जाने तुम कहां गए

जाने तुम कहां गए – मेरी रचना

अरमानों से सींच बगिया,
जाने तुम कहां गए।
अंगुली पकड़ चलना सीखाकर,
जाने तुम कहां गए।।

सच्चाई के पथ हमको चलाकर,
जाने तुम कहां गए।
हमारे दिलों में घर बनाकर,
जाने तुम कहां गए।।

तुम क्या जानो क्या क्या बीती,
तुम्हारे बनाए उसूलों पर।।

वृद्धाश्रम में मां को छोड़ा,
बेमेल विवाह मेरा कराया।
छोटे की पढ़ाई छुड़ाकर,
फैक्ट्री का मजदूर बनाया।।

पुश्तेनी अपना मकान बेच,
अपना बंगला बना लिया।
किस्मत हमारी फूटी निकली,
आपको काल ने ग्रास बना लिया।।

बंधी झाड़ू गई बिखर बिखर,
ना जाने तुम कहां गये।
यूं मझधार में छोड़ बाबूजी,
ना जाने तुम कहां गये।।

राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
9928305806

Leave A Reply

Your email address will not be published.