Author: कविता बहार

  • ज्योति पर्व नवरात पर दोहे -आर आर साहू

    ज्योति पर्व नवरात पर दोहे

    जगमग-जगमग जोत से,ज्योतित है दरबार।
    धरती से अंबर तलक,मां की जय-जयकार।।


    मनोकामना साथ ले,खाली झोली हाथ।
    माँ के दर पे टेकते,कितने याचक माथ।।


    धन-दौलत संतान सुख,पद-प्रभुता की चाह।
    माता जी से मांगकर,लौटें अपनी राह।।


    छप्पन भोगों का चढ़ा माँ को महाप्रसाद।
    इच्छाओं के बोझ को मन में राखा लाद।।


    घी का दीपक मैं जला,करने लगा पुकार।
    माता नित फूले-फले,मेरा कारोबार।।


    माता ने हँसकर कहा,पहले माँगो आँख।
    अंधा क्या समझे भला,क्या हीरा क्या राख।।


    पास खड़ी दरबार में,दीख पड़ी तब भक्ति।
    माँ ने पावन प्रेम की,उसमें उतरी शक्ति।।


    हृदय बना दरबार था,ज्योति कलश सद्भाव।
    आदि-शक्ति आराधना,सच से प्रेम लगाव।


    उसकी ही नवरात का,सिद्ध हुआ त्यौहार।
    राग-द्वेष को दूर कर,बाँटे जग में प्यार।।

    ——-R.R.Sahu

  • माँ दुर्गा से संबंधित हाइकु -सुधा शर्मा

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।[शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

    माँ दुर्गा से संबंधित हाइकु

    माँ दुर्गा
    आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी माँ दुर्गा पूजा Navami Maa Durga Puja from Ashwin Shukla Pratipada

    1

    देवी मंदिर

    झिलमिलाते जोत
    लगी कतार

    2

    भक्तों की भीड़

    मनोभिलाषा रखें

    माँ के चरण

    3
    फहरे ध्वज
    काली पीली रक्तिम
    माँ के आँगन

    4
    विभिन्न रूप
    शक्ति की आराधना
    आत्म उजास

    5
    घंटियों संग
    गूंजते जयकारा
    माँ शेरावाली

    6
    मय श्रृंगार
    शंख चक्र त्रिशूल
    सिंहवाहिनी

    7
    खड्ड खप्पर
    कर शोभित मुद्रा
    मात कालिका

    8
    नमन माते
    दुर्गे दुख भँजनी
    जगजननी

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़
    29-9-2019

  • सूनी इक डाली हूँ-नील सुनील

    सूनी इक डाली हूँ

    सूनी इक डाली हूँ। 
    सोचें सब माली हूँ।। 

    तू खेले लाखों में। 
    मैं पैसा जाली हूँ।। 

    घर बच्चे भूखे हैं। 
    मैं खाली थाली हूँ।। 

    तू मन्नत रब की है। 
    मैं बस इक गाली हूँ।। 

    अदना सा हूँ शायर। 
    समझें वो हाली हूँ।। 

    मर जाऊं क्या आखिर। 
    बरसों से  खाली हूँ।।

    ✍नील सुनील 
    हरियाणा

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  • तुममें राम कौन है?-राहुल लोहट

    तुममें राम कौन है?

    मैदान खुला है,
    भीड़ बहुत है,
    जोर-जोर के जयकारे 
    चीर रहे है आस्मां,
    दहन है विद्वान का
    मूर्खों के हाथों,
    सजा बार-बार क्यूं ?
    सवाल मन को खंगोलता है।
    मेरा कसूर क्या 
    बहन की इज्जत रक्षा बस?
    आज जरूरत है 
    हर घर में,
    मुझ जैसे रावण की 
    लड़े जो अपनी बहन खातिर
    हैवानों से।
    जलाओ,
    जी भर के जलाओ,
    मगर इतना बताओ 
    इस लबालब भीड़ में 
    तुममें कौन राम है?
    खुले घुमते रावण,
    सैंकड़ों रावण, 
    मैं एक था 
    मैंने छुआ नहीं था,
    तुम नौंच डालते हो,
    बताओ तुम राम हो या रावण?
    मुझ को फूंकने से पहले 
    आग लगा लो खुद को,
    मुझे दु:ख मुझ मरे रावण का नहीं
    तुम जिन्दा रावणों का है,
    एक बार फिर 
    जरा जोर डालो दिमाग पर
    बताओ 
    तुममें राम कौन है?
    सब के सब रावण हो तुम,
    बहुत बड़े रावण।।

    राहुल लोहट
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  • अभी मैं मरा नहीं हूँ-नील सुनील

    अभी मैं मरा नहीं हूँ।

    हां देश की खातिर 
    मर जाने की, 
    मैंने कसम उठाई थी। 
    जिस्म के मेरे, 
    मर जाने पर. 
    आंख सभी भर आई थी। 
    जिस्म से हूं मर गया बेशक, 
    रूह से मरा नहीं हूँ। 
    अभी मैं मरा नहीं हूँ।

    राजगुरु था 
    सुखदेव था, 
    फांसी पर वो साथ मेरे। 
    जोश में बोला 
    इंकलाब जब, 
    थे वो दोनों हाथ मेरे। 
    फांसी पर लटका हूं बेशक, 
    लेकिन मैं डरा नहीं हूँ। 
    अभी मैं मरा नहीं हूँ।

    ऐ देश मेरे तु 
    जिंदाबाद है, 
    जिंदाबाद रहेगा। 
    हम हों ना हों 
    दूनिया में, 
    पर तु आबाद रहेगा। 
    जिंदा जहनो दिल में अब तक, 
    दूर जरा नहीं हूँ। 
    अभी मैं मरा नहीं हूँ।

    नौजवां ये हिंदोस्तां के 
    दिलों में इनके, 
    जिंदा हूं मैं। 
    जिस्म से तेरे पास नहीं हूं 
    बस इतना, 
    शर्मिंदा हूं मैं। 
    समझा होगा तूने मुझको, 
    जुबान का खरा नहीं हूँ। 
    अभी मैं मरा नहीं हूँ।

    अब भी मेरा 
    वादा है ये, 
    आ जाऊंगा लौटकर। 
    जूनून है अब तक 
    वही सीने में, 
    देश का मेरे नोट कर। 
    सिरफिरा कोई समझे बेशक, 
    मैं सिरफिरा नहीं हूँ। 
    अभी मैं मरा नहीं हूँ।।

    ✍नील सुनील 
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद