holi-kavita-in-hindi
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होली के रंग – बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

(1)

होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।

हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।

रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।

ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
‘बासु’ कैसे एकता का, रस बरसात है।।

(2)

फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।

बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।

बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।

पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।

(3)

बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।

उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।

मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।

‘बासु’ कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया कविता बहार से जुड़ने के लिये ध
न्यवाद

आया रंगो का त्यौहार – भुवन बिष्ट

  होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आया रंगों का त्यौहार।।
            रंग भरी पिचकारी से अब।
            धोयें राग द्वेष का मैल।।
            ऊँच नीच की हो न भावना।
            उड़े अबीर लाल गुलाल।।
होली के हुड़दंग में भी।
बाँटें मानवता का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
आया रंगों का त्यौहार।।
             होली के रंग अबीर से।
             आओ बाँटें मन का प्यार।।
             गुजिया मिठाई की मिठास से।
             फैले अब खुशियों की बहार ।।
आओ रंगों की पिचकारी से।
धोयें जग का अत्याचार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
           खुशहाली आये जग में।
           है आये रंगों का त्यौहार।।
           बसंत बहार के रंगों से।
           ओढ़े धरती है पितांबरी।।
ईष्या राग द्वेष को त्यागें।
सिचें मानवता की क्यारी।।
रूठे श्याम को भी मनायें।
रंगों से खुशियाँ फैलायें।।
            रंगों और पानी से सिखें।
            झलक एकता की दिखलायें।।
            मानवता का हो संचार।
             बहे सुख समृद्धि की धार।।
होली के रंग अबीर से।
आओ बाँटें मन का प्यार।।
खुशहाली आये जग में।
है आये रंगों का त्यौहार।।

भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड)

होली के रँग हजार – सुशीला जोशी

होली के रँग हजार
होली किस रंग खेलूँ मैं ।।

लाल रंग की मेरी अंगिया
मोय पुलक पुलक पुलकावे
ढाक पलाश  फूल फूल कर
मो को अति उकसावे
     लाई मस्ती भरी खुमार
     होली किस रंग खेलूँ मैं ।। पीत रंग चुनरिया मेरी
फहर खेतों में फहरावे
गेंहु सरसों के खेतों में
लहर लहर बन लहरावे
        सँग लाये बसन्ती बयार
        होली किस रंग खेलूँ मैं । नील रंग गगन सा विस्तृत
निरन्तर हो कर  विस्तारे
चैत वासन्ती विषकन्या सी
अंग  छू छू कर मस्तावे
      किलके सूरज चन्द हजार
      होली किस रंग खेलूँ मैं ।। श्याम रंग नैन का काजल
घना हो हो कर गहरावे
सुरमई बदली ला ला करके
गर्जना   करके  धमकावे
         मेरी फीकी पड़ी गुहार
         होली किस रंग खेलूँ मैं ।। धानी रंग धरा अंगडाइ
इठला इठला सरसावे
बाग बगीचे कोयल कुके
मनवा में अगन लगावे
       बौराई सतरँगी बहार ।
      होली किस रंग खेलूँ मैं ।। न हिन्दू न मुसलमा कोई
नही कोई सिख ईसाई
होली के रंगों में रंग कर
सब दिखते है भाई भाई
       अब न पनपे कोई दरार
      होली किस रंग खेलूँ मैं ।।

सुशीला जोशी

मिल-जुल कर सब खेले होली – पंकज

फाल्गुन का मौसम है आया,
                फ़ाग गीत सबको है भाया।
अम्बर पर रंगों का साया ,
                 सबके मन में प्रेम समाया।
तुम भी आ जाओ हमजोली,
           मिल-जुल कर सब खेले होली।
झांझ,नगाड़े,ताशे,ढोल,
                      कानो में रस देते घोल।
बात सुनो ये बड़ी अनमोल,
                द्वेष छोड़ और प्रेम से बोल।
सबके संग हो हंसी ठिठोली,
           मिल-जुल कर सब खेले होली।
टेशू, पलाश के फूल खिलेंगे,
                        होली वाले रंग बनेंगे।
मुख पर मुखौटे खूब सजेंगे,
                पी के भंग सब खूब नचेंगे ।
पिचकारी से भिगो दे चोली,
            मिल-जुल कर सब खेले होली।
किस्म-किस्म पकवान बनाओ,
               और सभी मित्रो को बुलाओ।
बैरी को भी गले लगाओ,
                   अपने मन से बैर मिटाओ।
सब जन बोले प्रीत की बोली,       
             मिल-जुल कर सब खेले होली।
   पंकज

होली पर कविता – राज मसखरे

जला दी हमने
राग-द्वेष,लालच
लो अब की बार..
पून:अंकुर न ले
न हो कोई बहाना
ओ मेरे सरकार..
हो न कोई नफरत
अब हमारे बीच
न कोई बने दिवार..
रंगिनियाँ बिखरता रहे
लब में हो मुस्कान
ओ मेरे मीत,मेरे यार.
चढ़ता जाये मस्ती
उतर न पाये होली मे
ये रंगीन खुमार …
दिल से दिल मिले
‘मसखरे’सुन लो जरा
रहे खुशियाँ बेशुमार .

राज मसखरे

होली है बेरंग-डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’

सभी रंग मिलावट के,
होली है बेरंग!
नहीं नेह की पिचकारी
नहींभीगता  अंग!
भय,शोक,चिंता तनाव,
प्रीत,प्रेम नहीं सद्भाव,
रिश्तों की डोरी टूटी
जैसे कटी पतंग!
होली है…………
टेसू और पलाश सिसकते,
खुशबू को अब फूल तरसते,
पेड़ों पर डाली के पत्ते
गुम है पतझड़ संग
होली है बेरंग…
कागा करता काँव-काँव,
आम्रकुंज की उजड़ी छाँव,
फिर कोयल की हूक से,
क्यों होते हम दंग!
होली है बेरंग……
पकवानों के थाल नहीं,
ढोल,मांदर, झाल नहीं,
चरस,गाँजे और शराब में,
फीकी पड़ गयी भंग!
होली है बेरंग…
डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’

होली के रंग – केवरा यदु “मीरा “

अबके  बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।
साँवरे  रंग मोहे  भाये   भाये  न कोई  रंग ।।


अब  बरस– आ गई ग्वालन  की  छोरी।
अनगिन मटकी में रंग  घोरी।।


रंग में केसर भी घोरे  अब कर देंगे बदरंग।।
अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।

बंशी बजा कर श्याम बुलाते ।
छुप कर फिर वो रंग  लगाते।।


छुप कर मैं भी रंग डालूंगी रह जाये कान्हा दंग ।
अब के बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

फगुवा  गीत  गाते फगुवारे।
छम छम नाचत नंद दुलारे।।


बजे नगाड़े ढ़ोल देखो और बजे मृदंग ।
अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

रंग में उनके कबसे रंगी हूँ।
साँवर प्रीत में मैं  पगी हूँ।।


जन्म जन्म तक छूटे न बस चढ़े श्याम का रंग ।
अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

केवरा यदु “मीरा “
राजिम

रंगो का त्योहार होली – रिखब चन्द राँका

होली पर्व रंगों का त्योहार,
पिचकारी पानी की फुहार।
अबीर गुलाल गली बाजार,
मस्तानो की टोली घर द्वार।


हिरण्यकश्यप का अभिमान,
होलिका अग्नि दहन कुर्बान।
प्रहलाद की प्रभु भक्ति महान,
श्रद्धा व विश्वास का सम्मान।


अग्नि देव का आदर सत्कार,
वायु देव का असीम उपकार।
लाल चुनरिया भी  चमकदार,
प्रह्लाद को भक्ति का पुरस्कार।


मस्तानों की टोली रंगो के साथ,
वर्धमान के पिचकारी रंग हाथ ।
लाल,हरा, नीला,पीला रंग माथ,
राधा रंगी प्रेम रंग में कृष्ण नाथ।


स्वादिष्ट व्यंजन गुंजियाँ तैयार,
पकौड़ी खाजा,पापड़ी भरमार।
गेहूँ चने की बालियाें की बहार
अाग पके धान प्रसाद,स्वीकार।


जग में प्रेम सुधा रस बरसाना,
दीन दु:खियों को गले लगाना।
सद्भाव के प्रेम दीपक जलाना ,
होली पर्व ‘रिखब’ संग तराना।

रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’ जयपुर राजस्थान

ब्रज में उड़े ला गुलाल – बाँके बिहारी

ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली
खेले होली हो खेले होली
नयना लड़ावे नंदलाल,ब्रज पिया खेले होली
ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


सखी सब नाचे ढोल बजावे
एक दूजे पर रंग बरसावे
साथ रंग लगाये गोपाल ब्रज पिया खेले होली हो
ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


धुरखेल करत हैं वृषभानु दुलारी
जोरा जोरी करे मोरे रास बिहारी
पकड़े बईया मोहन रंगे राधे की गाल
ब्रज पिया खेले होली
ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


पिसी- पिसी भाँग श्यामा प्यारी को पिलावे
मारी-मारी मटकी रसिया सखी को बुलावे
पिचकारी से मचाए धमाल ब्रज पिया खेले होली
ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


कभी यमुना तट कभी बगीया में
होली में रंग डाले रसिया मोरे अंगिया में
पंचमेवा खिलावे नंदलाल ब्रज पिया खेले होली
ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


मोहे मन भावे ब्रज की होली
बाल-सखा सब सखीयन की टोली
देखो प्यारे सबको करते निहाल
ब्रज पिया खेले होली
ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।

बाँके बिहारी बरबीगहीया

अंग – अंग में रंग चढ़ाया – सन्तोष कुमार प्रजापति

विधा – गीत (सरसी छन्द)      

  प्यारा यह मधुमास सुहावन ,
       काम तनय सब जान I
अंग – अंग  में  रंग  चढ़ाया ,
        मदन  तीर  ले  तान Il तुम्हें  बताऊँ  कैसे  सजना ,
         मन  की अपने पीर I
होली का मनभावन उत्सव , 

        तुम बिन धरे न धीर ll
आ जाओ फिर होली खेलें ,
         भाँग  पिलाओ छान I
अंग – अंग में …   ….   … मुझे   पड़ोसी   ऐसे   ताकें ,
         जैसे    सोना   चोर l
मला गुलाल बहुत गालों में ,
          बदन  रंग  में  बोर Il
तन  मेरा  ये  दहक  रहा  है ,
          मन भी बहका मान l
अंग – अंग में …  ….   ….. मुझे चैन मत  पड़ता साजन ,
           होली  करे   कमाल I
बुरा न मानो कह – कह सबने ,
           चोली  करदी  लाल ll
आँखें    मेरी     हुईं    शराबी ,
            बदल गई  मम तान l
अंग – अंग में …  ….   …. हरा , लाल , नीला औ  पीला ,
            धानी   उड़े  गुलाल I
तन  मेरे   मकरन्द   टपकता ,
             भ्रमर देख तो हाल Il
यौवन  की   मदहोशी   छायी ,
              चढ़ा  प्रेम  परवान l
अंग – अंग में …    ….    …. तुम  मुझको  मैं  तुम्हें  रंग  दूँ ,
              फिर  गायेंगे  फाग l
राधा     तेरी     राह     निहारे ,
              माधव आओ भाग Il
तुम बिन  मटकी  मेरी अटकी ,
              करो  फोड़  सम्मान I
अंग – अंग में …    ….    … स्वरचित

सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”

खुशियों का त्योहार होली – मनी भाई

धूल उड़ रहे आसमान में
उड़ रहा अबीर गुलाल है
भेदभाव कटुता को मिटाकर
फैलाता चहुँओर प्यार है
ऐसा पावन पर्व है होली
खुशियों का त्योहार है
ऐसा पावन पर्व हमारा
रंगो का त्योहार है ।।   

धुरखेल हो गया सुबह में देखो
शाम को उड़ेगे रंग
सज- धज कर निकलेगी सजनीया
डालेंगी पिया पे रंग
पिचकारी में रंग भरे हैं
और रंगो का फूहार है
ऐसा पावन पर्व है होली
खुशियों का त्योहार है ।।

क्या बच्चे क्या बूढ़े को भी देखो
मचा रहे हुड़दंग
उम्र की सीमा तोड़ प्यार से
झुमे सभी के संग
ढोलक, झांझ ,मंजीरो की धुन का
देखो अद्भुत झंकार है
ऐसा पावन पर्व है होली
खुशियों का त्योहार है ।।

पेड़,पौधे पशु -पक्षी पर छाया
होली का खुमार है
बेसनबरी,फुलौरी,भभरा का
विशेष आहार है
कांजी,भाँग ,ठंढाई पीने को
भीड़ जुटा भरमार है
ऐसा पावन पर्व है होली
खुशियों का त्योहार है ।।

अंधकार भगा प्रकाश को लाता
होली का त्योहार है
कच्चे अन्न को पका-पकाकर
बनता होला भरमार है
ब्रज रसिया और अवध पिया भी
लूटाते सभी पर प्यार हैं
ऐसा पावन पर्व है होली
खुशियों का त्योहार है
ऐसा पावन पर्व हमारा
रंगो का त्योहार है

मनी भाई

मधुमासी रंग – सुशीला जोशी

नव रंगों से भर गए ,वन उपवन अरु बाग
केसरिया टेसू हुआ , ढाक लगावे आग ।।

मधुमासी मद से भरे सारे तरु कचनार
मस्ती हास् विलास ले ,आयी मधुप बाहर ।।

ऋतुराज की सुगन्धसे  ,मदमाया परिवेश
शुक पिक  कोकिल कुजते , अपने बैन विशेष ।।

नटखट वासन्ती चले ,छेड़ करे बरजोर
देख न पाई आज तक , अन्तस् मन का चोर ।।

निर्मल नभ से झांकता , करता   विधु विनोद
ढोल ढप और गीत से , करता मोद प्रमोद ।।

ललछौंहीं कोपल हँसी , हसि लताएँ उदास
हृदय झरोखे झांकती ,नेह कोपली  आस ।।

तरुवर बौराये हुए , देख  फागुनी रंग
पीले लाल गुलाल का ,मचा हुआ हुड़दंग ।।

अम्बर सिंदूरी हुआ ,हुआ समंदर लाल
होली मस्ती रँग भरी , इठला देवे ताल ।।

दिशा बावरी हो गयी ,लख मधुमासी रूप।
पहले जैसी न रही ,वी कच्ची से धूप ।।

फूलों कीफूटी हंसी , बजे सुनहले पात
सम्मोहन सा बुन रही , अब मधुमासी रात ।।

ठिठुरायी सर्दी गयी , अब आया मधुमास ,
,खिल खिल वासन्ती भरे , कण कण बास सुबास ।।

फूल फूल को चूमते , भवँर करे गुंजार
रंग बिरंगी तितलियाँ , नाचे बारम्बार ।।

सुशीला जोशी

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