Category: हिंदी कविता

  • सायली छंद में रचना

    सायली छंद में रचना

    चेहरा
    देख सकूँ
    नसीब में कहाँ
    बिटिया दूर
    बसेरा।

    अहसास
    बस तुम्हारा
    पल-पल याद
    सताती रही
    आज।

    याद
    आते रहे
    वो पल हरदम
    जो सुनहरे
    बीते।

    तेरी
    नटखट शैतानियाँ
    महकता रहता था।
    घर आँगन
    मेरा।

    अर्चना पाठक (निरंतर)
    अम्बिकापुर

  • माता शारदे वंदन

    माता शारदे वंदन करूँ -भुवन बिष्ट


    माता शारदे वंदन करूँ।
                         मिले अब वरदान।।
    वाणी में विराजती माता।
                           सदा देना ज्ञान।।
    आलोकित हो हर पथ मेरा।
                           लेखनी पहचान।।
    होवे विनती यह बार बार।
                          माता हो महान।।
    सदा सदा सच पथ पर होता।
                         मातु का गुणगान।।
    वीणावादनी माता सदा।
                          मिट जाये अज्ञान।।
                         …भुवन बिष्ट
                 रानीखेत, उत्तराखंड
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  • जब होगा महक मिलन

    जब होगा महक मिलन

    मिला किताब में सूखा गलाब,
    देख फिर  ताजगी सी आई।

    याद आ गया वो सारा मंजर
    फिर खुद से खुद ही शरमाई।

    वो हसीन पल थे खुशियों भरा
    साज बजा ज्यो रागिनी आई।

    धड़कने दिल  की हुई बेकाबू
    गात ने ली फिर से अंगड़ाई।

    अब जब होगा “महक” मिलन
    सोंच अंग में सिहरन भर आई।

      मधु गुप्ता “महक”

  • आना कभी गाँव में – बलवंत सिंह हाड़ा

    आना कभी गाँव में – बलवंत सिंह हाड़ा

    ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्रायः गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्रायः बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं। परम्परागत रूप से गाँवों में शहरों की अपेक्षा कम सुविधाएँ होती हैं। विकिपीडिया

    आना कभी गाँव में – बलवंत सिंह हाड़ा

    आना कभी गाँव में - बलवंत सिंह हाड़ा
    गाँव पर हिंदी कविता

    धरती के आंगन मे
    अंबर की  छाँव में
    आना कभी गाँव में।।


    बरगद की डाल पे
    गाँव की चौपाल पे
    खुशी के आँगन में
    झुला झुलने को
    आना कभी गाँव में।।


    संध्या के गीत सुनने
    लोक कलाए देखने
    दादी की कहानी सुनने
    आना कभी गाँव में।।


    खेतों की मेड़ पे
    सरसों के खेत पे
    हरियाली देखने
    आना कभी गाँव में।।


    सावन के झुले कभी
    कोयल की बोली मीठी
    बरखा रानी की धारा
    भोजन की थाल पे
    आना कभी गाँव में।।


    होली के रंग खेलने
    दीवाली के दीप जलाने
    राखी पे धागा बाँधने
    ईद की सेवईयाँ चखने
    शादी की धूम देखने
    आना कभी गाँव में।।


    बेहरूपिया का रुप देखने
    बच्चों की धमाल देखने
    चाय की मनावर देखने
    बलवंत को मिलने
    आना कभी गाँव में।।

    बलवंतसिंह हाड़ा

  • गरीबी पर कविता

    नज़र अंदाज़ करते हैं गरीबी को

    गरीबी पर कविता
    कविता संग्रह

    नज़र अंदाज़ करते हैं गरीबी को सभी अब तो।
    भुलाकर के दया ममता सधा स्वारथ रहे अब तो।

    अहं में फूल कर चलता कभी नीचे नहीं देखा,
    मिले जब सीख दुनियाँ में लगे ठोकर कभी अब तो।

    बदल देता नज़ारा है सुई जब वक्त की घूमे,
    भले कितना करें अफ़सोस समय लौटे नहीं अब तो।

    गुज़ारा कर गरीबी में समझता पीर दुखियों की।
    लगा कर के गले उनको दिखाता विकलता अब तो। 

    सदा जीवन नहीं रहता लगो कुछ नेक कामों में,
    भरोसा कब कहाँ रहता मिटे पल में निशां अब तो।

    पुष्पाशर्मा”कुसुम”