दोहा कैसे लिखें
आओ दोहा सीखलें,शारद माँ चितलाय।
सीख छंद दोहा रचें,श्रेष्ठ सृजन हो जाय।।
ग्यारह तेरह मात्रिका, दो चरणों में आय।
चार चरण का छंद है,दोहा सुघड़ कहाय।।
प्रथम तीसरे चरण में,तेरह मात्रा आय।
दूजे चौथे में गिनो, ये ग्यारह रह जाय।।
चौबिस मात्रिक छंद है,कुलअड़तालिस होय।
सुन्दर दोहे जो लिखे, सत साहित्यिक जोय।।
मात शारदा सुमिर के, सुमिरो देव गणेश।
दोहा रचना सीखिए,कविजन सुमिर’महेश।।
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दोहा छंदो मे लिखो ,कविजन अपनी बात।
तेरह ग्यारह मात्रिका, अड़तालिस हो जात।।
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प्रथम तीसरे चरण में, तेरह मात्रा पूर।
गुरु लघु गुरु चरणांत हो,भाव भरे भरपूर।।
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विषम चरण के अंत में,लघु लघु लघु भी होय।
लय में गाकर देख लो, लय बाधा नहि होय।।
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द्वितीय चौथे चरण में, ग्यारह मात्रा होय।
सम चरणों के अंत में,गुरु लघु मात्रा जोय।।
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पचकल से शुरु मत करो,कभी चरण कविराइ
भाषा भावों में भरो, देख लीजिए गाइ।।
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चरणों के प्रारंभ में, जगण दोष नहि आय।
नाम देव के होय तो, जगण दोष बचि पाय।।
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सम से ही चौकल सजे, त्रिकल त्रिकल से मान।
भाव भरे मन में रचे, दोहे सुन्दर शान।।
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सम चरणों के अंत में,जो पचकल आजाय।
दोहा भी सुन्दर लगे, सृजन सुघड़ हो जाय।।
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दोहा छंदो में लिखा ,दोहा छंद विधान।
शर्मा बाबू लाल ने, सीखें रहित गुमान।।
दोहा की परिभाषा:-
दोहा चार चरणों का मात्रिक छंद होता है। प्रथम व तृतीय चरण में 13,13 मात्राएँ होती है। द्वितीय व चतुर्थ चरण में 11,11मात्राएँ होती है।
1.
प्रथम व तीसरे चरणांत में 212 (जैसे-मान है ) या 111{जैसे — कमल)
2..
दूसरे व चौथे चरणांत में 2 1(जैसे आव,मान,आमान अवसान)
3..
चरणों की शुरूआत कभी भी 5 मात्रा वाले शब्द (पचकल) से न हो।
4.
तर्ज में गुनगुना कर देखें लय भंग हो तो बदलाव करें। मात्रा स्वतः ही सही हो जाएगी।
5..
चरणों की शुरुआत जगण से (121) न हो। महेश,सुरेश,दिनेश ,गणेश आदि देव नाम मान्य है बाकी नही।।
जैसे…..
ऋचा बड़ा शुभ नाम है, वेदों जैसी भाष।
1 2 1 2 1 1 2 1 2, 2 2 2 2 2 1
13. , 11
हिन्दी बिन्दी सम रखे,हरियाणा शुभ वास।।
2 2 2 2 1 1 1 2,1 1 2 2 1 1 2 1
13 , 11
रचियता:-
*बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”*
*सिकंदरा,दौसा,राजस्थान*