अब क्या बताऊँ उसकी इनायत कहाँ कहाँ।
दिखलाए सब खुदा की ये वुसअत कहाँ कहाँ।
जैसे खुदा ने लिख दी इबारत कहाँ कहाँ।
बहलाऊँ मैं इलाही तबीअत कहाँ कहाँ।
(ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ।)
बाहर खुदा की ढूँढते सूरत कहाँ कहाँ।
इंसान फिर भी करता मशक्कत कहाँ कहाँ।
फैला रहा वो देख तु दहशत कहाँ कहाँ।
जैसे भी फिर हो उसकी इबादत कहाँ कहाँ।
दश्त = जंगल
वुअसत = फैलाव, विस्तार, सामर्थ्य
सिम्त = तरफ, ओर
मोजिज़े = चमत्कार (बहुवचन)
सब्जियत = हरियाली
सैराब = भरा हुआ
मसर्रत = खुशी
तिनसुकिया