Category हिंदी कविता

वर्षा ऋतु कविता – कवयित्री श्रीमती शशिकला कठोलिया

वर्षा ऋतु कविता  ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड तपिश, प्यासी धरती पर वर्षा की फुहार,       चारों ओर फैली सोंधी मिट्टी,प्रकृति में होने लगा जीवन संचार। दिख रहा नीला आसमान ,सघन घटाओं से आच्छादित ,वर्षा से धरती की हो रही ,श्यामल…

शांति पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

शांति पर कविता  हम कैसे लोग हैंकहते हैं—हमें ये नहीं करना चाहिएऔर वही करते हैंवही करने के लिए सोचते हैंआने वाली हमारी पीढियां भीवही करने के लिए ख़्वाहिशमंद रहती हैजैसे नशाजैसे झूठजैसे अश्लील विचार और सेक्सजैसे ईर्ष्या-द्वेषजैसे युद्ध और हत्याएंऐसे…

सुंदर विश्व बनाएं-डॉ नीलम

सुंदर विश्व बनाएं मानव के हाथों में कुदालखोद रहा अपने पैरों से रहा अपनी जडे़ निकाल अपने अपने झगडे़ लेकरकरता नरसंहार हैविश्व शांति के लिए बसबना संयुक्त राष्ट्र है निःशस्त्रिकरण की ओट मेंअपने घर में आयुध भंडार भरेपरमाणु की धौंस जता करकमजोरों…

संयुक्त राष्ट्र पर कविता- दूजराम साहू

संयुक्त राष्ट्र पर कविता आसमान छूने की है तमन्ना, अंधाधुंध हो रहे अविष्कार! चूक गए तो विनाशकारीसफलता में जीवन उजियार! !  विज्ञान वरदान ही नहीं, अभिशाप भी है, कहीं नेकी करता तो कहीं पाप भी है! उन्नति में लग जाए तोकर दे भव से…

वक़्त से मैंने पूछा-नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

वक़्त से मैंने पूछा      वक़्त से मैंने पूछाक्या थोड़ी देर तुम रुकोगे ?वक़्त ने मुस्करायाऔरप्रतिप्रश्न करते हुएक्या तुम मेरे साथ चलोगे?आगे बढ़ गया…। वक़्त रुकने के लिए विवश नहीं थाचलना उसकी आदत में रहा है सो वह चला गयातमाम विवशताओं…

दिखा दे अपनी मानवता- शशिकला कठोलिया

दिखा दे अपनी मानवता लेकर कोई नहीं आया ,जीवन की अमरता ,क्षणभंगुर संसार में ,दिखा दे अपनी मानवता । देशकाल जाति पाति की ,दीवारों को तोड़कर ,छुआछूत ऊंच नीच की ,सबी विविधता को हर ,हर इंसान के मन से ,मिता…

मैं हूं एक लेखनी-शशिकला कठोलिया

मैं हूं एक लेखनी मैं हूं एक लेखनी ,क्यों मुझे नहीं जानता ,निरादर किया जिसने ,जग में नहीं महानता।जिसने मुझे अपनाया ,हुआ वह बड़ा विद्वान ,जिसने किया आदर ,मिला यश और सम्मान ,मेरे ही द्वारा हुआ ,रचना महाभारत रामायण ,साहित्यो…

वर्षा ऋतु पर कविता -हरीश पटेल

वर्षा ऋतु पर कविता आज धरा भी तप्त हुई है।हृदय से शोले निकल पड़े हैं।।कण-कण अब करे पुकार ।आ जाओ वर्षा एक बार।। प्यास अब उमड़ चुकी है ।जिंदगी को बेतरतीब कर विक्षिप्त पड़ा है।।तुम पहली बूंद बन कर आ…

मन करता है कुछ लिखने को-अमित कुमार दवे

मन करता है कुछ लिखने को जब भी सत्य के समीप होता हूँ, असत्य को व्याप्त देखता हूँ ,शब्द जिह्वा पर ही रुक जाते हैं, मन करता है…..कुछ लिखने को ।। वाणी से गरिमा गिरने लगती है, लज्जा पलकों से हटने लगती है…

Jai Sri Ram kavitabahar

चित चोर राम पर कविता / रश्मि

चित चोर राम पर कविता / रश्मि चित चोर कहो , न कुछ और कहो। मर्यादा पूरूषोत्तम है । हे सखी !सभी जो मन भायेवो मनभावन अवध किशोर कहो। चित चोर…….. है हाथ धनुष मुखचंद्र छटा, लेने आये सिय हाथ यहां। तारा अहिल्या  को जिसने हे सखि…