Category: दिन विशेष कविता

  • दोहा छंद विधान व प्रकार

    दोहा छंद विधान व प्रकार – प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    “दोहा” अर्द्धसम मात्रिक छंद है । इसके चार चरण होते हैं। विषम चरण (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरण (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं।

    विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (।ऽ।) टाला जाता है, लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं है। कबीर जी का दोहा ‘बड़ा हुआ तो’ पंक्ति का आरम्भ भी ‘ज-गण’ से ही हुआ है। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा (ऽ।) का होना आवश्यक है, एवं साथ में तुक भी ।

    विशेष – (क) विषम चरणों के कलों का क्रम निम्नवत होता है –
    4+4+3+2 (चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल)

    3+3+2+3+2 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल)
    सम चरणों के कलों का क्रम निम्नवत होता है –
    4+4+3 (चौकल+चौकल+त्रिकल)
    3+3+2+3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)
    (ख़) उल्लेखनीय है कि लय होने पर कलों का प्रतिबन्ध अनिवार्य है किन्तु कलों का प्रतिबन्ध होने पर लय अनिवार्य नहीं है। जैसे –
    श्रीरा/म दिव्य/ रूप/ को , लंके/श गया/ जान l
    4+4+3+2, 4+4+3 अर्थात कलों का प्रतिबन्ध सटीक है फिर भी लय बाधित है l
    (ग) कुछ लोग दोहे को दो ही पंक्तियों/पदों में लिखना अनिवार्य मानते हैं किन्तु यह कोरी रूढ़िवादिता है इसका छंद विधान से कोई सम्बन्ध नहीं है l दोहे के चार चरणों को चार पन्तियों में लिखने में कोई दोष नहीं है l

    बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
        पंथी को छाया नहीं, फल लागैं अति दूर ।।

      – कबीर जी

            दोहों पर कई विद्वान अपने-अपने मत रख चुके हैं फिर भी कई बार देखा जाता है कि नये रचनाकारों को दोहा छंद के विधान व इसके तेईस प्रकारों के संदर्भ ज्ञात नहीं रहते हैं । इस जानकारी में भ्रम की स्थिति न रहे, अस्तु दोहा ज्ञान में एक छोटा सा प्रयास मेरे द्वारा प्रस्तुत है –
     
         

    दोहा छंद के 23 प्रकार

    1. भ्रमर दोहा – 22 गुरु 04 लघु वर्ण
    2. सुभ्रमर दोहा – 21 गुरु 06 लघु वर्ण
    3. शरभ दोहा – 20 गुरु 08 लघु वर्ण
    4. श्येन दोहा – 19 गुरु 10 लघु वर्ण
    5. मण्डूक दोहा – 18 गुरु 12 लघु वर्ण
    6. मर्कट दोहा – 17 गुरु 14 लघु वर्ण
    7. करभ दोहा – 16 गुरु 16 लघु वर्ण
    8. नर दोहा – 15 गुरु 18 लघु वर्ण
    9. हंस दोहा – 14 गुरु 20 लघु वर्ण
    10. गयंद दोहा – 13 गुरु 22 लघु वर्ण
    11. पयोधर दोहा – 12 गुरु 24 लघु वर्ण
    12. बल दोहा – 11 गुरु 26 लघु वर्ण
    13. पान दोहा – 10 गुरु 28 लघु वर्ण
    14. त्रिकल दोहा – 09 गुरु 30 लघु वर्ण
    15. कच्छप दोहा – 08 गुरु 32 लघु वर्ण
    16. मच्छ दोहा – 07 गुरु 34 लघु वर्ण
    17. शार्दूल दोहा – 06 गुरु 36 लघु वर्ण
    18. अहिवर दोहा – 05 गुरु 38 लघु वर्ण
    19. व्याल दोहा – 04 गुरु 40 लघु वर्ण
    20. विडाल दोहा – 03 गुरु 42 लघु वर्ण
    21. श्वान दोहा – 02 गुरु 44 लघु वर्ण
    22. उदर दोहा – 01 गुरु 46 लघु वर्ण
    23. सर्प दोहा – केवल 48 लघु वर्ण

    दोहा छंद विधान व प्रकार के 16 दोहे

    माँ वाणी को कर नमन, लिखूँ दोहा प्रकार ।
    भूल-गलती क्षमा करें, विनम्र करूँ गुहार ।।

    चार-चरण का छंद यह, अनुपम दोहा स्वरुप ।
    विषम में मात्रा तेरह, एकादश सम रूप ।।

    तेरह-ग्यारह की यति, गति की शक्ति अनूप ।
    गुरु-लघु मिल पूरण करें, सम चरण अंतिम रूप ।।

    बाइस गुरु औ चार लघु, भ्रमर उड़ रहा  जान ।
    इक्कीस गुरु अगर छः लघु,  सुभ्रमर होता मान ।।

    बींस गुरु जान शरभ के, लघु होते हैं आठ ।
    दस लघु और उन्नीस गुरु, यह श्येन का पाठ ।।

    गुरु अठारह लघु बारह, यह दोहा मण्डूक,
    लघु चौदह व गुरु सत्रह, जान फिर मर्कट रूप ।।

    सोलह-सोलह करभ के, लघु-गुरु द्वय सम रूप ।
    पन्द्रह गुरु जान नर के, लघु अठारह स्वरुप ।।

    चौदह गुरु और बींस लघु, हंस भरता उड़ान ।
    तेरह गुरु बाईस लघु,  गयंद लेना मान ।।

    पयोधर के गुरु बारह, लघु होते चौबीस  ।
    बल के गुरु ग्यारह हैं, लघु मिलते छब्बीस ।।

    दस गुरु दोहा पान के, लघु अट्ठाइस जहाँ ।
    त्रिकल के मिलें तीस लघु, गुरु नव मिलाप यहाँ ।।

    आठ गुरु हों बत्तीस लघु, जलचर कच्छप जान ।
    सप्त गुरु व चौंतीस लघु, जल में मच्छ समान ।।

    षट गुरु अउ छत्तीस लघु, परिचय यह शार्दूल
    लघु अड़तीस व पंच गुरु, अहिवर का है रूप ।।

    चार गुरु व चालीस लघु, दोहा छंद व्याल
    लघु द्वाचत्वारिंशत्, गुरु त्रय से विडाल ।।

    लघु चव्वालीस गुरु द्वे, श्वान दोहा है जान ।
    छियालीस लघु गुरु एकः, उदर दोहरा मान ।।

    लगे छंद मनहरण यह, लघु अड़तालिस वर्ण ।
    सर्प ये दोहा अनन्य, गुरु जिसके हैं शून्य ।।

    दोहरे रसिक आप तो, विज्ञ पाठक सुजान ।
    छंद मर्म बतला रहा, रवि को दीप समान ।।

  • छंदों की प्रारंभिक जानकारी

    छंदों की प्रारंभिक जानकारी

    छन्द क्या है?

    यति, गति, वर्ण या मात्रा आदि की गणना के विचार से की गई रचना छन्द अथवा पद्य कहलाती है।

    चरण या पद – 

    छन्द की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में उसके नियमानुसार दो चार अथवा छः पंक्तियां होती हंै। उसकी प्रत्येक पंक्ति चरण या पद कहलाती हैं। जैसे –
    रघुकुल रीति सदा चलि जाई।
    प्राण जाहिं बरू वचन न जाई।।
    उपयुक्त चौपाई में प्रथम पंक्ति एक चरण और द्वितीय पंक्ति दूसरा चरण हैं।

    मात्रा – 

    किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे ‘मात्रा’ कहते हैं। ‘मात्राएँ’ दो प्रकार की होती हैं –

    (१) लघु । (२) गुरू S

    लघु मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में बहुत थोड़ा समय लगता है। जैसे – अ, इ, उ, अं की मात्राएँ ।

    गुरू मात्राएँ – उन मात्राओं को कहते हैं जिनके उच्चारण में लघु मात्राओं की अपेक्षा दुगुना अथवा तिगुना समय लगता हैं। जैसे – ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ।

    लघु वर्ण – ह्रस्व स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को ‘लघु वर्ण’ माना जाता है, उसका चिन्ह एक सीधी पाई (।) मानी जाती है।

    गुरू वर्ण – दीर्घ स्वर और उसकी मात्रा से युक्त व्यंजन वर्ण को ‘गुरू वर्ण’ माना जाता है। इसकी दो मात्राएँ गिनी जाती है। इसका चिन्ह (ऽ) यह माना जाता है।
    उदाहरणार्थ –
    क, कि, कु, र्क – लघु मात्राएँ हैं।
    का, की, कू , के , कै , को , कौ – दीर्घ मात्राएँ हैं।

    मात्राओं की गणना

    (१) संयुक्त व्यन्जन से पहला ह्रस्व वर्ण भी ‘गुरू अर्थात् दीर्घ’ माना जाता है।
    (२) विसर्ग और अनुस्वार से युक्त वर्ण भी “दीर्घ” जाता माना है। यथा – ‘दुःख और शंका’ शब्द में ‘दु’ और ‘श’ ह्रस्व वर्ण होंने पर भी ‘दीर्घ माने जायेंगे।
    (३) छन्द भी आवश्यकतानुसार चरणान्त के वर्ण ‘ह्रस्व’ को दीर्घ और दीर्घ को ह्रस्व माना जाता है।

    यति और गति

    यति – छन्द को पढ़ते समय बीच–बीच में कहीं कुछ रूकना पड़ता हैं, इसी रूकने के स्थान कों गद्य में ‘विराग’ और पद्य में ‘यति’ कहते हैं।
    गति – छन्दोबद्ध रचना को लय में आरोह अवरोह के साथ पढ़ा जाता है। छन्द की इसी लय को ‘गति’ कहते हैं।
    तुक – पद्य–रचना में चरणान्त के साम्य को ‘तुक’ कहते हैं। अर्थात् पद के अन्त में एक से स्वर वाले एक या अनेक अक्षर आ जाते हैं, उन्हीं को ‘तुक’ कहते हैं।
    तुकों में पद श्रुति, प्रिय और रोंचक होता है तथा इससे काव्य में लथपत सौन्दर्य आ जाता है।

    गण

    तीन–तीन अक्षरो के समूह को ‘गण’ कहते हैं। गण आठ हैं, इनके नाम, स्वरूप और उदाहरण नीचे दिये जाते हैं : –

     नाम  स्वरूप    उदाहरण   सांकेतिक
    १ यगण  ।ऽऽ वियोगी य
    २ मगण ऽऽऽ मायावी मा
    ३ तगण ऽऽ। वाचाल ता
    ४ रगण ऽ।ऽ  बालिका रा
    ५ जगण ।ऽ। सयोग ज
    ६ भगण ऽ।। शावक भा
    ७ नगण ।।। कमल न
    ८ सगण ।।ऽ सरयू स
    निम्नांकित सूत्र गणों का स्मरण कराने में सहायक है –

    “यमाता राजभान सलगा”

    इसके प्रत्येक वर्ण भिन्न–भिन्न गणों परिचायक है, जिस गण का स्वरूप ज्ञात करना हो उसी का प्रथम वर्ण इसी में खोजकर उसके साथ आगे के दो वर्ण और मिलाइये, फिर तीनों वर्णों के ऊपर लघु–गुरू मात्राओं के चिन्ह लगाकर उसका स्वरूप ज्ञात कर लें। जैसे –
    ‘रगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘रा’ को लिया फिर उसके आगे वाले ‘ज’ और ‘भा’ वर्णों को मिलाया। इस प्रकार ‘राज भा’ का स्वरूप ‘ऽ।ऽ’ हुआ। यही ‘रगण’ का स्वरूप है।

    छन्दों के भेद

    छन्द तीन प्रकार के होते हैं –
    (१) वर्ण वृत्त – जिन छन्दों की रचना वर्णों की गणना के नियमानुसार होती हैं, उन्हें ‘वर्ण वृत्त’ कहते हैं।
    (२) मात्रिक – जिन छन्दों के चारों चरणों की रचना मात्राओं की गणना के अनुसार की जाती है, उन्हें ‘मात्रिक’ छन्द कहते हैं।
    (३) अतुकांत और छंदमुक्त – जिन छन्दों की रचना में वर्णों अथवा मात्राओं की संख्या का कोई नियम नहीं होता, उन्हें ‘छंदमुक्त काव्य कहते हैं। ये तुकांत भी हो सकते हैं और अतुकांत भी।

    प्रमुख मात्रिक छंद-

    (१) चौपाई

    चौपाई के प्रत्येक चरण में १६ मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण और तगण नहीं होता।
    उदाहरण   देखत भृगुपति बेषु कराला।
    ऽ-।-। ।-।-।-।  ऽ-।- ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
    उठे सकल भय बिकल भुआला।
    ।-ऽ ।-।-।  ।-।  ।-।-।  ।-ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
    पितु समेत कहि कहि निज नामा।
    ।-।  ।-ऽ-।  ।-।  ।-।  ।-।   ऽ-ऽ (१६ मात्राएँ)
     लगे करन सब दण्ड प्रनामा।
    ।-ऽ ।-।-।  ।-।  ऽ-।  ऽ-ऽ-ऽ  (१६ मात्राएँ)

    (२) रोला

    रोला छन्द में २४ मात्राएँ होती हैं। ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है। अन्त मे दो गुरू होने चाहिए।
    उदाहरण –
    ‘उठो–उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
    करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
    तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
    भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।।
    ऽ-।-।  ऽ ।-।  ऽ-।  ऽ-।-ऽ  ऽ-ऽ  ऽ-ऽ (२४ मात्राएँ)

    (३) दोहा

    इस छन्द के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ होती हैं। विषय (पहले तीसरे) चरणों के आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे–चौथे) चरणों अन्त में लघु होना चाहिये।
    उदाहरण –
    मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय।
    जा तन की झाँई परे, श्याम हरित दुति होय।।(२४ मात्राएँ)

    (४) सोरठा

    सोरठा छन्द के पहले तीसरे चरण में ११–११ और दूसरे चौथे चरण में १३–१३ मात्राएँ होती हैं। इसके पहले और तीसरे चरण के तुक मिलते हैं। यह विषमान्त्य छन्द है।
    उदाहरण –
    रहिमन हमें न सुहाय, अमिय पियावत मान विनु।
    जो विष देय पिलाय, मान सहित मरिबो भलो।।
    ऽ  ।-।  ऽ-।  ।-ऽ-।   ऽ-।  ।-।-।  ।-।-ऽ  ।-ऽ

    (५) कुण्डलिया

    कुंडली या कुंडलिया के आरम्भ में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती हैं। दोहे का अन्तिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छन्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है।
    उदाहरण –
    दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान।
    चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान।।
    ठाँऊ न रहत निदान, जयत जग में जस लीजै।
    मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै।।
    कह ‘गिरिधर कविराय’ अरे यह सब घट तौलत।
    पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत।।

    (६) सवैया

    इस छन्द के प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु वर्ण होते हैं। यथा –
    उदाहरण –
    मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
    जो पशु हौं तो कहा बस मेरे चारों नित नन्द की धेनु मभारन।।
    पाहन हौं तो वहीं गिरि को जो धरयों कर–छत्र पुरन्दर धारन्।।
    जो खग हौं तो बसैरो करौं मिलि कलिन्दी–कूल–कदम्ब की डारन।।

    (७) कवित्त

    इस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में १६, १५ के विराम से ३१ वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में गुरू वर्ण होना चाहिये। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये ८, ८, ८ और ७ वर्णों पर यति रहना चाहिये। जैसे –
    उदाहरण –
    आते जो यहाँ हैं बज्र भूमि की छटा को देख,
    नेक न अघाते होते मोद–मद माते हैं।
    जिस ओर जाते उस ओर मन भाये दृश्य,
    लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।।
    पल भर अपने को वे भूल जाते सदा,
    सुखद अतीत–सुधा–सिंधु में समाते हैं।।
    जान पड़ता हैं उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ,
    मैंया मैंया–टेरते हैं गैंया को चराते हैं।।

    (८) अतुकान्त और छन्दमुक्त

    जिस रचना में छन्द शास्त्र का कोई नियम नहीं होता। न मात्राओं की गणना होती है और न वर्णों की संख्या का विधान। चरण विस्तार में भी विषमता होती हैं। एक चरण में दस शब्द है तो दूसरे में बीस और किसी में केवल एक अथवा दो ही होते हैं। इन रचनाओं में राग और श्रुति माधुर्य के स्थान पर प्रवाह और कथ्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है। शब्द चातुर्य, अनुभूति गहनता और संवेदना का विस्तार इसमें छांदस कविता की भाँति ही होता है।
    उदाहरण –
    वह तोड़ती पत्थर
    देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर
    कोई न छायादार
    पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकर
    श्याम तन, भर बंधा यौवन,
    नत नयन, प्रिय–कर्म–रत–मन,
    गुरु हथौड़ा हाथ,
    करती बार–बार प्रहार –
    सामने तरू–मालिक अट्टालिका आकार।
    चढ़ रही थी धूप
    गर्मियों के दिन,
    दिवा का तमतमाता रूप
    उठी झुलसाती हुई लू,
    रूई ज्यों जलती हुई भू,
    गर्द चिनगी छा गई
    प्रायः हुई दोपहर –
    वह तोड़ती पत्थर।

  • सायली कैसे लिखें (How to write SAYLI)

    सायली कैसे लिखें (How to write SAYLI)

    सायली रचना विधान : सायली कैसे लिखें

    हाइकु
    hindi sahityik class || हिंदी साहित्यिक कक्षा
    • सायली एक पाँच पंक्तियों और नौ शब्दों वाली कविता है |
    • मराठी कवि विशाल इंगळे ने इस विधा को विकसित किया हैं बहुत ही कम वक्त में यह विधा मराठी काव्यजगत में लोकप्रिय हुई और कई अन्य कवियों ने भी इस तरह कि रचनायें रची  ।
    •  पहली पंक्ती में एक शब्द
    •  दुसरी पंक्ती में दो शब्द
    • तीसरी पंक्ती में तीन शब्द
    • चौथी पंक्ती में दो शब्द
    •  पाँचवी पंक्ती में एक शब्द और
    • कविता आशययुक्त हो |
    • इस तरह से सिर्फ नौ शब्दों में रचित पूर्ण कविता को सायली कहा जाता हैं |
    • यह शब्द आधारित होने के कारण अपनी तरह कि एकमेव और अनोखी विधा है |
    • हिंदी में इस तरह कि रचनायें सर्वप्रथम शिरीष देशमुख की कविताओं में नजर आती हैं |

    उदाहरण*=

    इश्क

    मिटा गया

    बनी बनायी हस्ती

    बिखर गया

    आशियाँ..

    *© शिरीष देशमुख*

    तुझे

    याद नहीं

    मैं वहीं बिखरा

    छोडा जहां

    तुने.. 

    © शिरीष देशमुख

    • सायली विधा में आप देखेगें कि हाइकु की भांती हर लाइन अपने आप में सम्पुर्ण है | 
    • बातचीत अथवा दुसरी विधा की कविताओं मे जैसे लाइन होती है उस तरह से वाक्य को तोड़ कर लाइन बना देने से ही सायली नहीं होती |  
  • सेदोका कैसे लिखें (How to write SEDOKA)

    सेदोका कैसे लिखें (How to write SEDOKA)

    सेदोका कैसे लिखें (How to write SEDOKA)

    literature in hindi
    literature in hindi

    सेदोका रचना विधान
    सेदोका 05/07/07 – 05/07/07 वर्णक्रम की षट्पदी – छः चरणीय एक प्राचीन जापानी काव्य विधा है । इसमें कुल 38 वर्ण होते हैं , व्यतिक्रम स्वीकार नहीं है । इस काव्य के कथ्य कवि की संवेदना से जुड़ कर भाव प्रवलता के साथ प्रस्तुत होने वाली यह एक प्रसिद्ध काव्य विधा है, जिसके आगमन से हिन्दी काव्य साहित्य की श्रीवृद्धि हुई है । उदाहरण स्वरूप मेरी एक सेदोका रचना यहाँ प्रस्तुत है, अवश्य देखें ——-

    मरु प्रदेश
    मेघों का आगमन
    है, जीवन संदेश
    सूखे तरु का
    तन मन हर्षित
    अलौकिक ये वेश ।

    टीप : वर्णक्रम – 05,07,07 – 05,07,07 । निर्दिष्ट भाव से आश्रित प्रत्येक पंक्तियाँ “हाइकु” की तरह स्वतंत्र होना इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है । दो कतौते से एक सेदोका पूर्ण होता है । आपके श्रेष्ठ सेदोका कविता बहार पर आमंत्रित हैं ।

    और पढ़ें : मनीभाई नवरत्न के सेदोका

    प्रदीप कुमार दाश दीपक के सेदोका

    01)
    कोमल फूल 
    सह जाते हैं सब
    व्यक्तित्व अनुकूल 
    वरना कभी 
    मसल कर देखो
    लहू निकालें शूल ।

    02)
    कंटक पथ
    सफर पथरीला
    साथी संग जीवन 
    कर लो साझा 
    होगा लक्ष्य आसान
    मिलेगी सफलता ।

    03)
    मरु प्रदेश 
    मेघों का आगमन
    है, जीवन संदेश 
    सूखे तरु का
    तन मन हर्षित 
    अलौकिक ये वेश ।

    04)
    बस गईं वे  —-
    खयालों में जब से 
    भले वो साथ नहीं 
    पर हम तो
    उनके साथ रहे
    कभी अकेले नहीं ।

    05)
    यादों के साये
    हवा के संग संग
    मानो खुशबू हैं ये
    भीतर आते
    बंद कर लो चाहे 
    खिड़की दरवाजे ।

    06)
    क्रय-विक्रय
    जीवन के सफर 
    कुछ नहीं हासिल 
    केवल व्यय 
    जिम्मेदारी के हाट
    गिरवी पड़े ठाठ ।

    07)
    बड़े अजीब
    खण्डहर निर्जीव
    देखने आते लोग
    चले जाते हैं 
    यही अकेलापन
    है उसका नसीब ।

    {08}

    पेड़ों का दुःख 
    कुल्हाड़ी की आवाज 
    सुन कर मनुष्य 
    रहता चुप
    धूप से तड़पती
    बूढ़ी पृथ्वी है मूक ।

        ~~●~~

        {09}

    मौसमी मार
    पेड़ हुए निर्वस्त्र 
    पत्तियाँ समा गईं 
    काल के गाल
    फूटो नई कोंपलें 
    क्यों करो इंतजार ?

       ~~●~~

    □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    पद्ममुख पंडा स्वार्थी के सेदोका

    प्रचण्ड गर्मी
    सहता गिरिराज
    पहन हिमताज
    रक्षक वह
    है हमारे देश का
    हमको तो है नाज़

    वृक्षारोपण
    एक अभिवादन
    जो बना देता  वन
    पर्यावरण 
    सुरक्षित रखने
    खुश हो जाता मन

    नाप सकते
    मन की गहराई
    काश संभव होता
    समुद्र में भी
    हो फसल उगाई
    ग़रीबी की विदाई
     

    सत्यवादी जो
    परेशान रहता
    अग्नि परीक्षा देता
    पूरी दुनिया
    उसे हंसी उड़ाती
    वो चूं नहीं करता

    अंधा आदमी
    मन्दिर चला जाता
    खुद को समझाता
    उसे देखने
    जो दिखता ही नहीं
    आंखों के होते हुए

    उसके घर
    देर भी है सर्वदा
    अंधेर भी है सदा
    न्याय से परे
    मिलता परिणाम
    खास हो या कि आम

    जो करते हैं
    अथक परिश्रम
    क्या थकते नहीं हैं?
    सच तो यह
    कि बिना थके कभी
    काम ही नहीं होता!!

    अनवरत
    जीवन  रथ चले
    सुबह सांझ ढले
    मज़ाक नहीं
    कि परिवार पले
    बिना आह निकले

    मेरी कुटिया
    मुझे आराम देती
    मेरी खबर लेती
    बिजली नहीं
    तो भी प्रकाश देती
    ठंडक बरसाती

    सत्यवादी जो
    परेशान रहता
    अग्नि परीक्षा देता
    पूरी दुनिया
    उसे हंसी उड़ाती
    वो चूं नहीं करता

    अंधा आदमी
    मन्दिर चला जाता
    खुद को समझाता
    उसे देखने
    जो दिखता ही नहीं
    आंखों के होते हुए

    उसके घर
    देर भी है सर्वदा
    अंधेर भी है सदा
    न्याय से परे
    मिलता परिणाम
    खास हो या कि आम

    जो करते हैं
    अथक परिश्रम
    क्या थकते नहीं हैं?
    सच तो यह
    कि बिना थके कभी
    काम ही नहीं होता!!

    अनवरत
    जीवन  रथ चले
    सुबह सांझ ढले
    मज़ाक नहीं
    कि परिवार पले
    बिना आह निकले

    मेरी कुटिया
    मुझे आराम देती
    मेरी खबर लेती
    बिजली नहीं
    तो भी प्रकाश देती
    ठंडक बरसाती

    पद्म मुख पंडा स्वार्थी

    धनेश्वरी देवांगन धरा के सेदोका

    खिले कलियाँ
      नहा शबनम‌ में
      फूलों के मौसम में
      अलि  बहके
      बसंती बयार है
      अनोखा त्यौहार है
      **
      कली मुस्काये
      कैसी है आवारगी?
      छायी है दीवानगी
      दिल दहके
      उमंग अपार है
      प्यारा -सा संसार है
      **
      समा है हसीं
      मौसम है फूलों का 
      आनंद है झूलों का
      गुल महके 
      बागों में बहार है
      सोलह श्रृंगार है
      **
      शाम‌ मस्तानी‌

    रूत है जवां- जवां 
      गुल करे है  बयां
      पिक चहके
      कली में निखार है
      फिज़ा में खुमार है

    धनेश्वरी देवांगन ” धरा”

    क्रांति की सेदोका रचना

    जमाना झूठा
    बना साधु इंसान
    बेच रहा ईमान
    पैसों के लिए
    बन रहा हैवान
    होता  है बदनाम।।

    घिसे किस्मत
    चप्पल की तरह
    बदलता इंसान
    क्षण भर में
    बन जाता हैवान
    पैसों के लालच में।।

    मां की मूरत
    लगे खूबसूरत
    चंद्रमा की तरह
    रौशन करें
    बच्चों के जीवन से
    छंटता अंधियारा।।

    बने अमीर
    बेचकर जमीर
    कमाता है रुपया
    आज इंसान
    चैन के तलाश में
    खो बैठा है खुशियां।।

    बगैर वस्त्र
    सड़क के किनारे
    ठिठुर रहा बच्चा
    कठिन घड़ी
    कोई न देता साथ
    जरूरत के वक्त।।

    सड़क पर
    पेपरों से लिपटा
    अबोध बच्चा मिला
    सूरत प्यारा
    किस्मत का है मारा
    है कोई बेसहारा।।

    होते सबेरे
    खगों का कलरव
    लगता बड़ा न्यारा
    नन्हा परिंदा
    भर रहा उड़ान
    गगन की तरफ।।

    क्रान्ति, सीतापुर, सरगुजा छग

    सायली कैसे लिखें ( How to write SAYLI )

  • वे है मेरे गुरु जी-रोहित शर्मा ‘राही’

    भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    गुरु शिष्य

    वे है मेरे गुरु जी

    अंधकार की गुफा बड़ी थी,
    जिससे मुझको बाहर ले आए ।  
       काले काले श्यामपट्ट पर, 
    नूतन श्वेत अक्षर सिखाये। 
    अपना पराया अच्छे बुरों का,
    सदैव ये मुझे भेद बताए।
    सबसे अच्छे सबसे सच्चे,
    वे है मेरे गुरु जी…….

    बात बड़ी बड़ी,
    छोटी करके ।
    ख्वाब दिखाएं ,
    बड़े होने के ।
    साथ मेरे खेले कूदे ,
    मुर्दों में भी जान फूंके ।
    जिनका अक्षर अक्षर ब्रह्म था,
    वे है मेरे गुरुजी ………

    मेरे दुख में  वे रोते थे,
    सफलताओं की कुंजी बोते थे।
    आगे बढ़ाने  मेरी सीढ़ी बनकर,
    नित नवीन ज्ञान देते थे ।
    जिनकी बदौलत आज पटल पर,
    काव्य नवीन रच रहा हूं ।
    अखिल विश्व में जीवित ईश्वर,
    वें है मेरे गुरुजी ………

    रोहित शर्मा ‘राही’
    भंवरपुर, जिला-महासमुंद
    छत्तीसगढ़
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद