गणेश जी की प्रतिमा

एक रात गणेश जी ने
आकर मुझे जगाया
और एक बाल्टी पानी डालकर
मुझे नींद से उठाया –
और कहा – बस दिन और रात
हर वक्त सोते रहते हो
क्योँ खाली बैठे बैठे अपनी
किस्मत पे रोते रहते हो
चलो आज मैं तुम्हें
नगर भ्रमण कराऊंगा
और लोगों का मेरे प्रति
भक्ति भाव दिखाऊंगा
जगह जगह मेरी मूर्ति
और प्रतिमा सजी है
कहीं डीजे तो कहीं
लाउडस्पीकर बजी है
कलयुग में आकर मैं भी
थोड़ा आधुनिक हो गया हूँ
अब धार्मिक गानों के बदले
फ़िल्मी गाने सुनने लगा हूँ
प्रसाद के नाम पर बूँदी और
लड्डू का भोग लगाया जाता है
और मेरे नाम का प्रसाद सारा
पुजारी हजम कर जाता है
मुझ मिटटी की मूर्ति के नाम
लाखों का चंदा माँगा जाता है
शायद मेरा पेट इतना बड़ा है कि
सब कुछ उसमें समा जाता है
भाँग और शराब के नशे में लोग
मेरा विसर्जन कर आते हैं
रास्ते भर नाच गाकर नदी में
अपना पूरा पाप धो आते हैं
मैंने कहा – बस करो भगवन
वर्ना मैं अभी रो पडूंगा
इतना क्या कम हैं और
ज्यादा सहन न कर सकूंगा
नहीं देखनी है अब मुझे
आपकी झांकी न ही प्रदर्शनी
मेरे सामने नहीं चलेगी
अब आपकी और मनमानी
आप मुझसे पूछ रहे थे कि मैं
दिन रात क्यों सोता रहता हूँ
तो आपको देता हूँ बताये
किसी दिन आपकी मूर्ति का
बैंड ही न बज जाये …
इसलिए रोता रहता हूँ !
एस के नीरज ( विद्रोही )
पिथौरा ( 36 – गढ़ )
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