ईश वंदन (हरिगीतिका-छंद)

हर श्वाँस में मन आस ये,
निभती रहे जग में प्रभो।
मन में प्रभा बन आप की,
विसवास से तन में विभो।
तन आपके चरणों पड़ा,
नित चाहता पद वंदनं।
मन की कथा कुछ भिन्न है,
मम कामना तव दर्शनं।

हर मौज में व्यवहार में,
प्रभु, आप ही रखवार हो।
हम से न सेवन बंदगी,
हरि, नाम खेवनहार हो।
हमको करो मत दूर हे,
हरि ,आप तारनहार हो।
दुख शोक रोग वियोग में,
हरि,आप पालनहार हो।

हम दीन हीन अनाथ हैं,
प्रभु पार तो हमको करो।
नव आस त्राण विधान दें,
वह मान भी सबको सरो।
जन दास *लाल* तिहार है,
अवमानना हरि क्यो़ं करो।
तन तार दे , मन मार दे,
तम कामना मन की हरो।

इस लोक में तम नाश हो,
हरि रोशनी तुम दीजिए।
तव लोक में मम वास हो,
मम आस पूरण कीजिए।
भव तार दे मन आस है,
हरि काज ये मन लीजिए।
हरि “लाल” के तन त्रास भी,
दुख पीर पय सम पीजिए।


बाबू लाल शर्मा “बौहरा” विज्ञ


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