दर्द के रूप कविता

स्वयं के दर्द से रोना,अधिकतर शोक होता है।
परायी-पीर परआँसू,बहे तो श्लोक होता है।

निकलती आदि कवि की आह से प्रत्यक्ष भासित है,
हृदय करुणार्द्र हो,तब अश्रु पर आलोक होता है।

धरा की,धेनुओं की,साधुओं की प्रीति-पीड़ा से,
हैं धरते देह ईश्वर,पाप-मुञ्चित लोक होता है।

 
—– R.R.Sahu

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