलय को देखा है।
    अनादि काल से निरन्तर अब तक।
    वंदनीय ये हिन्दूस्तान की लेखा है।।

    ज्यादा अकड़न भी ठीक नहीं होता,
    जिसमें ज्यादा अकड वही टूटता है।
    ज्यादा गरम होना भी बहुत जरूरी,
    बिना गरम किए लोहा कहां जूडता है।।
    जय हिन्द,,,,🇮🇳 जय भारत,,,,🇮🇳

    सन्त राम सलाम
    भैंसबोड़ (बालोद),छत्तीसगढ़

  • भारत के वीर – पंडित अमित कुमार शर्मा

    भारत के वीर – पंडित अमित कुमार शर्मा

    शहीद, indian army
    शहीद, indian army



    उगा है सूरज जो आज खुशियों का
    लहर रहा तिरंगा
    जो भारत का
    चमक उठी है जो सबके चेहरे पर
    ये देन है वीर जवानों का।

    चलते हैं बर्फ पर
    जब हम अपने बिस्तर में होते है
    जब हम गाते हैं खुशियों के गीत
    तब दुश्मन को मौत की नींद सुलाते है।

    सजता है जो हर त्योहार
    होती है खुशियों की बहार
    जो चैन की सांस हम लेते हैं
    ये भारत के वीरों की है शान।

    जो हर पल वन वन भटकते फिरते हैं
    जमीं से आसमां तक पहरा देते हैं
    तिरंगे को लहराने में
    अपने प्राण को छोड़ जाते हैं।

    किसी का सिंदूर धूलता है
    किसी के भाई होते है
    देश की सुरक्षा की खातिर
    बेटे मां से अलग होते हैं।

    इनकी वीरता का वर्णन
    सूरज से भी लंबा
    समंदर की गहराई से भी बड़ा है
    जो तिरंगा ओढ़ आज जमी में दफन हुआ है।

    इनकी वीरता और साहस का हम सभी नाज करते हैं
    भारत के वीर सपूतों को
    हम हर दिन याद करते हैं।

    दुश्मन के खून की बूंदों से
    इस वतन को सींचा है
    जान को अपनी न्योछावर कर
    तिरंगे को सीने पर लहराया है।

    भारत के इन जवानों को
    तहे दिल से प्रणाम करते हैं
    पाकिस्तान में जय भारत माता
    कहने वाले को
    विंग कमांडर अभिनंदन कहते हैं।

    पंडित अमित कुमार शर्मा
    प्रयागराज,उत्तर प्रदेश

  • चूमता तिरंगा आसमान – हरिश्चन्द्र त्रिपाठी

    चूमता तिरंगा आसमान – हरिश्चन्द्र त्रिपाठी

    शहीदों पर कविता
    शहीदों पर कविता

    आन बान शान का ,विधान आज देखिये,
    हो रहा है देश का ,उत्थान आज देखिये।1।

    अप्सरा भी स्वर्ग से,उतरने को उतावली,
    धन्य भरत-भूमि की मुस्कान आज देखिये।2।

    सप्तरंगी परिधान अम्बर को मोह रहा-
    चूमता तिरंगा आसमान आज देखिये।3।

    नित्य नव प्रशस्त पन्थ देश-प्राण बढ़ रहा,
    जिसके हाथ में सजग कमान आज देखिये।4।

    ऊॅच-नीच,भेदभाव ,शोषण-दमन नहीं,
    समरस का हो रहा बिहान आज देखिये।5।

    हौंसले बुलन्द यहॉ देशवासियों के हैं ,
    ‘हरीश’ वे प्रणम्य नव जवान आज देखिये।6।

    राष्ट्र-धर्म से बड़ा न धर्म कोई भी यहॉ,
    द्रोहियों का मिटता निशान आज देखिये।7।

    नित विकास का नया स्तम्भ बन रहा,
    देश का है पूज्य संविधान आज देखिये।8।

    मौलिक एवम अप्रकाशित।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
    रायबरेली (उप्र)-

  • सच्चा ज्यूरी – रामनाथ साहू ” ननकी “

    सच्चा ज्यूरी – रामनाथ साहू ” ननकी “

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    दीदार जरूरी है ।
    जगत नियंता प्रिय प्रतिपालक ,
    मुझसे क्यों दूरी है ।।

    परम प्रकाशक कण -कण के ,
    अति अद्भुत नूरी है ।
    बस आभास करा दो अपना ,
    अब क्या मगरूरी है ।।

    काँटों में भी प्यारा अनुभव ,
    अपनापन तूरी है ।
    तम भी आनंद प्रदायक हो ,
    आत्मसात पूरी है ।।

    तेरी रहमत से दिन रातें ,
    मेरी सिंदूरी है ।
    तुझे याद कर नृत्य करे नित ,
    अब चित्त मयूरी है ।।

    घनानंद हे आकर बरसो ,
    कौसुम कस्तूरी है ।
    अपने लायक मुझे बना लो ,
    सच्चा तू ज्यूरी है ।।


    रामनाथ साहू ” ननकी “
    मुरलीडीह ( छ. ग. )

  • श्रृंखलाएँ – रामनाथ साहू ननकी

    श्रृंखलाएँ – रामनाथ साहू ननकी

    kavitabahar logo
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    हे काव्य कामिनी ,
    तुम ही मेरी ताकत हो ।
    नूर इलाही दावत हो ।।
    अल्लाह खुशी सरगम सी
    सुब्हो शाम इबादत हो ।।

    हे चित्त स्वामिनी ,
    छंद प्रीत की पदावली ।
    सदा सुगंधित एक कली ।।
    कमलिनी गंध स्वर्गिक सुख ,
    प्रेमिल नयी भावाँजली ।।

    हे भव्य भामिनी ,
    हर अंक पृष्ठ पर होते ।
    प्रणयी उर्वरता बोते ।।
    अंतः प्रेरित मति मंथन ,
    प्रेमालिंगन के गोते ।।

    हे दिवा यामिनी ,
    हो सदैव त्रिकुट उपस्थित ।
    अनुकूलित शुभे व्यवस्थित ।।
    प्रगटित सभी श्रृंखलाएँ ।
    कवि मन सृज प्रिय अभ्यर्थित ।।


    रामनाथ साहू ” ननकी “
    मुरलीडीह ( छ. ग. )