Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • दारू विषय पर कविता

    दारू विषय पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    दारू पिये ल झन जाबे समारू
    दारू पिये ल झन जाबे,,,,
    गली-गली जूता खाबे समारू
    दारू पिये ल झन जाबे ,,,,!

    नाली म परे,माछी ह झूमे
    मुँहू तैं फारे,कुकुर ह चूमे
    अब सुसु बर होगे *उतारू* समारू
    दारू पिये ल झन जाबे……!

    पिये ल बइठे,सङ्गी ह लूटे
    झगरा मताये,धर-धर कूटे
    बस मंदू ह देवय *हुँकारू* समारू
    दारू पिये ल झन जाबे……!

    दारू पियइ म चेत हरागे
    करू-करू म पेट भरा-गे
    तोर जिनगी होगे *घुनारू* समारू
    दारू पिये ल झन जाबे ……!

    करजा-बोड़ी,बिल-बिलागे
    मुक्का बनगेस,मुँह सिलागे
    ये इज्ज़त होगे *बजारू* समारू
    दारू पिये ल झन जाबे…….!

    — *राजकुमार ‘मसखरे’*

  • हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता- तोषण कुमार चुरेन्द्र “दिनकर “

    हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता- तोषण कुमार चुरेन्द्र “दिनकर “

    हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता

    हसदेव नदी बचाओ अभियान पर कविता- तोषण कुमार चुरेन्द्र "दिनकर "

    रुख राई अउ जंगल झाड़ी
    बचालव छत्तीसगढ़ के थाती ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    किसम किसम दवा बूटी
    इही जंगल ले मिलत हे
    चिरइ चिरगुन जग जीव के
    सुग्घर बगिया खिलत हे
    झन टोरव पुरखा ले जुड़े
    हमर डोर परपाटी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    चंद रुपिया खातिर
    कोख ल उजरन नइ देवन
    जल जंगल जमीन बचाए बर
    आज पर न सब लेवन
    खनन नइ देवन कहव मिलके
    छत्तीसगढ़ के माटी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    कोइला के लालच म काबर
    हमर जंगल उजड़ै गा
    सुमत रहय हम सबके संगी
    नीत नियम ह सुधरै गा
    नइ मानय त टें के रखव
    तेंदू सार के लाठी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    आदिवासी पुरखा मन के
    जल जंगल ह चिन्हारी हे
    एकर रक्षा खातिर अब
    हमर मनके पारी हे
    कोनों  ल लेगन नइ देवन
    महतारी के छांटी ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    जल जंगल जमीन नइ रही त
    हम हवा पानी कहां पाबो
    बांचय हमर पुरखौती अछरा
    अइसन अलख जगाबो
    जुरमिलके हम रक्षण करबे
    दिन देखन न राती ल
    कोनों बइरी झन चीर सकय
    हसदेव के छाती ल

    तोषण कुमार चुरेन्द्र “दिनकर “
    धनगांव डौंडीलोहारा
    बालोद

  • महानदी पर कविता – केवरा यदु

    मोर महानदी के पानी मा – केवरा यदु

    महानदी पर कविता - केवरा यदु

    चाँदी कस चमके चम चम जिंहा चंदा नाचे छम छम ।
    सोंढू पैरी के संगम भोले के ड़मरु  ड़म ड़म ।
    मोर महानदी के पानी  मा।

    महानदी के बीच में बइठे शिव भोला भगवान ।
    सरग ले देवता धामी आके करथें प्रभू गुणगान ।
    माता सीता बनाइस शिव भोले ला मनाइस मोर महानदी के पानी मा।
    चाँदी कस चमके चम चम–

    ईंहा बिराजे राजीवलोचन राजिम बने प्रयाग ।
    चतुर्भूजी रूप मन मोहे कृष्ण कहंव या राम।
    मँय पिड़िया भोग लगाथंव चरण ला रोज पखारथंव मोर महानदी के पानी मा ।
    चाँदी कस चमके चम चम —

    कुलेश्वर चंपेश्वर पटेश्वर बम्हनेश्वर पटेश्वर धाम।
    महानदी के तीर बसे  हे पंचकोशी हे नाम।
    सबो देवता ला मनाथें तन मन फरियाथें, मोर महानदी के पानी मा।
    चाँदी कस चमके चम चम —

    पवन दिवान के कर्म स्थली महानदी के तीर।
    ज्ञानी ध्यानी  संत कवि  जी रहिन कलम  वीर ।
    गूँजे कविता कल्याणी अमर हे उंकर कहानी,मोर महानदी के पानी मा ।
    चाँदी कस चमके चम चम –

    माघी पुन्नी में मेला भराथे साधु संत सब आथें।
    लोमश श्रृषि आश्रम मा आके  धुनी रमाथें।
    बम बम बम बमभोला गाथें अऊ डुबकी लगाथें,मोर महानदी के पानी मा ।
    चाँदी कस चमके चम चम —

    दुरिहा दुरिहा ले यात्री आथें देवता दर्शन पाथें।
    गंगा आरती मा रोजे आके जीवन सफल बनाथें ।
    भजन कीर्तन गाके मनौती मनाथें, मोर महानदी के पानी मा।।
    चाँदी कस चमके चम चम –

    चाँदी कस चमके चम चम जिंहा चँद नाचे छम छम ।
    सोंढू पैरी के संगम भोले के ड़मरु ड़म ड़म ।
    मोर महानदी के पानी मा ।
    मोर महानदी के पानी मा ।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम (छ॰ग)

  • छत्तीसगढ़ी गीत – तेरस कैवर्त्य

    छत्तीसगढ़ी गीत – झिन रोबे दाई मोर

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    झिन रोबे दाई मोर झिन रोबे बाई मोर।
    रात दिन गुनत तंय ह झिन रोबे न ss अकेला ही जाहूँ , कोनो नइ जावय संग म।


    झुलत रही मुहरन , तोर नजरे नजर म।
    भुइंया म आके , झिन जीयव घमंड म।
    काँटा खूँटी झिन गड़व , जिन्गी डहर म।
    राख हो जाही ये माटी म काया – 2
    पिरीत के बिरवां ल बोंबें न ss
    झिन रोबे दाई मोर , झिन …… लइका ल बने तँय , पढ़ा अउ लिखा के।


    ओमन के जिन्गी ल , उज्जर बनाबे।
    नान्हे बड़कू रिश्ता , बड़ मान सीखा के।
    सुग्घर सिरजा के , भल मनखे बनाबे।
    हिम्मत करबे आँसू ल पोछ के – 2
    गरु के गठरी ल बोहले न ss
    झिन रोबे दाई मोर , झिन …… छत्तीसगढ़ माटी के , मँय तेरस हव बेटा।

    धनहा डोली हय , मोर सोन के डोला।
    तहूँ बाप बनबे मोर , दुलरवा तँय बेटा।
    लबारी मंदारी छोड़ , बता बे सबो ला।
    आवा गमन दुनिया के रिवाज हे -2
    मोला खांध म तँय ढ़ोबे न ss
    झिन रोबे दाई मोर , झिन ……. झिन रोबे भाई मोर झिन रोबे बेटा मोर।
    झिन रोबे बहिनी मोर झिन रोबे दीदी मोर।
    रात दिन गुनत तँय ह झिन रोबे न ss – 2

    रचना – तेरस कैवर्त्य (आँसू)
      सोनाडुला , (बिलाईगढ़)
    जिला – बलौदाबाजार (छ. ग.)

  • संसद ल सड़क म लगा के तो देख

    संसद ल सड़क म लगा के तो देख

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    गिंजरथे गुरु ह गली म पुस्तक ल धर के,
    बटोरे हे लईकन ल मास्टर गाँव भर के।

    जनता के हक ल बगरा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    हमला भरोसा हे किसान अउ नागर म,
    माथा गंगा बोहावथे मंगलू के जांगर म।
    तर जाही चोला पसीना म नहा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    बक नई फूटै अब तो मुँह म तोपना हे,
    दुश्मन ल देश के बाडर म रोकना हे।
    पहिली करोना के भूत ल भगा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    लंका ह चमकत हे पूछी ह जरगे,
    मँहगी के आगी म भूख ह मरगे।
    साग भाजी हरियर मँगा के तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख,
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    भासन म देश के रोजगार जगाना हे।
    बूता कोनो माँगे तव घंटी बजाना हे।
    अपन घर म खिलौना बनाके तो देख।
    गुरुजी कस पारा म पढ़ा के तो देख।
    अरे ! संसद ल सड़क म लगा के तो देख।

    अनिल कुमार वर्मा