Author: कविता बहार

  • इंदुरानी की कवितायेँ

    कवयित्री इंदुरानी , स.अ, जूनियर हाईस्कूल, हरियाना, जोया,अमरोहा, उत्तर प्रदेश,244222 ,8192975925

    tiranga

    वह भारत देश कहलाता है

    है विविधताओं मे एक जहाँ,
    वह भारत देश कहलाता है।
    हिन्दु ,मुस्लिम, सिख ,ईसाई जहां, 
    आपस मे भाई-भाई का नाता है।
    जहाँ हाथों मे हाथ डाले सब झूमें,
    वहाँ तिरंगा नभ में लहराता है।


    मिल खिलाड़ी भिन्न-भिन्न  सब,
    विपरीत देश के छक्के छुड़ाता है।
    जहां हर धर्म, जात का सिपाही,
    अपनी जान पर भी खेल जाता है।
    भारत की गोली के आगे,
    दुश्मन भी टिक नही पाता है।
    समझ के जिसके संस्कृति को,
    विदेशी भी सर झुकाता है।।


    झूले सावन,मेले बैसाख,
    हर का मन को हर्षाता है।
    कन्या को देवी का रूप,
    नदियों को माँ कहा जाता है।
    रंग रूप बोली भाषा अनेक,
    जहाँ सभ्यता प्रेम सिखाता है।
    जहाँ प्रकृति और पत्थर भी
    सम्मान से पूजा जाता है।
    जहाँ का संविधान समता और, समानता की बात समझाता है।


    जहाँ का इतिहास सदा
    महापुरुषों की गाथा गाता है।
    सिर्फ भारतवासी ही नहीं
    ये जहाँ महानता दोहराता है।
    है विविधताओं में एक जहां,
    वह केवल भारत कहलाता है।

    बापू जी- कविता

    बापू जी ओ बापू जी
    बच्चों के प्यारे बापूजी।
    सत्य,अहिंसा,परमो धर्म
    राम पुजारी बापू जी।
    मात्र एक लाठी के बूते
    गोरों को हराया बापूजी।।

    असहयोग आंदोलन के साथी
    कर के सीखो,सिखलाया बापूजी।
    देख दुखिया भारत की हालत
    ना रह पाए थे बेचैन बापू जी।।

    त्याग, टोपी सूट-बूट को
    धोती पर आए बापू जी।
    देके सांसे भारत को अपनी
    दी मजबूती सबको बापूजी।।

    देखो नव भारत की दशा
    लो फिर से जन्म बापूजी।
    बाँट रहा कौन भेद भाव मे
    आकर समझाओ बापूजी।।

    राधे-बसंत

    नटखट नंदलाला,नैन विशाला,
    कैसो जादू कर डाला।
    फिरे बावरिया,राधा वृंदावन,
    हुआ मन बैरी मतवाला।।


    ले भागा मोरे हिय का चैना,
    वो सुंदर नैनो वाला।
    मोर मुकुट,पीताम्बर ओढ़े,
    कमल दल अधरों वाला।।


    अबके बसंत,ना दुख का अंत,
    बेचैन ह्रदय कर डाला।
    पल पल तड़पाती मुरली धुन,
    पतझड़ जीवन कर डाला।।


    कोयल की कूक,धरती का रूप,
    यूँ घाव सा है कर जाता।
    मेरो वो ताज,मनमुराद,मुरलीधर,
    बन कर बसंत आ जाता।।


    आमोंकी डाल,कालियोंकी साज,
    सब कुछ मन को भा जाता।
    फूलों की गंध,बयार बसंत,
    सोलह श्रृंगार बन जाता।।


    बाहों का हार करे इन्तजार,
    कान्हा फिर से आ जाता।
    सरसों के खेत,यादों की रेत,
    बाग बाग गीला हो जाता।।

    दुनिया का हर इंसान    

    दुनिया का हर इंसान,
        अपने मे है परेशान।
    बैठा ऊँची पोस्ट पर,
         पर खोता चैन अमान।।

    ढूढ़ता दूजे मे,
          चाहत का नया जहान।
    खोता सा है जाता,
          अपनी ही पहचान।।

    भरा पड़ा घर पूरा,
          फिर भी बाकी अरमान।
    तृषक चातक ज्यों,
           तके बदली हैरान।।

    रिजर्व हो गई दुनिया,
           नहीं एक दूजे से काम।
    बटँ गईं घर की दीवारें,
           दिलों मे पड़ी दरार।।

    जाने क्या ऐसा हो गया,
         नही किसी का कोई अहसान।
    औरों से गाँथे रिश्ते,
            सगों को दे फटकार।।

    गैरों से मुँह को  मिलाए,
             अपनो को दे तकरार।
    खोखले हो गए रिश्ते,
              अपनो से ही है अंजान।।

    फायदा इन्ही का उठा के,
           दुष्ट औ बिल्डर बना महान।
    तरस सी रही धरती,
             रोता सा आसमान।।

    नारी का जीवन

    बँधा पड़ा नारी का जीवन,
    सुबह से ले कर शाम।
    एक चेहरा किरदार बहुत,
    जिवन में नही विश्राम।।


    बेटी,बहन ,माँ और पत्नी,
    बन कर देती आराम।
    दिखती सहज,सरल पर,
    लेकिन होती नही आसान।।


    भले बीते दुविधा में जीवन,
    नही होती परेशान।
    ताल मेल हरदम बिठाती,
    बनती अमृत के समान।।


    परोपकार की देवी होती,
    करती नव जीवन दान।
    अनमोल उपहार ये घर का,
    प्रकृती का है वरदान।।

    नारी सशक्तिकरण      

    बन ऐसी तू धूल की आँधी,
    जिसमे सब कुछ उड़ जाए।

    तुझे तो क्या कोई तेरे चिर को,
    भी ना हाथ लगा पाए।

    अपने कोमल तन-मन पे तू,
    खुद ही कवच कोई धारण कर।

    शीश झुका कर करें नमन सब,
    जीवन तक न कोई पैठ बना पाए।

    बात करे कोई तुझे अदब से,
    निगाहें पर ना मिला पाए।

    भला करे तो कर ले पर वो,
    नुकसान की न सोच बना पाए।।

    नए भारत की नई तस्वीर दिखलाता है योग

    नए भारत की नई तस्वीर दिखलाता है योग,
    मन मस्तिष्क स्वस्थ रहे
    काया बने निरोग।
    समझें हम योग महत्व
    रहे दवाई दूर,
    आया दौर बढ़ने का 
    फिर पुरातन की ओर।।

    गली गली अब बज रहा
    योगा के ही ढोल,
    बच्चा बच्चा बोल रहा
    अब योगा के बोल।
    भारतीय सभ्यता में शामिल
    है ये स्वास्थ्य का मंत्र,
    आओ मिल कर जतन करें
    सीखें  इसके तंत्र।।

    इंदुरानी की कवितायेँ

    ✒इंदुरानी, अमरोहा,उत्तर प्रदेश

  • देवकरण गंडास अरविन्द की कवितायेँ

    यहाँ पर देवकरण गंडास अरविन्द की कवितायेँ दी जा रही हैं

    labour

    श्रमिक का सफर

    जब ढलता है दिन सब लौटते घर
    हर चेहरा कहां खुश होता है मगर,
    उसका रास्ता निहारती कुछ आंखें
    पर खाली हो हाथ तो कठिन डगर।
    ऐसा होता है श्रमिक का सफर…..

    उसने सारा दिन झेला धूप पसीना
    बना लिया है उसने खुद को पत्थर
    हाथ पांव बन गए हो जैसे लोहे के
    और काठ के जैसी बन गई कमर।
    ऐसा होता है श्रमिक का सफर….

    वह करता है दिलो जान से मेहनत
    वो सारा दिन ढोता है भार सर पर,
    पर सांझ ढले जब घर को चला वो
    उसके मन में आ जाता है एक डर।
    ऐसा होता है श्रमिक का सफर….

    पत्नी की अंखियां भी पथ को देखे
    और उसे ताक रही बच्चों की नजर,
    लिए हाथ फावड़ा , कंधे पर तगारी
    आज बिन राशन के कैसे जाए घर।
    ऐसा होता है श्रमिक का सफर…..

    वह ढूंढ रहा कोई रहबर मिले अब
    कैसी कठिन परीक्षा, ले रहा ईश्वर,
    कहीं से चंद पैसे मिल जाए उसको
    तो ही चूल्हा जलेगा उसके घर पर।
    ऐसा होता है श्रमिक का सफर…..

    पूछती है

    उलझन में डालकर उलझन का हल पूछती है,
    कमल से मिलकर कमल को कमल पूछती है,
    उसका यही अंदाज तो बेहद पसंद आया हमें,
    वो मिलकर आज से, कल को कल पूछती है।

    वह शबनम से, उस पानी का असर पूछती है,
    वो मरुस्थल में , उस मिट्टी से शजर पूछती है,
    वो खुद है तलाश में , किसी नखलिस्तान की,
    उसकी नजर में है नजर , पर नजर पूछती है।

    वो रहकर गगन में, आसमां की हद पूछती है,
    वो सूरज से उसकी किरणों की जद पूछती है,
    वो चली आई है बिना बताए मेरी सीमाओं में,
    और आकर मुझसे दिल की सरहद पूछती है।

    वो लड़की

    हर रोज मेरे पटल पर आकर
    थोड़ा बहुत कुछ कह जाती है
    कभी बातें करती बहुत सयानी
    कभी अल्हड़पन भर जाती है
    मेरे पटल पर आती वो लड़की
    मुझे बरबस ही खींचे जाती है।

    कभी लगता है उसे जानता हूं
    फिर वो अनजान बन जाती है
    जितना समझूं मैं उतना उलझूं
    वो भी सुलझाकर उलझाती है
    मेरे पटल पर आती वो लड़की
    मुझे बरबस ही खींचे जाती है।

    उसकी बातों में है चतुराई बहुत
    और सादगी भी वह दिखाती है
    मानस पटल पर आए प्रश्नों को
    कुशाग्र बुद्धि से वह मिटाती है
    मेरे पटल पर आती वो लड़की
    मुझे बरबस ही खींचे जाती है।

    भूख : एक दास्तान

    हमने तो केवल नाम सुना है
    हम ने कभी नहीं देखी भूख,
    जो चाहा खाया, फिर फैंका
    हम क्या जानें, है क्या भूख।

    पिता के पास पैसे थे बहुत
    अपने पास ना भटकी भूख,
    झुग्गी बस्ती, सड़क किनारे
    तंग गलियों में अटकी भूख।

    पढ़ ली परिभाषा पुस्तक में
    कि इतने पैसों से नीचे भूख,
    खाल से बाहर झांके हड्डियां
    रोज सैकड़ों आंखे मिचे भूख।

    बच्चों में बचा है अस्थि पंजर
    इनका मांस भी खा गई भूख,
    हमको क्या , हम तो जिंदा हैं
    भूख में भूख को खा गई भूख।

    सब जग बोलेगा जय श्री राम

    जन्म लिया प्रभु ने धरती पर
    तो यह धरती बनी सुख धाम,
    गर्व है, हम उस मिट्टी में खेले
    जहां अवतरित हुए प्रभु राम।

    राम नाम में सृष्टि है समाहित
    इस नाम में बसे हैं चारों धाम,
    हर संकट को झट से हर लेते
    सब मिल बोलो जय श्री राम।

    जिनकी मर्यादा एक शिखर है
    और पितृभक्ति का है गुणगान,
    हर कष्ट सहा पर मन ना डगा
    मेरे मन में बसते ऐसे श्री राम।

    सुख वैभव का उन्हें मोह नहीं
    दीन दुख हरण है उनका नाम,
    नाश किया उन्होंने अधम का
    धर्म संस्थापक हैं मेरे प्रभु राम।

    बस राम नाम के मैं गुण गाऊं
    उन्हें कोटि कोटि करूं प्रमाण,
    राम नाम ही तारेगा भवसागर
    सब जग बोलेगा जय श्री राम।

    जरूरी है देश

    देश के रखवालों को मार रहे हैं
    वो इस राष्ट्र में फैला रहें हैं द्वेष,
    अब तो जागो सत्ता के मालिक
    अभी धर्म तुच्छ, जरूरी है देश।

    होकर इकट्ठा बने रोग के वाहक
    क्यों आ रहे इनसे नरमी से पेश,
    अब बंद करवा दो सभी दुकानें
    अभी धर्म तुच्छ, जरूरी है देश।

    हर भारतवासी विनती कर रहा
    अब रोक लो, अभी समय शेष,
    ये मानव के दुश्मन ना समझेंगे
    अभी धर्म तुच्छ, जरूरी है देश।

    जब वतन में अमन आ जाएगा
    तो ओढ़ लेना तुम धर्म का भेष,
    अभी विपदा खड़ी समक्ष हमारे
    अभी धर्म तुच्छ, जरूरी है देश।

    पुनः विश्व गुरु बनेगा भारत

    हम पहले हुआ करते थे विश्वगुरु, हमारी ज्ञान पताका फहराती थी,
    सकल चराचर है परिवार हमारा , ये बात हवाएं भी गुनगुनाती थी।

    लेकिन आधुनिक बनते भारत ने, खो दिया है विश्व गुरु उपाधि को,
    हम बन गए अनुगामी पश्चिम के, पालने लगे हैं व्यर्थ की व्याधि को।

    हम भूल बैठे अपनी संस्कृति को, और पश्चिम के पीछे लटक गए ,
    दया, धर्म, ज्ञान और प्रकृति के, हम उद्देश्य से थे अपने भटक गए।

    पर आज लौट रहा है मेरा भारत, पुनः अपने मूल प्राचीन पथ पर,
    ये वैश्विक शांति का अगुवा बना, हो रहा विश्व गुरु पथ पर अग्रसर।

    आज विश्व की सब सभ्यताओं ने, हमारी संस्कृति को गुरु माना है,
    पश्चिम के देश चले पूरब की ओर, हमारी ओर देख रहा जमाना है।

    भारतीय ज्ञान, विज्ञान और योग को, आज हर राष्ट्र ने अपनाया है,

    गूंजेगा वसुधैव कुटुंबकम् नारा, आज विश्व ने भारत को बुलाया है।

    दो रोटी

    जर्जर सा बदन है, झुलसी काया,
    उस गरीब के घर ना पहुंची माया,
    उसके स्वेद के संग में रक्त बहा है
    तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।

    हर सुबह निकलता नव आशा से,
    नहीं वह कभी विपदा से घबराया,
    वो खड़ा रहा तुफां में कश्ती थामे
    तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।

    वो नहीं रखता एहसान किसी का,
    जो पाया, उसका दो गुना चुकाया,
    उस दर को सींचा है अपने लहू से
    तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।

    उसकी इस जीवटता को देख कर
    वो परवरदिगार भी होगा शरमाया,
    पहले घर रोशन किए है जहान के
    तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।

    क्या राम फिर से आएंगे

    तड़प उठी है नारी
    बन रही है पत्थर,
    दबा दिया है उसने
    अपने अरमानों को,
    छुपा लिया है उसने
    अपने मनोभावों को,
    वो जिंदा तो है मगर
    जीती नहीं जिंदा की तरह,
    जमाने की निष्ठुरता ने
    उसे बना दिया है अहिल्या,
    और आज वो इंतजार में है
    कि क्या राम फिर से आएंगे।

    त्रेता युग में उद्धार किया था
    राम ने श्रापित अहिल्या का,
    उस पत्थर में उसने डाला था
    नया प्राण नव जीवन का,
    मगर क्या इस कलयुग में भी
    होती शापित नारी को बचाएंगे,
    तार तार हो रही इस नारी को
    क्या वो भव सागर तार पाएंगे,
    हर गली चौराहे बैठे हैं रावण
    करने को हरण सीता का यहां,
    सुनकर नारी की करुण पुकार
    क्या सांत्वना उसे वो दे पाएंगे,
    सोच रही है पत्थर की अहिल्या
    कि क्या राम फिर से आएंगे।

    आओ मिलकर दीप जलाएं


    अगर दीप जलाना है हमको
    तो पहले प्रेम की बाती लाएं
    घी डालें उसमें राष्ट्र भक्ति का
    और राष्ट्र का गुण गान गाएं।
    आओ मिल कर दीप जलाएं

    जाति पांती वर्ग भेद भुलाकर
    हम हर मानव को गले लगाएं
    राष्ट्र में स्थापित हो समरसता
    हम हर पर्व साथ साथ मनाएं।
    आओ मिल कर दीप जलाएं।

    भुलाकर नफ़रत को अब हम
    दया, प्रेम और सौहार्द बढ़ाएं
    अमन, प्रेम और मानवता का
    हम इस जगत को पाठ पढ़ाएं।
    आओ मिल कर दीप जलाएं।

    दीन दुखी पिछड़े तबकों को
    हाथ पकड़ हम साथ में लाएं
    ना भूखा सोए एक मुसाफिर
    हम भूखे को खाना खिलाएं।
    आओ मिल कर दीप जलाएं।

    जब देश में कोई विपदा आए
    हम सब हाथ से हाथ मिलाएं
    सर्वस्व न्यौछावर करें राष्ट्र पर
    और राष्ट्र हित में जान लुटाएं।
    आओ मिल कर दीप जलाएं।

    नापाक ताकतें तोड़ेंगी हमको
    हम नहीं उनकी बातों में आएं
    हम हैं हिंद देश के हिन्दुस्तानी
    हिन्दुस्तान के रंग में रंग जाएं।
    आओ मिल कर दीप जलाएं।

    जीवन सफर

    सुन लो जीवन के मुसाफिर, यूं ना इसको बर्बाद करो,

    रंग भरो तुम अपने इसमें, औरों से नहीं फरियाद करो,

    लोग बड़े बेरहम यहां पर, तेरे जले पर नमक लगाएंगे

    अपने ज़ख्म आप संभालो, खुद को ख़ुद आबाद करो।

    दुनियां की यहां रीत निराली, ये तुमको आगे बढ़ाएंगे,

    जो तुम आगे बढ़ जाओगे, ये पांव खींचने लग जाएंगे,

    औरों का आगे बढ़ना, कभी बर्दाश्त नहीं ये कर सकते

    तुम्हें नीचे गिराने के चक्कर में, खुद नीचे गिरते जाएंगे।

    जीवन सफर अबूझ रहस्य, आगे क्या होगा ध्यान नहीं,

    आज को जी ले जी भर के, कोई शेष रहे अरमान नहीं,

    कल का सोच क्यों आज परेशान, कल किसने देखा है

    जीवन जिंदा लोगों का है, मर गए तो घर में स्थान नहीं।

    देवकरण गंडास अरविन्द की कवितायेँ

    ©️देवकरण गंडास “अरविन्द”

  • राजकुमार मसखरे की कवितायेँ

    राजकुमार मसखरे की कवितायेँ

    यहाँ पर राजकुमार मसखरे की कवितायेँ प्रकाशित की गयी हैं आप इन कविता को पढ़कर अपनी राय जरुर दें कि आपको कौन सी कविता अच्छी लगी.

    Hindi Poem ( KAVITA BAHAR)
    कविता संग्रह

    इन्हें पहचान !


    कितने राजनेताओं के सुपुत्र
    सरहद में जाने बना जवान !
    कितने नेता हैं करते किसानी
    ये सुन तुम न होना हैरान !
    बस फेकने, हाँकने में माहिर
    जनता को भिड़ाने में महान !
    भाषण में राशन देने वाले
    यही तो है असली शैतान !
    किसान के ही अधिकतर बेटे
    सुरक्षा में लगे हैं बंदूक तान !
    और खेतों में हैअन्न उपजाता
    कंधे में हल है इनकी शान !
    इन नेता जी के बेटों को देखो
    कई के ठेके,कीमती खदान !
    संगठन में हैं कितने काबिज़
    रंगदारी के हैं लाखों स्थान !
    बस ये नारा लगाते हैं फिरते
    जय जवान , जय किसान !
    किसान, मजदूर, जवान ही तो
    ये ही हैं धरती के भगवान !
    कुर्सी के लिए लड़ने वालों को
    हे मेहनतकशों !इन्हें पहचान!

    राजकुमार मसखरे

    बनावटी चेहरे पर कविता

    चेहरे पे लगे हैं कई चेहरे
    इन्हें पढ़ पाना आसान नहीं ,
    ये जो दिखती है मुस्कुराहटें
    वो नजरें हैं दूर , और कहीं !

    इतने सीधे सादे लगते हैं
    जो मुखौटा लगाए बैठे हैं,
    ये कई निर्बलों,असहायों के
    जज़्बातों के गला ऐंठे हैं !

    मासूम चेहरा, दिखते कई हैं
    भीतर ‘राज’ छुपा के रखते हैं,
    जब भी मौका मिले इन्हें तो
    सीधे-सीधे गरल उगलते हैं !

    सूरत पर मत जाओ यारों
    इनकी सीरत का पता लगाओ,
    न जानें ये कब रंग बदल दे
    फिर कालांतर में न पछताओ !

    — *राजकुमार मसखरे*

    विवाह: प्रश्नचिन्ह

    विवाह पर विभिन्न तरह के
    विवाद खड़े होते हैं,
    कहते हैं कई आबाद हुये
    तो कोई बरबाद !
    दहेज मिला, हुआ आबाद
    दिये दहेज,हुये बरबाद !
    लेकिन यथार्थ में
    एेसा नही होता —
    जो आबाद का जामा पहने हैं
    उनकी आवश्यकताएँ अनंत होती है,
    और मांग उपर मांग रखते हैं !
    नही मिलने पर /प्रताड़ना स्वरूप
    बहु जला दी जाती है या जल जाती है ,
    फिर कथित आबाद होने वालों की
    बरबादी की बारी आती है !
    दहेज देने वाले तो
    पहले ही बरबाद हैं ।
    कहीं कहीं ही इस आधुनिक विवाह में
    अपने पवित्र बंधन को निभा पाते हैं !
    नही तो इस बंधन से
    मुक्त होना चाहते हैं ।
    आज समाज पर यह
    प्रश्न चिन्ह खड़ा है !

        — राजकुमार मसखरे ??
                     मु.-भदेरा

    कवि जो ऐसे होते हैं

    कवि के हाथ मे है बाँसुरी
    जो मधुर स्वर प्रवाहित करता है ,
    आवश्यकता होने पर कवि
    युद्ध का शंखनाद वह भरता है !
    कवि साहित्य में अपनी कलम से
    समाज मे अमूलचूल परिवर्तन लाता है,
    धर्म,नीति,राजनीति,तथा उपदेश
    ये जो पास ठहर नही  पाता है !
    कवि जो होता बिलकुल मनमौजी
    जिस पर बाह्य नियत्रंण न होता है,
    फिर भी मर्यादाओं में बंध कर वो
    श्रेष्ठ मानव,प्रबुद्ध विचारक होता है !
    नैतिक,मौलिक,दार्शनिक मूल्यों का
    लेखन में बखूबी सामंजस्य पिरोता है,
    केवल मनोरंजन वह रचता नही
    उचित उपदेश का मर्म संजोता है !
          — राजकुमार मसखरे

    तू तो शेर है

    इंसान को कह दो कि
    तू तो शेर है
    फिर देखना उनकी बाजूओं में
    कितना जोर है !
    गर कह दो कि
    तू तो है जानवर
    फिर कह उठेगा
    तू तो गधा है
    समझे मान्यवर !
    अब जानवर मे
    समझना है फर्क
    इंसान होने का नाटक
    करते रहो तर्क-वितर्क !
    भई जानवर तो
    जानवर होता है
    पर नही कह सकते
    सभी इंसान
    इंसान भी होता है !
    अब पशु भी
    सभ्य-भद्र होने लगे
    कथित इंसान की
    इंसाननियत देख कर
    वे भी रोने लगे !
    मौका परस्त इंसान
    मौका देख कर रंग बदलता है
    और इधर ये पशु
    अपना रंग बदलता है
    न धर्म बदलता है
    न अपनों से जलता है !
    इंसान ये मूक,हिंसक पशु
    शेर कहलाना गर्व समझता है
    इधर मरियल सा भी कुत्ता
    रामु,मोती का होना
    उसे बहुत ‘अखरता’ है !     —- *राजकुमार मसखरे*

    नव वर्ष (चिंतन)

    मैने नव वर्ष का उत्सव,नही मनाया है
    और ये नव वर्ष क्या,समझ न आया है ,
    वही दिन वही रात, कुछ न अंतर पाया है
    मैने नव वर्ष का उत्सव नही मनाया है !

    न तुम बदले ,न हम बदले
    अब काहे को भरमाया है…..मैने…!

    गरीब की झोपड़ी बद से बदतर
    और भी ये उड़ आया है ………मैने…..!

    तेरा गुरूर और मेरा अहम्
    आज फिर से टकराया है …..मैने……!

    सत्य छोंड कर, झुठ प्रपंच को
    आज तुने फिर सिरजाया है….मैने…..!

    नैतिक जीवन जीने का,क्या सोचा
    क्या तुने कसम खाया है ……मैने……!

    न दुर्गूण त्यागे ,न सदगुण अपनाए
    बस मोह का जाल बिछाया है ……मैने…..!

    आकण्ठ में डूबे, भ्रष्टाचार का
    दूर हटाने,कोई कदम उठाया है….मैने……!

    राजनीति  से  नेता बने तुम
    राजधर्म कहाँ छोड़ आया है ….मैने……….!

    जल,जंगल,जमीन की करें  रक्षा
    क्या इस पर दीप जलाया है …..मैने……..!

    मैने नव वर्ष का उत्सव नही मनाया है .!!!!!

           —- राजकुमार मसखरे
                 मु. -भदेरा (पैलीमेटा-गंडई)
                 जि.-राजनांदगाँव,( छ. ग. )

    प्रश्न….?

    हे ! द्रोपदी
    अब कृष्ण नही आएंगे
    अपनी लाज बचाने
    स्वयं सुदर्शन चलाना होगा !
    हे सीते !
    अब राम नही आएंगे
    अपहरण के बदले
    स्वयं को धनुष चलाना होगा !
    हे ! निर्भया, हे प्रियंका…
    ये सरकार पर…
    ये न्यायालय पर
    ये पत्रकार पर…
    भरोसा मत कर.
    अब ‘बैंडिट क्वीन’ बन
    फैसले अपने हाथ में ले
    उतार दे गोली उस दरिंदे के सीने पर
    बीच चौराहे पर !!

    —- राजकुमार मसखरे

    संत बने जो नेता !

    बाबा,योगी,साध्वी संत
    साधु,त्यागी और महंत!

    पहले लगाये रहते थे ये ध्यान
    समाज सुधार,अध्यात्म महान !

    प्रवचन,भक्ति,योग और तपस्या
    हल करते थे,पीडितों की समस्या !

    हिमालय,कानन,कंदरा मे जाते
    शांति के खोज मे रमे ही पाते !

    आज ये कुछ रास्ता भटक गये
    माया-मोह के कुर्सी में अटक गये !

    शांति मिलती अब इन्हे वो सदन में
    नकली चोला,देखो डाले बदन में !

    कब कैसे मंत्री बनूूँ ,ये अब ताक रहे
    तभी विधानसभा,संसद को झाँक रहे!

    झोपड़ी से अब महल मे आसन लगाये
    प्रवचन छोड़,जनता को भाषण पिलाये!

    इनके पाँचों उँगली घी मे है मस्त
    जनता इनके कारनामों से है त्रस्त !

    तब ये क्या थे,अब क्या हो रहा देश मे
    साधु-संत सब देखो नकली वेष में !

    कहाँ हो भगवन अब आ भी जाओ
    इन बहुरूपियों को जरा होश मे लाओ !   

    राजकुमार मसखरे

    चलो विकास दिखाएँ !


    सड़कों का जाल बिछाएँ
    कृषि जमीन काट कर
    हम विकास बताएँ…………..
             चलो…….. !
    बड़े बड़े नहर सजाते रहें
    रास्ते मे आये घने पेड़ को
    काट,आरा मिल ले जाएँ…….
             चलो………..!
    समृद्धि के लिये भारीभरकम
    कारखाना,चिमनी लगा कर
    प्रदूषित जल नदी मे बहाएँ….
             चलो…………!
    फसल के उपर फसल हो
    मृत मृत हो मृदा फिर भी
    रसायनों का उपयोग कराएँ…
             चलो…………!
    जगह जगह हो मदिरालय
    कैसिनों हो या हुक्का बार
    हर गाँव गाँव लगवाएँ……….
              चलो…………!
    नलकूपों का हो भरमार
    पानी है आज सरल लगा
    चाहे कुएँ,तालाब सूख जाएं…
             चलो……………!
    जगमग बिजली,डी.जे.धुन
    ग्लोबल वार्मिंग को भूल कर
    थिरक थिरक नाच कर जाएँ..
             चलो विकास दिखाएँ !       — *राजकुमार मसखरे*

    एक दिन तुझे है जाना

    एक दिन तुझे है जाना
    काहे को है इतना गुमान,
    महल-अटारी वाले धनवान
    या झुग्गी के महा-इंसान !


    तुला मे सबको तौल रहा
    नीली छतरी वाले भगवान !
    उनको भी है जाना——-
    हृदयघात,मधुमेह,गुर्दा
    या भारी अवसाद से !


    इनको भी है जाना ——-
    भुखमरी, गरीबी, कर्ज
    या कोई संताप,फसाद से !


    कितने ढ़ोगी,संत,नेता,बाबा
    पहुँच गये हैं जेल मे ,
    और कितने हैं भूमिगत
    न जाने कितने बेल में !


    सब हिसाब-किताब होगा
    बराबर यहीं इहलोक मे ,
    कुछ बाकी रह जायेगा तो
    उसका भी होगा परलोक मे !


    दुनिया को तुम समझो यारों
    ये दुनिया है सब गोल-गोल,
    रत्ती नही जायेगा संग मे
    बोलो सबसे मीठे बोल !

              —– राजकुमार मसखरे

    नाम बड़ा या काम

    क्या रखा है नाम में
    जो नाम बदलते जा रहे ,
    ध्यान रहा न  काम में
    जो काम से ध्यान हटा रहे।


    जो नाम दर्ज इतिहास मे
    उनका वजूद तुम मिटा रहे ,
    इतिहास से छेडछाड़ में
    अपना फर्जी नाम कमा रहे ।

    बेशक कामदार बनो तुम
    ये नामदार को क्यों भा रहे ,
    भ्रम में पड़ी जनता सारी
    तुम बस भैरवी राग सुना रहे ।


    जरूर अपना नाम बदलो
    गर काम नही करा पा रहे ,
    मसखरे का चिंता छोड़ो
    क्या मंगल में बसने जा रहे ।


    —- राजकुमार मसखरे

    देख प्रकृति अधुरी है !

    देखो ये प्रकृति स्वयं है अधुरी
    तो कैसे होगी तेरी इच्छा पूरी !
    चाँद के पास शीतल सौम्य है चाँदनी
    पर सुन्दर उपवन की,नही कोई कहानी ।


    सूर्य के पास तेज प्रकाश प्रबल है
    पर कहाँ वहाँ,पीने शीतल जल है ।
    समुद्र के पास है अथाह जल राशि
    पर तृप्त होने,मीठा जल की प्यासी !


    पृथ्वी के पास देखो जीवंत संसार है
    पर रोशनी का कोई नही आसार है ।
    देखो ये प्रकृति तो हमेशा ही अधुरी है
    तभी अपूर्णता,नये निर्माण की धुरी है ।

    धन संग्रह की आदत तो गजब  भयी
    विषयों को भोगते, ये जिन्दगी गयी ।
    अधुरी प्रकृति में ये दृष्टि दौडा़ना छोंड़
    अंतर्दृष्टि आत्मा से निकालो इसका तोड़ ।


    देखो संतोषी तो हरदम परम सुखी है
    मिला संतोष धन,तब कोई नही दुखी है ।


    राजकुमार मसखरे
         भदेरा+पैलीमेटा (गंडई)
          जि.-राजनांदगाँव,छ.ग.

    ये रिश्ता क्या कहलाता है

    ये रिश्ता क्या कहलाता है
    मुझे समझ नही आता है !
    सुख-दुख में साथ जरूर होते
    बस औपचारिकता निभाता है!
    मजबूरी में आता,चला जाता
    सौजन्य भेंट,नही सुहाता है !
    कभी कुशल क्षेम भी पूछ लेते
    तेरे लिये समय,कहाँ आता है !
    बस रिश्ते को हैं ढो़ रहे सभी
    अपनेपन का एहसास रह जाता है !
    मस्त ‘ सीरियल ‘ देख रहे
    ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है !’


        — राजकुमार मसखरे

    *धारा 370,35-A*
    ××××××××××××××  

    राजकुमार मसखरे की कवितायेँ

    जन्नत ल जहन्नूम होय बर
    अगर बचाना हे…,

    अनुच्छेद  370,35-A


    जरूर हटाना हे…! ये धारा जब तक
    इँहा काश्मीर ले नइ हटही,
    तब तक जान लव
    ये स्वर्ग ह बारूद म पटही! विशेष अधिकार मिले ले
    फोकट अउ सस्ता में
    खाय बर मिलत हे,
    त कइसे नइ पनकही
    ये पत्थर बाज मन
    जेन घाटी म पलत हे ! जेन सरकार आथे
    येला हटाय खातिर
    खूबेच के चिल्लाथे ,
    फेर का करबे जी
    ये मिठलबरा बर
    कुर्सी ह आड़े आथे ! अपन बर समझौता झन करव
    देश रक्षा बर तुम लड़ मरव ,
    ये लाहौर म तिरंगा फहरा के
    महतारी चरन म माथ धरव !
        — *राजकुमार मसखरे*

    देखो इनकी औकात

    हनुमान जी की जात पर
    खूब हो रहा रोज बवाल !
    नेता अपने मतलब लिये
    उगल रहे हैं कई सवाल !

    जी कोई कहता है दलित
    तो कोई कहता आदिवासी!
    कोई बताते हैं इन्हें ब्राम्हण
    कोई अल्पसंख्यक,रहवासी!

    भगवान तो भगवान होता है
    भला भगवान का क्या जात !
    ये हैं बस अपनी  रोटी सेंकने
    नित करे सियासत की बात !

    पौराणिक गाथाओं को ये
    ऐतिहासिक बता,करे घात !
    खुद की जात तो पता नही
    देखो इनकी कैसी औकात !

    — *राजकुमार मसखरे*

    भूख

    ये परम्परा ये आदर्श
    ये संस्कार ये ईमान
    आखिर कब ?
    जब तक पेट भरा हो 
    तब तक मचलती है !!

    भूख
    वह धधकती
    आग की ज्वाला है
    जिनकी लपटों से
    सब कुछ जल कर
    खाक हो जाती है !!

             —  राजकुमार मसखरे

  • डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर के मुक्तक कविता

    डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर के मुक्तक कविता

    kavita

    मुक्तक – बदरिया की घटाओ सी

    बदरिया की घटाओ सी ,तेरी जुल्फें ये कारे है
    तेरे माथे की बिंदिया से, झलकते चाँद तारे है
    कभी देखा नहीं हमने, किसी चंदा को मुड़ मुड़ के
    मगर पूनम तेरी आँखों में,हमने दिल ये हारे है

    गैरों से तेरा मिलना, मुझे तिल तिल जलाता है
    मगर फिर भी मेरा ये दिल, तेरा ये गीत गाता है
    तड़पता हूँ तुझे पाने को सपनों में भी जानेमन
    चले आना मेरी पूनम , तुझे ये दिल बुलाता है

    मेरे दिल में तेरे ही प्यार, का पूनम बसेरा है।
    उजाला तू ही मेरी है, तेरे बिन सब अंधेरा है।
    समझना मत कभी मुझको,पराया दूर का कोई।
    प्रिया इतना समझ लेना,ये कोहिनूर तेरा है।
    ★★★★★★★★★★★★★★★★★
    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

    मुक्तक – वहीं तो राह है मेरी

    तू मंजिल बन जहाँ बैठी,वहीं तो राह है मेरी ।
    तेरा ही प्यार मैं पाऊँ, यहीं तो चाह है मेरी।
    तेरे बिन मैं अधूरा हूँ, अधूरे है सभी सपने।
    मेरे जीवन की नैय्या में, तु ही मल्लाह है मेरी ।

    तुझे देखूँ तो लगता है,मोहब्बत की तू मूरत है।
    तेरे बिन मैं कहाँ कुछ भी,तू ही मेरी जरूरत है।
    सभी कहते है मुझको,यार तेरी दिलरुबा हमदम।
    नगीनों से भी बढ़कर के,बहुत ही खूबसूरत है।

    मुक्तक – चुलबुल परी


    न कभी ओ झुकी,न किसी से डरी।
    बोल उसके ज्यों बजने लगी बाँसुरी।
    पापा कह-कह मुझे जो प्रफुल्लित करे,
    मेरे बगिया की कोमल सी चुलबुल परी।

    तेरी पैजनिया से,स्वर की बरसात हो।
    मन को शीतल करे,तुम वही बात हो।
    दिखता इंद्रधनुष , तेरी मुश्कान में।
    तुम ही दिन हो मेरी,और तुम्ही रात हो।

    मुक्तक – पूनम

    कमर पतली बदन गोरा,घटा सी बाल है तेरी।
    मधुर बोली है कोयल सी,गुलाबी गाल है तेरी।
    तेरे नैना ये कजरारे,मुझे पागल बनाती है।
    जवानी हुस्न के धन से,ये मालामाल है तेरी।

    बुलाने को मुझे हमदम,कभी पायल बजाती हो।
    चलाकर तीर नैनों से,मुझे हमदम रिझाती हो।
    मगर बाहों में भरने को,ये मन बेताब होता है।
    प्रिये पूनम नहीं क्यूँकर, मेरे तुम पास आती हो।

    दीवाना बन गया हूँ मैं,तेरी चंचल अदाओं का।
    तेरे तन को चले छूकर,उन्हीं महकी हवाओं का।
    तेरे होठों को मैं चूमूँ , सदा बेताब रहता हूँ।
    है चाहत मेरे इस मन को,तेरी भी आशनाओ का।

    मेरी पूनम तेरे दिल में,समाके मर गया हूँ मैं।
    तेरी ही नाम में अब तो,ये जीवन कर गया हूँ मैं।
    बहुत बिगड़ा हुआ था मैं,मगर जब से मिली हैं तू।
    तुझे पाने के चक्कर में,बहुत ही सुधर गया हूँ मैं।

    तेरे हाथों को सहलाकर,ऐ पूनम थाम लूँगा मैं।
    बुलाऊँगा इशारों से , नहीं अब नाम लूँगा मैं।
    हमारे प्यार को कोई ,ना कोई जान पायेगा।
    समझदारी से जानेमन,सभी अब काम लूँगा मैं।
    ★★★★★★★★★★★★★★★★★

    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

    मुक्तक -प्यार

    मेरे दिल में बसी यादें, सुबह से शाम तेरे है।
    लबो पर सिर्फ ऐ पूनम,बस इक ही नाम तेरे है।
    तुझे देखूँ तुझे चाहूँ, तुझे पूजू हर एक पल।
    नहीं इससे बड़ा दुनिया में,कुछ भी काम मेरे है।

    मेरे दिल में भी कुछ लिख दे,मैं एक किताब कोरा हूँ।
    मधुर लोरी अगर है तू , तू मोहक मैं भी लोरा हूँ।
    नहीं मैं कम किसी भी बात में ,तुझसे मेरी हमदम।
    तू गर पूनम है रातों की,तो मैं भी इक चकोरा हूँ।

    तेरी कंगन की खन-खन में,खनकता प्यार है मेरा।
    तुझे गर जीत मिल जाए , समर्पित हार है मेरा।
    शिवा तेरे बिना पूनम , नहीं कुछ सूझता मुझकों।
    तेरे पल्लू के साये में , सुखद संसार है मेरा।

    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

    मुक्तक – तुम्हारे बिन मैं रातों को

    तुम्हारे बिन मैं रातों को,तड़प कर आहें भरता हूँ।
    तेरी यादों की गलियों में,मैं रुक रुक कर गुजरता हूँ।
    नहीं कुछ सूझता मुझकों,तेरे बिन आज दुनिया में।
    मैं प्यासा हूँ मेरी पूनम,तुम्हीं से प्यार करता हूँ।

    निगाहें जब उठाती हो,खिली इक बाग लगती हो।
    जो रहती हो कभी गुस्सा में,भड़की आग लगती हो।
    मगर हमदम इशारों में,मुझे जब जब बुलाती हो।
    महकता सुर्ख कोमल सा,प्रेम गुलाब लगती हो।

    किसी मंदिर की मूरत सी,तेरी सूरत ये पावन है।
    तेरी बोली मधुर मुझको,सदा लगती सुहावन है।
    तेरे कदमों में कोहिनूर,तन मन हार बैठा है।
    तू मिल जाए अगर मुझको,वहीं घनघोर सावन है।

    दीवाना हूँ उजालों का,नहीं अंधियार चाहूँ मैं।
    दुखों से दूरियाँ नित हो,सदा सुखसार चाहूँ मैं।
    ना मुझसे दूर होना तुम,तेरे बिन मर ही जाऊँगा।
    मेरी पूनम जनम भर का,तेरा ही प्यार चाहूँ मैं।

    बड़ा प्यारा है हर इक पल,मेरे जो पास रहती हो।
    मैं उड़ जाता हूँ अम्बर में,मुझे हम दम जो कहती हो।
    तेरे बिन मैं नहीं कुछ भी,तुम्ही हो दिल की धड़कन में।
    लहू की धार बनके तुम,मेरे रग रग में बहती हो।

    तुम्ही हमदम मेरा जीवन,मेरे ख्वाबों की रानी हो।
    जो सुख दुख में सदा संग है,मेरे आँखों का पानी हो।
    अधूरा हूँ तेरे बिन मैं, नहीं जी पाऊँगा जग में।
    मेरे जीवन के पथ में प्रेम की ,तुम ही कहानी हो।

    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”

  • महदीप जंघेल की कविता

    महदीप जंघेल की कविता

    बाल कविता
    बाल कविता

    बचपन जीने दो

    भविष्य की अंधी दौड़ में,
    खो रहा है प्यारा बचपन।
    टेंशन इतनी छोटी- सी उम्र में,
    औसत उम्र हो गया है पचपन।

    गर्भ से निकला नहीं कि,
    जिम्मेदारी के बोझ तले दब जाते,
    आपको ये बनना है,वो बनना है,
    परिवार के लोग बताते।

    तीन साल के उम्र में ही,
    बस्ता का बोझ उठाते है।
    कंपीटिशन ऐसा है कि ,
    रोज कोचिंग करने जाते है।

    सारा दिन प्रतिदिन अध्यापन का,
    कितना मानसिक बोझ उठाएंगे।
    प्रतियोगिता के अंधी दौड़ में,
    अपना प्यारा बचपन कब बिताएंगे?

    हँसी खुशी से भरा प्यारा सा,
    बचपन का अमृत उसे पीने दो।
    मानसिक दबाव कम होगा उनका,
    हँस खेलकर भी जीने दो।

    रचनाकार-महदीप जँघेल
    ग्राम-खमतराई
    खैरागढ़

    mahdeep janghel
    mahdeep janghel

    जय हो मोर छत्तीसगढ़ महतारी

    जय हो जय हो ,महामाई
    मोर छत्तीसगढ़ दाई।
    माथ नवांवव ,पांव पखारौं ,
    तैं हमर महतारी।
    जय हो जय हो महामाई…

    तोर भुइँया ले मइया,
    अन्न उपजत हे।
    तोर अन्नपानी ले हमर,
    जिनगी चलत हे।
    हाथ जोर के ,पइंया लांगव
    अशीष देदे दाई।।
    जय हो, जय हो महामाई….

    मैनपाट हवय तोर,
    मउर मुकुट हे,
    इंद्रावती तोर ,
    चरण धोवत हे।
    हाथ जोर के विनती करन,
    शरण आवन दाई।।
    जय हो, जय हो महामाई…

    महानदी के इंहा ,
    धार बोहत हे।
    जम्मो छत्तीसगढ़िया मन,
    तोला सुमरत हे।
    किरपा करइया ,दुःख हरइया,
    होगे जीवन सुखदाई ।।

    जय हो ,जय हो महामाई,
    मोर छत्तीसगढ़ दाई।।

    नारियों का सम्मान-महदीप जंघेल

    जहाँ होता है बेटियों का सम्मान,
    उस देश का बढ़ जाता है मान।।

    अब दीवारों से बंधी ,नही रही बेटियाँ,
    बड़े -बड़े सपने गढ़ रही बेटियाँ।।

    जब तेज प्रचंड ,ज्वाला रूप धरती है!
    तब धरती आकाश ,पाताल डोलती है।

    नारी है देश समाज का मान,
    दुर्गा ,काली, लक्ष्मी,इनके है नाम।।

    जीवन रूपी नैया की,
    पतवार बन जाती है,
    वक्त पड़े जब,तलवार बन जाती है।

    करो न कभी ,नारियों का अपमान,
    क्षमा नही करेंगें, तुम्हे भगवान।।

    नारियाँ होती है ,माँ के समान
    बहु,बहन,बेटियाँ, इनके नाम।।

    जो करे नारियों का मान सम्मान,
    कहलाते है वही ,सच्चा इंसान।।

    महदीप जंघेल
    ग्राम-खमतराई

    हमर सुघ्घर छत्तीसगढ़

    ➖➖➖➖➖➖

    एक ठन राज हवे सुघ्घर ,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़।।
    राजधानी हवे सुघ्घर रायपुर,
    हाईकोर्ट जिहां हे बिलासपुर।
    दंतेवाड़ा में लोहा खदान!
    ऊर्जा नगरी कोरबा महान।।
    धमतरी में हवे बड़े गंगरेल बांध,
    जम्मो झन के बचावय परान।।
    जिहां चित्रकोट अउ हवे तीरथगढ़,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़ ।।

    डोंगरगढ़ म मइया बम्लेश्वरी,
    दंतेवाड़ा म मइया दंतेश्वरी।।
    रतनपुर म मइया महामाया ,
    जेकर कोरा हे हमर छतरछाया।
    गरियाबंद के हवे बड़े राजिम मेला,
    पैरी ,सोंढुर,महानदी के बोहवय रेला।
    बड़े- बड़े पहाड़ के गढ़ ,हवे रामगढ़,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़।।

    भिलाई इस्पात कारखाना के,
    हवे काम महान,
    जेन हवे दुरुग भिलाई के शान।।
    कोरिया म हवे बड़े-बड़े कोयला खदान,
    टिन म सुकमा के अव्वल स्थान।।
    नारायणपुर के अबुझमाड़ ,
    जेन छत्तीसगढ़ के पहिचान हे।
    संगीत नगरी कहाये ,खैरागढ़।
    वोकर पूरा एशिया में अब्बड़ नाम हे ।
    जेकर बोली भाखा हवे मीठ अब्बड़,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़

    छत्तीसगढ़ के खजुराहो ,
    भोरमदेव ल कहिथे।।
    अरपा ,पैरी, महानदी के,
    कलकल धार बहिथे।।
    अइसन सुघ्घर राज म रहिके ,
    अपन जिनगी ल गढ़।।

    एक ठन राज हवे सुघ्घर,
    नाम हे जेकर छतीसगढ़।।

    रचनाकार
    महदीप जंघेल ,

    माता के महिमा

    जय ,जय हो मइया दुर्गा,
    तोरेच गुण ल सब गावै।
    जय ,जय हो मइया अम्बे,
    सब तोरेच महिमा बखावै।।
    तोर शरण म आए बर मइया,
    जन-जन ह सोहिरावै।।
    जय,जय हो मइया दुर्गा……..

    पापी मन के नाश करे बर,
    दुनिया में तैं अवतारे।
    दानव मन ल मार के दाई,
    ये जग ल तैं ह उबारे।।
    पापी ,अतियाचारी असुरा मन ,
    सब देख तोला डर्राये।।
    जय-जय हो मइया दुर्गा………

    शक्ति रूप धरे तै जग में,
    दुर्गा काली कहाए।
    महिषासुर जइसे दानव ले,
    ये धरती ल तैं ह बचाए।।
    आदि शक्ति तैं माता भवानी,
    सब तोरेच लइका कहाए।।
    जय,जय हो मइया दुर्गा……  

    अन्नदाता किसान

    हमर किसान भाई, हमर किसान ,
    काम करे जियत भर ले ,जाड़ा चाहे घाम।।
    हमर किसान भाई……….

    सुत उठ के बड़े बिहनियां!
    नांगर धरके जाय,
    मंझनी मंझना घाम पियास मा!
    खेत ल कमाय।
    हमू करब काम संगी ,हमर किसान ,
    काम करे जियत भर ले ,जाड़ा चाहे घाम ।।
    हमर किसान भाई ….

    धान ,गेंहू ,चना, राहेर,
    खेत म वोहा बोवत हे।
    रखवारी करे बर ,
    मेड़ में घलो सोवत हे।।
    माटी के बेटा हरे,हमर किसान ,
    काम करे जियत भर ले,जाड़ा चाहे घाम ।।
    हमर किसान भाई……

    हरियर- हरियर खेत ल देख,
    मन ओकर हरियाय।
    कोठी भर-भर अन्न ल देख,
    ओकर अंतस गदगदाय।।
    रात- दिन मेहनत करथे ,लेवत राम नाम ,
    काम करे जियत भर ले ,जाड़ा चाहे घाम..
    हमर किसान भाई………

    भूखे लांघन खेत में काम ,
    सरग ,भुइँया ल बनाय।
    संसार के जम्मो भूख मिटाके,
    खुद चटनी बासी ल खाय।।
    हमर किसान हरे,हमर भगवान,
    रात दिन काम करे,देवे अन्न के दान।।
    हमर किसान भाई………

      महदीप जंघेल
                                 

    गांधी जी को प्रणाम

    वर्ष 1600 में ईस्ट इन्डिया कम्पनी
    जब भारत आया।
    साथ अपने, विदेशी ताकत भी लाया।।

    फूट डालो शासन करो नीति अपनाया।
    राजा महाराजाओं को,आपस में खूब लड़ाया।।
    धन दौलत माल खजाना,भारत का।
    लूट -लूटकर अपने वतन भिजवाया।।

    गरीबी,भुखमरी,और बेरोजगारी देश में बढ़ता गया।
    गरीब मजदूर मरता गया।।
    दिनो-दिनअंग्रेजो का ,अत्याचार बढ़ता गया।
    हिंसाऔर शोषण रूपी तपन चढ़ता गया।।

    तब 2 अक्टूबर सन 1869 पोरबंदर में,
    आई एक आंधी।
    जन्म लिया एक महापुरुष ने,
    नाम था मोहनदास गांधी।।

    अंग्रेजो के घर से ही ,कानून पढ़कर आया।
    अहिंसा ,और सत्यता की, धर्मनीति अपनाया।।
    देशभक्ति की ज्योति ,सबके मन में जलाया।।
    अंग्रेजो से लोहा लेकर, देश से उन्हें भगाया।।

    स्वच्छता का संदेश दिया ,
    बहन बेटियों का किया सम्मान।।
    युगपुरुष कहलाये वो,जिनको मिला महात्मा नाम।।
    ऐसे राष्ट्रपिता श्री महात्मा गांधी जी को
    मेरा शत शत प्रणाम।
    मेरा शत शत प्रणाम।

    महदीप जंघेल
    ग्राम-खमतराई
    विकासखण्ड-खैरागढ़
    जिला-राजनांदगांव