Category: दिन विशेष कविता

  • पाँच दिवसीय दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

    पाँच दिवसीय दीपावली: अंतर्गत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक लगातार पांच पर्व होते हैं इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और गोवर्धन पूजा का विधान है।

    दीपावली

    पाँच दिवसीय दीपावली

    दोहावली–

    1.

    पखवाड़ा है कार्तिकी , कृष्णपक्ष गतिशील।
    लाई है दीपावली , दीपों के कंदील।।

    2.
    प्रगट हुए धन्वंतरी , सागर मन्थन बाद।
    इक दुर्लभ संजीवनी , बाँटीं रूप प्रसाद।।

    3.
    किया चतुर्दश कृष्ण ने , नरकासुर संहार।
    मुक्त हुईं कन्या सभीं , करतीं जय-जयकार।।

    4.
    मन्थन हुआ समुद्र का ,तिथि अमावसी खास।
    प्रकटीं लक्ष्मी मात तब , धन की लेकर रास।।

    5.
    बरस बिता चौदह चले , कर रावण वध राम।
    उल्लासित हो जल उठे, दीप अयोध्या धाम।।

    6.
    रात अमावस की गहन , चन्दा भी उस पार।
    दीपमालिका की छटा , ले आयी उजियार।।

    7.
    अति उदार बलि आचरण,धन कुपात्र के हाथ।
    देख विष्णु भगवन् चले , लिये योजना साथ।।

    8.
    शुक्ल कार्तिकी प्रतिपदा, ले वामन अवतार।
    विष्णु कृपा, बलि से मिली, भूमि त्रिपद अनुसार।।

    9.
    दूज कार्तिकी शुक्ल की, यम-यमुना का नेह।
    मिला निमंत्रण भोज का , चले बहन के गेह।।

    10.
    तिलक और मिष्ठान्न से , कर यम का सत्कार।
    यमुना माँगे भ्रात हित , दीर्घ आयु उपहार।।

    11.
    अँगनाई गोबर लिपी , पानी की बौछार।
    भित्तिचित्र , ऐपन कला , मोहक दीप कतार।।

    12.
    वृद्ध, युवक, बालक सजें , रमणी करें सिंगार।
    धूप , अगर , कर्पूर से , महकी चले बयार।।

    13.
    आम्र- पर्ण गेंदा सहित , चौखट बंदनवार।
    दीप-शिखाएँ कर रहीं , आलोकित हर द्वार।।

    14.
    दिवस पाँच दीपावली , भक्ति भाव चहुँओर।
    आस्था सह सद्भावना , लगे सुखद हर भोर।।

    15.
    ज्योत जलाकर नेह की, करें मन-तिमिर नाश।
    दीप-पर्व सार्थक तभी,जब हो आत्म- प्रकाश।।
    ~~~~
    ©सुधा राठौर

  • दीपावली के 5 दिन पर कविता Poem on 5 days of Diwali

    दीपावली के 5 दिन पर कविता Poem on 5 days of Diwali

    दीपावली के 5 दिन पर कविता: अंतर्गत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक लगातार पांच पर्व होते हैं इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और गोवर्धन पूजा का विधान है।

    jai laxmi maata

    दीपावली के 5 दिन पर कविता में से एक धनतेरस पर कविता

    कविता 1.

    दीप जले दीवाली आई
    खुशियों की सौगाती।
    सुख दुख बाँटो मिलकर ऐसे,
    जैसे दीया बाती।

    धनतेरस जन्म धनवंतरी,
    अमृत औषधी लाये।
    जिनकी कृपा प्रसादी मानव
    स्वस्थ धनी हो पाये।

    औषध धन है,सुधा रोग में,
    मानवता के हित में।
    सभी निरोगी समृद्ध होवे,
    करें कामना चित में।

    दीन हीन दुर्बल जन मन को,
    आओ धीर बँधाए।
    बिना औषधी कोई प्राणी,
    जीवन नहीं गँवाए।

    एक दीप यदि मन से रखलें,
    धनतेरस मन जाए।
    मनो भावना शुद्ध रखें सब,
    ज्ञान गंध महकाए।

    स्वस्थ शरीर बड़ा धन समझो,
    धन से भी स्वास्थ्य मिले।
    धन काया में रहे संतुलन,
    हर जन को पथ्य मिले।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा , विज्ञ

    कविता 2.

    अमृत कलश के धारक,सागर मंथन से निकले।
    सुख समृद्धि स्वास्थ्य के,देव आर्युवेद के विरले।
    चार भुजा शंख चक्र,औषध अमृत कलश धारी।
    विष्णु के अवतार हैं देव,करें कमल पर सवारी।
    आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि,हैं आरोग्य के देवता।
    कार्तिक त्रयोदशी जन्म हुआ,कृपा करें धनदेवता।
    पीतल कलश शुभ संकेत,देते हैं यश वैभव भंडार।
    आर्युवेद की औषध खोज,किया जगत का उद्धार।
    धनतेरस को यम देवता की पूजा कर 13 दीये जलाएं।
    धन्वंतरि जी कृपा करेंगे,यश सुख समृद्धि स्वास्थ्य पाएं।

    सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”

    कविता 3.

    सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारी
    धनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी।
    जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते।
    लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते।
    खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना।
    रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना।

    ✍ सुकमोती चौहान “रुचि”

    कविता 4.

    धनतेरस पर कीजिए ,
                       धन लक्ष्मी का मान ।
    पूजित हैं इस दिवस पर ,
                         धन्वंतरि भगवान ।।
    धन्वंतरि भगवान , 
            शल्य के जनक चिकित्सक ।
    महा वैद्य हे देव ,
                   निरोगी काया चिंतक ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
                  निरामय तन मन दे रस ।
    आवाहन स्थान ,
                      पधारो घर धनतेरस ।।

          ~ रामनाथ साहू ” ननकी “

    कविता 5.

    धन की वर्षा हो सदा,हो मन में उल्लास

    तन स्वथ्य हो आपका,खुशियों का हो वास

    जीवन में लाये सदा,नित नव खुशी अपार
    धनतेरस के पर्व पर,धन की हो बौछार

    सुख समृद्धि शांति मिले,फैले कारोबार
    रोशनी से रहे भरा,धनतेरस त्यौहार

    झालर दीप प्रज्ज्वलित,रोशन हैं घर द्वार
    परिवार में सबके लिए,आये नए उपहार

    माटी के दीपक जला,रखिये श्रम का मान

    @संतोष नेमा “संतोष”

    कविता 6.

    धनतेरस का पुण्य दिन, जग में बड़ा अनूप।
    रत्न चतुर्दश थे मिले, वैभव के प्रतिरूप।।

    आज दिवस धनवंतरी, लाए अमृत साथ।
    रोग विपद को टालते, सर पे जिसके हाथ।।

    देव दनुज सागर मथे, बना वासुकी डोर।
    मँदराचल थामे प्रभू, कच्छप बन अति घोर।।

    प्रगटी माता लक्षमी, सागर मन्थन बाद।
    धन दौलत की दायनी, करे भक्त नित याद।।

    शीतल शशि उस में मिला, शंभु धरे वह माथ।
    धन्वन्तरि थे अंत में, अमिय कुम्भ ले हाथ।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    कविता 7. माँ लक्ष्मी वंदना

    चाँदी जैसी चमके काया, रूप निराला सोने सा।
    धन की देवी माँ लक्ष्मी का, ताज चमकता हीरे सा।

    जिस प्राणी पर कृपा बरसती, वैभव जीवन में पाये।
    तर जाते जो भजते माँ को, सुख समृद्धि घर पर आये।

    पावन यह उत्सव दीपों का,करते ध्यान सदा तेरा।
    धनतेरस से पूजा करके, सब चाहे तेरा डेरा।

    जगमग जब दीवाली आये,जीवन को चहकाती है।
    माँ लक्ष्मी के शुभ कदमों से, आँगन को महकाती है

    तेरे साये में सुख सारे, बिन तेरे अँधियारा है।
    सुख-सुविधा की ठंडी छाया, लगता जीवन प्यारा है।

    गोद सदा तेरी चाहें हम, वन्दन तुमको करते हैं।
    कृपादायिनी सुखप्रदायिनी,शुचिता रूप निरखते हैं।

    भाई दूज पर कविताएँ

    डॉ.सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”

    नरक चतुर्दशी नाम है

    नरक चतुर्दशी नाम है
    सुख समृद्धि का त्यौहार
    रूप चौदस कहते इसे
    सुहागने करती श्रंगार

    यम का दीप जलाया जाता
    सद्भाव प्रेम जगाया जाता
    बड़े बुजुर्गों के चरण छू कर
    खूब आशीष पाया जाता

    छोटी दिवाली का रुप होती
    रोशनी अनूप होती
    सजावट से रौनक बाजार
    दीपो की छटा सरुप होती

    खुशियों का त्योहार है
    दीपों की बहार है
    गणेश लक्ष्मी पूजन में
    सज रहे घर बार है

    कवि : रमाकांत सोनी
    नवलगढ़ जिला झुंझुनू

    सारथी बन कृष्ण

    सारथी बन कृष्ण ने चलाया था रथ
    सत्यभामा ने सहत्र द्रौपदी की लाज हेतु उठाया था शस्त्र
    नरकासुर को प्राप्त था वर
    होगा किसी स्त्री के हाथों ही उसका वध
    माता भूदेवी का था प्रण
    पुत्र नरकासुर की मृत्यु के दिन
    मनाया जाएगा पर्व
    देव यम को भी पूजते आज
    रहे स्वस्थ एवं दीर्घायु हम सब
    आप सभी को मंगलमय हो नरक चतुर्दशी का यह पर्व….

    नरकासुर मार श्याम जब आये

    नरकासुर मार श्याम जब आये।
    घर घर मंगल दीप जले तब, नरकचतुर्दश ये कहलाये।।

    भूप प्रागज्योतिषपुर का वह, चुरा अदिति के कुण्डल लाया,
    सौलह दश-शत नार रूपमति, कारागृह में लाय बिठाया,
    साथ सत्यभामा को ले हरि, दुष्ट असुर के वध को धाये।
    नरकासुर मार श्याम जब आये।।

    पक्षी राज गरुड़ वाहन था, बनी सारथी वह प्रिय रानी,
    घोर युद्ध में उसका वध कर, उसकी मेटी सब मनमानी,
    नार मुक्त की कारागृह से, तब से जग ये पर्व मनाये।
    नरकासुर मार श्याम जब आये।।

    स्नान करें प्रातः बेला में , अर्घ्य सूर्य को करें समर्पित,
    दीप-दान सन्ध्या को देवें, मृत्यु देव यम को कर पूजित,
    नरक-पाश का भय विलुप्त कर, प्राणी सुख की वेणु बजाये।
    नरकासुर मार श्याम जब आये।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

    भाई-बहन का रिश्ता न्यारा- दीप्ता नीमा

    भाई-बहन का रिश्ता न्यारा
    लगता है हम सबको प्यारा
    भाई बहन सदा रहे पास
    रहती है हम सभी की ये आस
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।1।।

    भाई बहन को बहुत तंग करता है
    पर प्यार भी बहुत उसी से करता है
    बहन से प्यारा कोई दोस्त हो नहीं सकता
    इतना प्यारा कोई बंधन हो नहीं सकता
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।2।।

    बहन की दुआ में भाई शामिल होता है
    तभी तो ये पाक रिश्ता मुकम्मिल होता है
    अक्सर याद आता है वो जमाना
    रिश्ता बचपन का वो हमारा पुराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।3।।

    वो हमारा लड़ना और झगड़ना
    वो रूठना और फिर मनाना
    एक साथ अचानक खिलखिलाना
    फिर मिलकर गाना नया कोई तराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।4।।

    अपनी मस्ती के किस्से एक दूजे को सुनाना
    माँ-पापा की डांट से एक दूजे को बचाना
    सबसे छुपा कर एक दूजे को खाना खिलाना
    बहुत खास होता है भाई-बहन का ये याराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।5।।

    दीप्ता नीमा

    भाई दूज पर कविता

    मैं डटा हूँ सीमा पर
    बनकर पहरेदार।
    कैसे आऊँ प्यारी बहना
    मनाने त्यौहार।
    याद आ रहा है बचपन
    परिवार का अपनापन।
    दीपों का वो उत्सव
    मनाते थे शानदार।
    भाई दूज पर मस्तक टीका
    रोली चंदन वंदन।हम
    इंतजार तुम्हें रहता था
    मैं लाऊँ क्या उपहार?
    प्यारी बहना मायूस न होना
    देश को मेरी है जरूरत।
    हम साथ जरूर होंगे
    भाई दूज पर अगली बार।
    कविता पढ़कर भर आयी
    बहना तेरी अखियाँ।
    रोना नहीं तुम पर
    करता हूँ खबरदार।
    चलो अब सो जाओ
    करो नहीं खुद से तकरार।
    सपना देखो, ख्वाब बुनो
    सबेरा लेकर आयेगा शुभ समाचार ।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीस

  • धनतेरस पर कविताएं: Poems on Dhanteras in hindi

    धनतेरस पर कविताएं: कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चाँदी के बने बर्तन खरीदते हैं। 

    धनतेरस पर कविताएं
    Poems on Dhanteras

    धनतेरस पर कविता

    माँ लक्ष्मी वंदना

    चाँदी जैसी चमके काया, रूप निराला सोने सा।
    धन की देवी माँ लक्ष्मी का, ताज चमकता हीरे सा।

    जिस प्राणी पर कृपा बरसती, वैभव जीवन में पाये।
    तर जाते जो भजते माँ को, सुख समृद्धि घर पर आये।

    पावन यह उत्सव दीपों का,करते ध्यान सदा तेरा।
    धनतेरस से पूजा करके, सब चाहे तेरा डेरा।

    जगमग जब दीवाली आये,जीवन को चहकाती है।
    माँ लक्ष्मी के शुभ कदमों से, आँगन को महकाती है

    तेरे साये में सुख सारे, बिन तेरे अँधियारा है।
    सुख-सुविधा की ठंडी छाया, लगता जीवन प्यारा है।

    गोद सदा तेरी चाहें हम, वन्दन तुमको करते हैं।
    कृपादायिनी सुखप्रदायिनी,शुचिता रूप निरखते हैं।

    डॉ.सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”

    दीप जले दीवाली आई

    दीप जले दीवाली आई
    खुशियों की सौगाती।
    सुख दुख बाँटो मिलकर ऐसे,
    जैसे दीया बाती।

    धनतेरस जन्म धनवंतरी,
    अमृत औषधी लाये।
    जिनकी कृपा प्रसादी मानव
    स्वस्थ धनी हो पाये।

    औषध धन है,सुधा रोग में,
    मानवता के हित में।
    सभी निरोगी समृद्ध होवे,
    करें कामना चित में।

    दीन हीन दुर्बल जन मन को,
    आओ धीर बँधाए।
    बिना औषधी कोई प्राणी,
    जीवन नहीं गँवाए।

    एक दीप यदि मन से रखलें,
    धनतेरस मन जाए।
    मनो भावना शुद्ध रखें सब,
    ज्ञान गंध महकाए।

    स्वस्थ शरीर बड़ा धन समझो,
    धन से भी स्वास्थ्य मिले।
    धन काया में रहे संतुलन,
    हर जन को पथ्य मिले।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा , विज्ञ

    धन्वंतरि जी

    अमृत कलश के धारक,सागर मंथन से निकले।
    सुख समृद्धि स्वास्थ्य के,देव आर्युवेद के विरले।
    चार भुजा शंख चक्र,औषध अमृत कलश धारी।
    विष्णु के अवतार हैं देव,करें कमल पर सवारी।
    आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि,हैं आरोग्य के देवता।
    कार्तिक त्रयोदशी जन्म हुआ,कृपा करें धनदेवता।
    पीतल कलश शुभ संकेत,देते हैं यश वैभव भंडार।
    आर्युवेद की औषध खोज,किया जगत का उद्धार।
    धनतेरस को यम देवता की पूजा कर 13 दीये जलाएं।
    धन्वंतरि जी कृपा करेंगे,यश सुख समृद्धि स्वास्थ्य पाएं।

    सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”

    सजा धजा बाजार

    सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारी
    धनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी।
    जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते।
    लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते।
    खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना।
    रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना।

    ✍ सुकमोती चौहान “रुचि”

    धनतेरस

    धनतेरस पर कीजिए ,
                       धन लक्ष्मी का मान ।
    पूजित हैं इस दिवस पर ,
                         धन्वंतरि भगवान ।।
    धन्वंतरि भगवान , 
            शल्य के जनक चिकित्सक ।
    महा वैद्य हे देव ,
                   निरोगी काया चिंतक ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
                  निरामय तन मन दे रस ।
    आवाहन स्थान ,
                      पधारो घर धनतेरस ।।

          ~ रामनाथ साहू ” ननकी “

    धनतेरस त्यौहार पर कविता

    धन की वर्षा हो सदा,हो मन में उल्लास

    तन स्वथ्य हो आपका,खुशियों का हो वास

    जीवन में लाये सदा,नित नव खुशी अपार
    धनतेरस के पर्व पर,धन की हो बौछार

    सुख समृद्धि शांति मिले,फैले कारोबार
    रोशनी से रहे भरा,धनतेरस त्यौहार

    झालर दीप प्रज्ज्वलित,रोशन हैं घर द्वार
    परिवार में सबके लिए,आये नए उपहार

    माटी के दीपक जला,रखिये श्रम का मान

    @संतोष नेमा “संतोष”

    धनतेरस के दोहे

    धनतेरस का पुण्य दिन, जग में बड़ा अनूप।
    रत्न चतुर्दश थे मिले, वैभव के प्रतिरूप।।

    आज दिवस धनवंतरी, लाए अमृत साथ।
    रोग विपद को टालते, सर पे जिसके हाथ।।

    देव दनुज सागर मथे, बना वासुकी डोर।
    मँदराचल थामे प्रभू, कच्छप बन अति घोर।।

    प्रगटी माता लक्षमी, सागर मन्थन बाद।
    धन दौलत की दायनी, करे भक्त नित याद।।

    शीतल शशि उस में मिला, शंभु धरे वह माथ।
    धन्वन्तरि थे अंत में, अमिय कुम्भ ले हाथ।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

  • वीर जवान पर कविता

    23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में याद किया जाता है और भारत में मनाया जाता है। इस दिन 1931 को तीन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।

    महात्मा गांधी की स्मृति में। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी की हत्या कर दी गयी थी। महात्मा गांधी के सम्मान में 30 जनवरी को राष्ट्रीय स्तर पर शहीद दिवस मनाया जाता है।

    वीर जवान पर कविता

    थल,नभ के बने प्रहरी,
    हम भारत माँ की  शान।
    ऐसा ही भारत माँ का
    मैं हुँ वीर जवान।
    देश की हर शरहद है,
    मेरे घर की आन
    कर्म भूमि है ,
    लिया है मैंने मान
    बूरी नजर जो मेरी माँ पर डाली
    ले लूगाँ दुश्मन की जान।
    भारत माँ का मैं वीर जवान…
    ऋणी रहुँगा उस प्यारी माँ का जन्म दिया,
    बना दिया जाँबाज।
    गौरव हूँ मैं मातृभूमि का,
    खडा़ हूँ सीना तान
    भारत माँ का मैं वीर जवान…..
    गर मौत सामने आती है,
    सौभाग्य जन्म का मिलता हैं
    बलिदान देश पर होकर ही,
    मानूं सच्चा सम्मान
    भारत माँ का मैं वीर जवान….
    सौ-सौ जन्म हो जाऊँ कुर्बान,
    अमर शहीद कहलाऊँ ।
    लिपटा तिरंगें मे आऊँ,जब..माँ!
    बलिहारी मेरी लेना….
    भारत माँ की देना नज़र उतार ।
    संकल्प लेना बेटे मेरे….
    भारत माँ की आन-बान में
    दे देना तु भी बलिदान।
    अब तुम बन जाओ
    भारत माँ के वीर जवान।
    ऐसा ही था,
    मैं भारत माँ का मैं वीर जवान….                         

    अनिता पुरोहित
    मौल्यासी सीकर राजस्थान
    7736575207

  • बापू पर कविता

    बापू पर कविता

    बापू पर कविता

    बापू पर कविता

    भारत ने थी पहन ली, गुलामियत जंजीर।
    थी  अंग्रेज़ी  क्रूरता, मरे   वतन  के   वीर।।

    काले पानी  की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
    गोली  गाली  बरसते, भर  देते  थे  जेल।।

    याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
    कायर  डायर  क्रूर  ने, खेला  खूनी फाग।।

    मोहन, मोहन  दास बन, मानो  जन्मे  देश।
    पढ़लिख बने वकीलजी,गुजराती परिवेश।।

    देखे  मोहन दास  ने, साहस  ऊधम  वीर।
    भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।।

    बापू के  आदर्श थे, लाल बाल  अरु पाल।
    आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।।

    अफ्रीका  मे  वे  बने, आजादी  के  दूत।
    लौटे  अपने देश फिर, मात भारती पूत।।

    गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
    भारत का वो लाडला, गाँधी  साधू  वेश।।

    गोरे  काले  भेद  का, करते  सदा   विरोध।
    खादी चरखे कातकर, किए स्वदेशी शोध।।

    कहते सभी महातमा, आजादी अरमान।
    बापू  अपने  देश  का, लौटाएँ   सम्मान।।

    गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी पस्त।
    आजादी  दी  देश को, वे पन्द्रह  अगस्त।।

    बँटवारे  के  खेल में, भारत  पाकिस्तान।
    गांधीजी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।।

    आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
    राष्ट्रपिता  जनता कहे, बापू  हुए  महान।।

    तीस जनवरी को हुआ,उनका तन अवसान।
    सभा  प्रार्थना  में  तजे, गाँधी  जी  ने  प्रान।।

    दिवस शहीदी मानकर,रखते हम सब मौन।
    बापू  तेरे   देश  का, अब  रखवाला  कौन।।

    महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी  मान।
    मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।।

    बापू को करते नमन,अब तो सकल ज़हान।
    धन्य भाग्य  माँ भारती, गांधी  पूत  महान।।


    बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान