होली के दोहे
पिचकारी चलती कहीं, बाजे कहीं मृदंग।।
मानो खेलन रंग को, आया है ऋतुराज।।
ऊँच नीच सब भूल कर, करें परस्पर प्यार।।
बाल वृद्ध सब झूम के, रस की छोड़े धार।।
फागुन में घनश्याम के, रहूँ सदा मैं पास।।
वृन्दावन के नाथ पर, तन मन जाऊँ वार।।
भेद भाव कुछ नहिं रहे, मधुर फाग का रंग।।
मधुर चंग की थाप है, मीठी बहे बयार।।
बजे चंग यदि संग में, खुल जाएँ तब भाग।।
नशा यहाँ ऐसा चढ़े, कोउ न जाये छोड़।।
तिनसुकिया
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