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ग़ज़ल -जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं

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जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं

_ज़िंदगी से कोई अब गिला ही नहीं,_
_जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं_
_इक दफा बेवफा ने जो लूटा चमन,_
_प्यार का फूल फिर से खिला ही नहीं_
_चल सके जो कई मील सबके लिये,_
_अब ज़माने में वो काफ़िला ही नहीं_
_लोग अपना कहें और धोखा न दे,_
_दोस्ती का वो अब सिलसिला ही नहीं_
_फिर से मिलने का वादा किया था जहाँ,_
_आज तक मैं वहाँ से हिला ही नहीं_
© *चन्द्रभान पटेल*
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