इक शिखण्डी चाहिए – बाबू लाल शर्मा

कविता संग्रह
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पार्थ जैसा हो कठिन,
व्रत अखण्डी चाहिए।
*आज जीने के लिए,*
*इक शिखण्डी चाहिए।।*

देश अपना हो विजित,
धारणा ऐसी रखें।
शत्रु नानी याद कर,
स्वाद फिर ऐसा चखे।

सैन्य हो अक्षुण्य बस,
व्यूह् त्रिखण्डी चाहिए।।
आज जीने के…….

घर के भेदी को अब,
निश्चित सबक सिखाना।
आतंकी अपराधी,
को आँखे दिखलाना।

सुता बने लक्ष्मी सम,
भाव चण्डी चाहिए।।
आज जीने के…….।

सैन्य सीमा मीत अब,
हो सुरक्षित शान भी।
अकलंकित न्याय रखें,
सत्ता व ईमान भी।

सिर कटा ध्वज को रखे,
तन घमण्डी चाहिए।।
आज जीने………..।

✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

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