कवयित्री इंदुरानी , स.अ, जूनियर हाईस्कूल, हरियाना, जोया,अमरोहा, उत्तर प्रदेश,244222 ,8192975925
वह भारत देश कहलाता है
है विविधताओं मे एक जहाँ,
वह भारत देश कहलाता है।
हिन्दु ,मुस्लिम, सिख ,ईसाई जहां,
आपस मे भाई-भाई का नाता है।
जहाँ हाथों मे हाथ डाले सब झूमें,
वहाँ तिरंगा नभ में लहराता है।
मिल खिलाड़ी भिन्न-भिन्न सब,
विपरीत देश के छक्के छुड़ाता है।
जहां हर धर्म, जात का सिपाही,
अपनी जान पर भी खेल जाता है।
भारत की गोली के आगे,
दुश्मन भी टिक नही पाता है।
समझ के जिसके संस्कृति को,
विदेशी भी सर झुकाता है।।
झूले सावन,मेले बैसाख,
हर का मन को हर्षाता है।
कन्या को देवी का रूप,
नदियों को माँ कहा जाता है।
रंग रूप बोली भाषा अनेक,
जहाँ सभ्यता प्रेम सिखाता है।
जहाँ प्रकृति और पत्थर भी
सम्मान से पूजा जाता है।
जहाँ का संविधान समता और, समानता की बात समझाता है।
जहाँ का इतिहास सदा
महापुरुषों की गाथा गाता है।
सिर्फ भारतवासी ही नहीं
ये जहाँ महानता दोहराता है।
है विविधताओं में एक जहां,
वह केवल भारत कहलाता है।
बापू जी- कविता
बापू जी ओ बापू जी
बच्चों के प्यारे बापूजी।
सत्य,अहिंसा,परमो धर्म
राम पुजारी बापू जी।
मात्र एक लाठी के बूते
गोरों को हराया बापूजी।।
असहयोग आंदोलन के साथी
कर के सीखो,सिखलाया बापूजी।
देख दुखिया भारत की हालत
ना रह पाए थे बेचैन बापू जी।।
त्याग, टोपी सूट-बूट को
धोती पर आए बापू जी।
देके सांसे भारत को अपनी
दी मजबूती सबको बापूजी।।
देखो नव भारत की दशा
लो फिर से जन्म बापूजी।
बाँट रहा कौन भेद भाव मे
आकर समझाओ बापूजी।।
राधे-बसंत
नटखट नंदलाला,नैन विशाला,
कैसो जादू कर डाला।
फिरे बावरिया,राधा वृंदावन,
हुआ मन बैरी मतवाला।।
ले भागा मोरे हिय का चैना,
वो सुंदर नैनो वाला।
मोर मुकुट,पीताम्बर ओढ़े,
कमल दल अधरों वाला।।
अबके बसंत,ना दुख का अंत,
बेचैन ह्रदय कर डाला।
पल पल तड़पाती मुरली धुन,
पतझड़ जीवन कर डाला।।
कोयल की कूक,धरती का रूप,
यूँ घाव सा है कर जाता।
मेरो वो ताज,मनमुराद,मुरलीधर,
बन कर बसंत आ जाता।।
आमोंकी डाल,कालियोंकी साज,
सब कुछ मन को भा जाता।
फूलों की गंध,बयार बसंत,
सोलह श्रृंगार बन जाता।।
बाहों का हार करे इन्तजार,
कान्हा फिर से आ जाता।
सरसों के खेत,यादों की रेत,
बाग बाग गीला हो जाता।।
दुनिया का हर इंसान
दुनिया का हर इंसान,
अपने मे है परेशान।
बैठा ऊँची पोस्ट पर,
पर खोता चैन अमान।।
ढूढ़ता दूजे मे,
चाहत का नया जहान।
खोता सा है जाता,
अपनी ही पहचान।।
भरा पड़ा घर पूरा,
फिर भी बाकी अरमान।
तृषक चातक ज्यों,
तके बदली हैरान।।
रिजर्व हो गई दुनिया,
नहीं एक दूजे से काम।
बटँ गईं घर की दीवारें,
दिलों मे पड़ी दरार।।
जाने क्या ऐसा हो गया,
नही किसी का कोई अहसान।
औरों से गाँथे रिश्ते,
सगों को दे फटकार।।
गैरों से मुँह को मिलाए,
अपनो को दे तकरार।
खोखले हो गए रिश्ते,
अपनो से ही है अंजान।।
फायदा इन्ही का उठा के,
दुष्ट औ बिल्डर बना महान।
तरस सी रही धरती,
रोता सा आसमान।।
नारी का जीवन
बँधा पड़ा नारी का जीवन,
सुबह से ले कर शाम।
एक चेहरा किरदार बहुत,
जिवन में नही विश्राम।।
बेटी,बहन ,माँ और पत्नी,
बन कर देती आराम।
दिखती सहज,सरल पर,
लेकिन होती नही आसान।।
भले बीते दुविधा में जीवन,
नही होती परेशान।
ताल मेल हरदम बिठाती,
बनती अमृत के समान।।
परोपकार की देवी होती,
करती नव जीवन दान।
अनमोल उपहार ये घर का,
प्रकृती का है वरदान।।
नारी सशक्तिकरण
बन ऐसी तू धूल की आँधी,
जिसमे सब कुछ उड़ जाए।
तुझे तो क्या कोई तेरे चिर को,
भी ना हाथ लगा पाए।
अपने कोमल तन-मन पे तू,
खुद ही कवच कोई धारण कर।
शीश झुका कर करें नमन सब,
जीवन तक न कोई पैठ बना पाए।
बात करे कोई तुझे अदब से,
निगाहें पर ना मिला पाए।
भला करे तो कर ले पर वो,
नुकसान की न सोच बना पाए।।
नए भारत की नई तस्वीर दिखलाता है योग
नए भारत की नई तस्वीर दिखलाता है योग,
मन मस्तिष्क स्वस्थ रहे
काया बने निरोग।
समझें हम योग महत्व
रहे दवाई दूर,
आया दौर बढ़ने का
फिर पुरातन की ओर।।
गली गली अब बज रहा
योगा के ही ढोल,
बच्चा बच्चा बोल रहा
अब योगा के बोल।
भारतीय सभ्यता में शामिल
है ये स्वास्थ्य का मंत्र,
आओ मिल कर जतन करें
सीखें इसके तंत्र।।
✒इंदुरानी, अमरोहा,उत्तर प्रदेश