नव वर्ष पर कविता
नव वर्ष आ गया नववर्ष,क्या संदेह,क्या संभावना है?शेष कुछ सुकुमार सपने,और भूखी भावना है। हैं विगत के घाव कुछ,जो और गहरे हो रहे हैं,बात चिकनी और चुपड़ी,सभ्यता या यातना है! ओढ़कर बाजार को,घर घुट रहा है लुट रहा है,ग्लानि की अनुभूति दे जाती कटुक,शुभकामना है। नींद उनको फूल की शैय्या मेंं भी आती नहीं है,किन्तु … Read more