नव-चेतना का आह्वान किया। नमक कानून के खिलाफ पदयात्रा किया। जीना सिखाया हमें स्वाभिमान से, “महात्मा”बुलाते हम सम्मान से, घनघोर अँधेरा में बने आशा की किरण, सत्यअहिंसा की मिशाल बने जिनका जीवन। आज उन्हीं के काम के मान दिवस है। 12 मार्च दाण्डी मार्च दिवस है।।
चल पड़े थे अपने मकसद में अकेले, कुछ सहयोगी भी उनके संग हो लिये, धीरे-धीरे कारवाँ बढ़ता गया। गाँधी फिरंगियों पर भारी पड़ता गया। कानून तोड़ा इंसानियत के नाते, वरना विरोध करना हम कहाँ सीख पाते? स्वदेशी की अहमियत का पहचान दिवस है। 12 मार्च दाण्डी मार्च दिवस है।।
सामान्यतः लय को बताने के लिये छन्द शब्द का प्रयोग किया गया है। यह अंग्रेजी के ‘मीटर’ अथवा उर्दू-फ़ारसी के ‘रुक़न’ (अराकान) के समकक्ष है।
छंद क्या है?
विशिष्ट अर्थों या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को छ्न्द कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है।
छंद व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णों की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों का पालन कवि को करना होता है। हिन्दी साहित्य में भी छन्द के इन नियमों का पालन करते हुए काव्यरचना की जाती थी, यानि किसी न किसी छन्द में होती थीं।
यदि गद्य की कसौटी ‘व्याकरण’ है तो कविता की कसौटी ‘छन्द’ है। पद्यरचना का समुचित ज्ञान छन्दशास्त्र की जानकारी के बिना नहीं होता।
छंद के अंग
छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं –
गति –
पद्य के पाठ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं।
यति –
पद्य पाठ करते समय गति को तोड़कर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं।
तुक –
समान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः तुकान्त होते हैं।
मात्रा –
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा २ प्रकार की होती है लघु और गुरु।
ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है। लघु मात्रा का मान १ होता है और उसे (। ) चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है। इसी प्रकार गुरु मात्रा का मान २ होता है और उसे (ऽ ) चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है।
गण –
मात्राओं और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिये तीन वर्णों के समूह को एक गण मान लिया जाता है।
गणों की संख्या ८ है – यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ), जगण (।ऽ।), भगण (ऽ।।), नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)।
गण
चिह्न
उदाहरण
प्रभाव
यगण (य)
।ऽऽ
नहाना
शुभ
मगण (मा)
ऽऽऽ
आजादी
शुभ
तगण (ता)
ऽऽ।
चालाक
अशुभ
रगण (रा)
ऽ।ऽ
पालना
अशुभ
जगण (ज)
।ऽ।
करील
अशुभ
भगण (भा)
ऽ।।
बादल
शुभ
नगण (न)
।।।
कमल
शुभ
सगण (स)
।।ऽ
कमला
अशुभ
गणों को आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है- यमाताराजभानसलगा।
काव्य में छंद का महत्त्व
छंद से हृदय को सौंदर्यबोध होता है।
छंद मानवीय भावनाओं को झंकृत करते हैं।
छंद में स्थायित्व होता है।
छंद सरस होने के कारण मन को भाते हैं।
छंद के निश्चित लय पर आधारित होने के कारण वे सुगमतापूर्वक कण्ठस्थ हो जाते हैं।
मैं यूपी बोर्ड का पढ़ा लिखा तुम सी बी एस सी की क्वीन प्रिय , तुम सुनती सोंग शकीरा के मैं किशोर लता में लीन प्रिय , तुम करती पसंद पिज्जा बर्गर मै घी रोटी का शौकीन प्रिय , तुम घूमने जाती पार्कों में मै खेतों की राहों में लीन प्रिय, तुम करती सबसे हाय बाय मै राम राम का शौकीन प्रिय, तुम बोलती हो अंग्रेजी की बोली मै हिंदी में लीन प्रिय, तुम चलती कार एक्टिवा में मै सायकिल में आसीन प्रिय, • तुम करती हत्या जिस संस्कृति की मै उस संस्कृति का शौकीन प्रिय, • हो सकता नहीं मिलन पूरा मै पत्थर तुम मीन प्रिय !!
विश्व कविता दिवस (अंग्रेजी: World Poetry Day) प्रतिवर्ष २१ मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था।
साहित्य की आत्मा कविता
छंद मुक्त कविता
काव्य श्रृंगार बिना साहित्य, बेजान अधूरा सा लगता है । रसयुक्त काव्य जन मानस में, भावों का संचार करता है । श्रृंगार,करुणा,वीर,वात्सल्य ही, साहित्य में प्राण पल्लवित करता है । काव्य साहित्य की आत्मा, काव्य से ही साहित्य सृजता है।
स्वर नाद से गुंजित काव्य, रोम-रोम पुलकित करता है । रामायण, महाभारत जैसे, महाकाव्य की रचना करता है। काव्यहीन साहित्य बेजान सा, रसहीन सृष्टि में नहीं उभरता है । शब्दालंकार की रमणीयता, रसिक अंतर्मन में रस भरता है।
नौ रसायुक्त सृजित काव्य से, साहित्य की शोभा बढ़ता है। साहित्य समाज का दर्पण, राष्ट्र का पथ प्रशस्त करता है। संस्कृति और सभ्यता हमारी, साहित्य में सजता संवरता है । काव्य साहित्य की आत्मा , काव्य से ही साहित्य गूंजता है ।
प्रस्फुटित होते मनोभाव उर के, काव्य सूत्र में बंधित होता है। इतिहास का लेखा-जोखा भी, साहित्य में प्रतिबिंबित होता है। ह्रदय स्पंदित कर छाप छोड़े, वह कालजयी काव्य होता है । काव्य साहित्य की आत्मा, साहित्य में परिलक्षित होता है।
रचनाकार श्रीमती पद्मा साहूपर्वणी खैरागढ़ छत्तीसगढ़