Author: कविता बहार

  • जलती धरती/पूनम त्रिपाठी

    जलती धरती/पूनम त्रिपाठी

    जलती धरती/पूनम त्रिपाठी

    NATURE
    woman-day

    धरती करे पुकार मानव से
    मुझे न छेड़ो तुम इंसान
    बढ़ता जाता ताप हमारा
    क्यों काटते पेड़ हमारा
    पेड़ काट रहा तू इंसान
    जलती धरती सूखे नलकूप
    सूरज भी आग बरसाए
    बादल भी न पानी लाये
    मत उजाड़ो मेरा संसार
    धरती का बस यही पुकार
    मै रूठी तो जग रूठेंगा
    मेरे सब्र का बांध टूटेगा
    भूकंप बाढ़ क़ो सहना पड़ेगा
    सुंदर बाग बगीचे मेरे
    हे मानव सब काम आएंगे
    मेरे साथ अन्याय करोगे
    सह न पाओगे बिपदा तुम
    बड़े बड़े महलो क़ो बनाकर
    न डालो तुम मुझपर भार
    पेड़ो क़ो तुम नष्ट करके
    तुम उजाड़े मेरा संसार l

    पूनम त्रिपाठी
    गोरखपुर. उत्तर प्रदेश

  • अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना / डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

    अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना / डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

    अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना / डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी

    woman-day
    woman-day

    नारी को जो शक्ति समझता।
    उसको सबसे ऊपर रखता।।
    इक नारी में सकल नारियां।
    भले विवाहित या कुमारियां।।

    प्रबल दिव्य भाव का सूचक।
    सारी जगती का संपोषक।।
    नारी श्रद्धा भव्य स्रोत है।
    मूल्यवान गतिमान पोत है।।

    नारी में प्रिय मधुर भावना।
    अनुपम श्रेष्ठा सभ्य कामना।।
    सदा काम्य रस शीतल छाया।
    परम विराट देव सम माया।।

    कोमल धर्म नर्म प्रिय रोशन।
    सर्व प्रधान कमल संबोधन।।
    अन्तहीन अतुलित नारी है।
    सकल लोक में अति प्यारी है।।

    नारी से ही सृष्टि लुभावन।
    इससे धरती मधु प्रिय पावन।।
    हर नारी है भाव स्वरूपा।
    लक्ष्मी सुरसति भव्य अनूपा।।

    नारी वंदनीय पुरुषोत्तम।
    सर्वगुणीन सत्य सर्वोत्तम।
    यही ब्रह्म शिव सुखद बीज है।
    सत रज तम मिश्रण अजीज है।।

    डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

  • जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल “अमर”

    जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल “अमर”

    जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल “अमर”

    जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल "अमर"
    जलती धरती/श्रीमती शशि मित्तल “अमर”

    आओ कुछ कर लें प्रयास
    धरती माँ को बचाना है,
    दूसरों से नहीं रखें आस
    स्वयं कदम बढ़ाना है,
    देख नेक कार्य सब आएं पास
    सबमें चेतना जगाना है।

    ईंट कंक्रीट का बिछा कर जाल
    वनों को कर दिया हलाल
    अपनी धरा को बहुत रुलाया है,
    हजारों पंछियों का था जो बसेरा
    काट नीड़ उनका उजाड़ा है।

    कहां से मिले शुद्ध वायु
    स्रोत ऑक्सीजन का गंवाया है,
    बड़,पीपल,तुलसी काट-काट कर
    कैक्टस बहुत जगाया है।

    नदी पोखर किये दूषित
    सारा गंद वहीं बहाया है
    धरती मां को प्लास्टिक से रोप कर
    उसका दम बहुत घुटाया है।

    मानव ने उतार दी मानवता
    शैतानियत का पहना जामा है
    स्वार्थ के हुआ वशीभूत
    भला बुरा नहीं सोच पाया है।

    आज उसको दिखता जीवन सुखमय
    भविष्य नहीं देख पाया है
    बच्चों के भविष्य खातिर बचाता धनराशि
    क्या बच्चों के लिए पर्यावरण बचाया है??

    अब भी चेत जाओ ओ मूर्ख मानव
    जलती धरा को बचाना है!
    खूब पौधे लगा,उन्हें पेड़ बनाना है,
    नदी नहरों को स्वच्छ रख कर
    जलनिधि को बचाना है।

    विकास के नाम पर काटे गए
    वृक्षों की भरपाई कराना है!
    आओ सब मिलकर लें संकल्प यही
    हमें पर्यावरण रक्षित कर,
    ढ़ेरों पेड़ लगाना है!!

    श्रीमती शशि मित्तल “अमर”
    बतौली, सरगुजा (छत्तीसगढ़)

  • जलती धरती/डॉ0 रामबली मिश्र

    जलती धरती/डॉ0 रामबली मिश्र

    जलती धरती /डॉ0 रामबली मिश्र

    जलती धरती/डॉ0 रामबली मिश्र
    जलती धरती/डॉ0 रामबली मिश्र

    सूर्य उगलता है अंगारा।
    जलता सारा जग नित न्यारा।।
    तपिश बहुत बढ़ गयी आज है।
    प्रकृति दुखी अतिशय नराज है।।

    मानव हुआ आज अन्यायी।
    नहीं रहा अब वह है न्यायी।।
    जंगल का हत्यारा मानव।
    शोषणकारी अब है दानव।।

    नदियों के प्रवाह को रोका।
    पर्वत की गरिमा को टोका।।
    विकृत किया प्रकृति की रचना।
    नित असंतुलित अधिसंरचना।।

    ओजोन परत फटा दीखता।
    अतीव गर्म वायु अब लगता।।
    जलता जल तरुवर मरु धरती।
    जलता मानव पृथ्वी जलती।।

    डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी उत्तर प्रदेश

  • वेतन पर कविता / स्वपन बोस “बेगाना”

    वेतन पर कविता / स्वपन बोस “बेगाना”

    वेतन पर कविता

    वेतन पर कविता / स्वपन बोस "बेगाना"

    कर्म करों फल मिलेगा मेहनत तो महिना भर हों

    गया, फिर वेतन कब मिलेगा ।सूनों सहाब डालोगे

    वेतन,समय पर तभी तो फिर कर्म का सुंदर फूल खिलेगा।

    सूनों सहाब हम कर्मचारियों की कहानी, हमें बस

    एक तारीख अच्छा लगता है। क्यों की लगभग इसी

    दिन तक वेतन डलता है, फिर दो पांच दिन ही वेतन टिकता है।

    सूनों सहाब एक और मेरी बात बताऊं
    नौकरी जब से लगी है, मुझसे ही सबकी आशाएं बंधी है,

    बच्चे का फिश,घर का राशन, डाक्टर खर्च

    बैंक का इ एम आई,सब वेतन से देने है।
    जिंदगी के फैसले भी लेने है।

    मंहगाई ने भी कमर तोड़ दी है अब वेतन बचाना भारी हों गई है।
    नौकरी करता हूं, वेतन मोटी है पर क्या करूं खर्च बड़ी हों गई है।

    समय पर वेतन जब मिल जाता है।
    दिल में खुशी के फुल खिल जाता है।
    न मिले वेतन तो ए तन भी धोखा देता है,बड़ जाती है गोली दबाईं काम में लगता नहीं मन क्या बताऊं सहाब, वेतन बीन बेकार है जीवन।

    कर बद्ध प्रार्थना करू आपसे हमारी ब्याथा समझ लो।
    सबसे बड़ा पुण्य मिलेगा,समय पर वेतन और एरियस तो डाल दो ।

    स्वपन बोस,, बेगाना,,
    9340433481