कबूतर पर बाल कविता
कबूतर पर बाल कविता

गुटरूँ-गूँ
उड़ा कबूतर फर-फर-फर,
बैठा जाकर उस छत पर।
बोल रहा है गुटरूँ-गूँ,
दाने खाता चुन चुन कर
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कबूतर / सोहनलाल द्विवेदी
कबूतर
भोले-भाले बहुत कबूतर
मैंने पाले बहुत कबूतर
ढंग ढंग के बहुत कबूतर
रंग रंग के बहुत कबूतर
कुछ उजले कुछ लाल कबूतर
चलते छम छम चाल कबूतर
कुछ नीले बैंजनी कबूतर
पहने हैं पैंजनी कबूतर
करते मुझको प्यार कबूतर
करते बड़ा दुलार कबूतर
आ उंगली पर झूम कबूतर
लेते हैं मुंह चूम कबूतर
रखते रेशम बाल कबूतर
चलते रुनझुन चाल कबूतर
गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर
देते मिश्री घोल कबूतर।
सोहनलाल द्विवेदी