Author: कविता बहार

  • शाकाहारी जीवन / देवेंद्र चरण खरे आलोक

    शाकाहारी जीवन / देवेंद्र चरण खरे आलोक

    Vegetable Vegan Fruit

    शाकाहारी जीवन करें व्यतीत

    जन्म हुआ मानव का लेकर ,सौम्य प्रकृति आधार।
    तृण- तृण इसके रग- रग में है,रचता रहता सार।
    अंग सभी प्रत्यंग सजे हैं,सात्विक शक्ति शरीर,
    मन का मनका प्रस्तुत करता ,मन ही मन आभार।

    है विकास के पथ पर चलता,रज कण लिए शरीर।
    मज्जा रक्त अस्थियां पोषण,पाने हेतु अधीर।
    हारमोन है घ्रेलिन नामक, बढे़ भूख आहार,
    सम्यक नींद पचाए भोजन,पानी और समीर।

    उगें प्राकृतिक अन्न सब्जियां,धरती से भरपूर।
    डाली- डाली लदी आम ,अमरूद और अंगूर।
    युक्त फाइबर और विटामिन,कार्बोहाईड्रेट ,
    हैं समृद्ध पोषक तत्वों से,उर्जा रहे न दूर।

    धरती हरित नील अंबर से, प्रकृति सुहानी भव्य।
    है उत्पन्न शरीर इसीसे ,यही सजाते हव्य।
    क्षुधा शक्ति भोजन पानी रस,स्वाभाविक हो पान,
    पाचन करती सरल सुलभ तन, सृजित कराती द्रव्य।

    फोलिक एसिड मैगनीशियम ,प्रकृति करे उपकार।
    सभी फाइटो युक्त केमिकल, मिलते शाकाहार।
    कोलोस्ट्राल ह्रदय उद्वेलन,रक्तचाप संपीर,
    संवेदन रोगों के खतरे ,मानव करता पार।

    दूध दही मक्खन फल मेवे,प्रोटीनों के साथ।
    दालें कद्दू बीज और तिल,फलियां छोले क्वाथ।
    औषधि जडी़ बूटियां होतीं, पाचन के अनुरूप,
    स्वस्थ चित्त हों शाकाहारी,भारत के हर हाथ।

    सभी सशक्त और नीरोगी ,होते रहे अतीत।
    प्रकृति विहारी सभी मनस्वी ,ग्रन्थकार सुपुनीत।
    बलशाली कुश्ती वाले हैं ,विश्व विजेता पुष्ट,
    स्वस्थ समुन्नत शाकाहारी ,जीवन करें व्यतीत ।

    देवेंद्र चरण खरे आलोक

  • शाकाहारी भोजन/ हरि प्रकाश गुप्ता

    शाकाहारी भोजन/ हरि प्रकाश गुप्ता

    Vegetable Vegan Fruit

    शाकाहारी भोजन अपनाइए

    भोजन अपनी अपनी पसंद का सभी का होता है।
    कोई मांसाहारी तो कोई शाकाहारी होता है ।।
    कुछ कहते मांसाहारी अच्छा होता है।
    कोई शाकाहारी को अच्छा कहता है ।।
    अपनी अलग-अलग सोच पर सभी कुछ निर्भर करता है।
    कहते हैं और सुना जंगली जानवर
    मांसाहारी होते हैं।
    फिर इंसान शाकाहारी छोड़
    क्यों मांसाहारी होते हैं।।
    शाकाहारी भोजन कर जीव जंतु की रक्षा बहुत जरूरी है।
    जीव जंतु का मांस खाना नहीं कोई मजबूरी है।।
    ईश्वर ने हमको जन्म दिया और खूबसूरत
    खेत – खलिहान दिए।
    सभी किसानों ने मिलकर अन्न उसमें उगाने का काम किए ।।
    एक से बढ़कर बिटामिन भरपूर
    प्रकृति ने हमें खाने का सामान दिया।
    फिर न जाने कैसे और क्यों हमने मांस खाना शुरू किया।।
    जिस जीव जंतु को मारा जाता
    उसका दर्द कभी सुनकर देखो।
    मांसाहारी छोड़ कोई तो शाकाहारी बनकर तो देखो।।
    तड़पा तड़पा कर जीव-जंतु को मारना ठीक नहीं है।
    अपने स्वादिष्ट भोजन के खातिर उन्हें
    मारना उचित नहीं है।।
    शाकाहारी भोजन ईश्वर को भी खूब भाता है।
    जीव जंतु को मारकर खाना
    ईश्वर नाराज हो जाता है।।
    सबसे बढ़िया सबसे अच्छा शाकाहारी भोजन अपनाइए।
    मांसाहारी छोड़ अपने को शाकाहारी बनाइए।।
    भोजन अपनी अपनी पसंद का सभी का होता है।
    कोई मांसाहारी तो कोई शाकाहारी होता है ।।

    हरि प्रकाश गुप्ता “सरल”
    भिलाई छत्तीसगढ़

  • जीवन की नैया धीरे-धीरे खेना

    जीवन की नैया धीरे-धीरे खेना


    (छंद मुक्त रचना)
    “ओ खेवइया।
    जीवन की नैया,
    है बहुत ख़ूबसूरत,
    कमसिन है,
    भरी हुई है नज़ाकत से।
    देख,
    लहरें आ रहीं है दौड़कर,
    डुबोने को तत्पर।
    सम्हाल पतवार,
    ख़ीज लहरों की,
    तूफ़ान साथ ला सकती हैं।
    जीवन की नैया को,
    धीरे-धीरे खेना।
    रुकना नहीं ।
    पलटना नहीं।
    जो छुट गया ,
    जो मिल न सका,
    ग़म उसका नहीं करना।
    खेता जा।
    जो मिल जाए ,
    साथ ले आगे ही आगे बढ़ता चल।
    बीच मॅ॑झधार,
    नहीं है तेरी मंज़िल।
    तेरी मंज़िल तो,
    है दूसरा किनारा,
    सुंदर और प्यारा-प्यारा।
    पहुॅ॑चने अपने मंज़िल तक,
    तुझे बचकर है नाव चलाना,
    डरावनी तरंगों को भी अपनाना।
    खौफ़ न खा,
    कर ले थोड़ा संघर्ष ,
    पाने को उत्कर्ष।
    आ जाएगा दूसरा किनारा,
    हसीन और प्यारा -प्यारा।

    डॉ भारती अग्रवाल
    रायपुर छत्तीसगढ़

  • हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा RSS Geet

    हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा


    हिन्दू जगे तो विश्व जगेगा, मानव का विश्वास जगेगा।
    भेदभावना तमस हटेगा, समरसता अमृत बरसेगा।
    हिन्दू जगेगा, विश्व जगेगा।।ध्रु.।।

    हर हिन्दू सदा से विश्व बन्धु है जड़ चेतन अपना माना है।
    मानव पशु तरु गिरि सरिता में एक ब्रह्म को पहिचाना है।
    जो चाहे जिस पथ से आये साधक केन्द्र बिन्दु पहुँचेगा।।1।।

    हिन्दू जगेगा……

    इसी सत्य को विविध पक्ष से वेदों में हमने गाया था।
    निकट बिठाकर इसी तत्व को उपनिषदों में समझाया था।
    मंदिर मठ गुरुद्वारे जाकर यही ज्ञान सत्संग मिलेगा।।2।।

    हिन्दू जगेगा……

    हिन्दू धर्म वह सिन्धु अतल है जिसमें सब धारा मिलती है।
    धर्म अर्थ अरु काम मोक्ष की किरणें लहर-लहर खिलती है।
    इसी पूर्ण में पूर्ण जगत का जीवन मधु सम्पूर्ण फलेगा।।3।।

    हिन्दू जगेगा……

    इस पावन हिन्दुत्व सुधा की रक्षा प्राणों से करनी है।
    जग को आर्य शील की शिक्षा निज जीवन से सिखलानी है।
    द्वेष क्लेष भय सभी हटायें पान्चजन्य फिर से गुंजेगा।।4।।

    हिन्दू जगेगा……।।

  • फिर क्या दूर किनारा

    फिर क्या दूर किनारा

    त्याग प्रेम के पथ पर चलकर
    मूल न कोई हारा।
    हिम्मत से पतवार सम्भालो
    फिर क्या दूर किनारा।

    हो जो नहीं अनुकूल हवा तो
    परवा उसकी मत कर।
    मौजों से टकराता बढ़ चल
    उठ माँझी साहस धर।
    धुन्ध पड़े या आँधी आये
    उमड़ पड़े जल धारा॥१॥

    हाथ बढ़ा पतवार को पकड़ो
    खोल खेवय्या लंगर।
    मदद मल्लाहों की करता है
    बाबा भोले संकर।
    जान हथेली पर रखकर
    लाखों को तूने तारा॥२॥

    दरियाओं की छाती पर था
    तूने होश संभाला।
    लहरों की थपकी से सोया
    तूफानों ने पाला
    जी भर खेला डोल भंवर से
    जीवन मस्त गुजारा॥३॥