गिरिराज हिमालय

    
भारत का हिमगिरि प्रहरी है
रजतमयी  अनमोल  ताज।
युग- युग तक  कृतज्ञ  रहेगा,
भरतखण्ड का  महा राज।
अहो भाग्य है  इस भारत के,
जहां हिमालय अडिग खडा।
शीश  उठाये गिरवर निर्भय,
स्वाभिमामान से धीर लडा़।
गंगा  उद् गम गिरिवर से है,
मूल दिव्य  औषधियों का।
इसके अंक में पुरी विशाला,
आराध्य देव है मुनियों का।
अभेघ्य दुर्ग  है महा हिमाल़य,
सदियों  से  रक्षा     करता।
कोई दुश्मन  बढ़े  न  आगे,
बार  – बार  है यह  कहता।
हर मानव  को इस पर गौरव,
निःसन्देह भारत की शान।
अणुताकत भी भेद न पाए
जग ऐसा गिरिराज  महान।
कहो कहें क्या इस गिरिवर को,
तसवीर कहें  या  हीर    कहें।
रत्नाकर   अनुपम  भारत  का,
रक्षक   सह   तकदीर   कहे।
प्रफुल्लित मन से करे अर्चना
मिल जुल कर इस हिमधर की।
विराट  रूप  देवाधिदेव  का,
भारत  रक्षक  हिम गिरि  की।


✍कालिका   प्रसाद  सेमवाल
       मानस सदन अपर बाजार
      रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड)
      मोबाइल नंबर
        9410782566
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद


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