भूख पर कविता

भूख केवल रोटी और भात नहीं खाती
वह नदियों पहाड़ों खदानों और आदमियों को भी खा जाती है
भौतिक संसाधनों से परे
सारे रिश्तों
और सारी नैतिकताओं को भी बड़ी आसानी से पचा लेती है भूख।
भूख की कोई जाति कोई धर्म नहीं होता
वह सभी जाति सभी धर्म वालों को समान भाव से मारती है।
जाति धर्म मान सम्मान महत्वपूर्ण होता है
जब तक भूख नहीं होती।
दुनिया भर के आयोजनों में
सबसे बड़ा होता है
रोटी का आयोजन
सच्चा कवि वही होता है
जो रोटी और भूख के विरह को समझ ले।
सबसे आनंददायक होता है
भूख का रोटी से मिलन।
– नरेंद्र कुमार कुलमित्र
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