कोविड 19 हिंदी कविता

अप्रैल 2021 से जिस प्रकार से घटनाक्रम ने तीव्रता पकड़ी, मनुष्य पर आया संकट गहरा हो गया। उसी सन्दर्भ में यह रचना एक छोटा सा प्रयास है। आशा करता हूँ ये सभी को अच्छी लगेगी।

कोविड 19 हिंदी कविता

हे ईश्वर तेरे बच्चों पर, कैसा संकट छाया है?
हर ओर बेबसी बदहाली का कैसा काला साया है?
है त्राहि त्राहि ये धरा कर रही क्यों ऐ मालिक?
क्यों आसमान ने सूक्ष्म गरल ये बरसाया है?

जनमानस के मस्तिष्क पटल पर खौफ बड़ा है।
हर गली सड़क पर यम का सेवक सजग खड़ा है।
छोटी सी चूक अचूक व्याधि जो ले आती है,
लेती मनुष्य का इम्तेहान वह बहुत कड़ा है।

पहचाने से चेहरे जो हर दिन मिल जाते थे।
वो घर की चारदीवारी में पाए जाते हैं।
जब कोई घर की चौखट पर दस्तक देता है,
दरवाज़ों के पीछे तब सारे हिल जाते हैं।

अपनों का ध्यान जिसे रखना है इस बेला में,
अपनों से दूर उसे खुद को करना पड़ता है।
जब साथ चाहिए कठिन घड़ी में प्रिय:जनों का,
तब वो संघर्ष अकेले ही करना पड़ता है।

जो स्वास्थ्यलाभ घर में ले ले वो भाग्यवान है।
बाहर का मंज़र मायूसी का इक मचान है।
जिसपर जर्ज़र सी सीढ़ी ज्यों त्यों टिकी हुई है,
चढ़ने वाले को रहना हर पल सावधान है।

ना बिस्तर है ना प्राणवायु ना वेंटीलेटर,
हर ओर बदहवासी और हाहाकार मचा है।
पैसों से प्राण बचाना लगभग नामुमकिन है,
मानव में मानवता का गुण भी कहाँ बचा है?

धिक्कार उन्हें जो ढूंढ रहे विपदा में अवसर।
पैसों में जो इंसान की जाँ को तौल रहे हैं।
क्या वो मनुष्य कहलाने के लायक भी हैं जो,
गिद्धों से भी बदतर ढंग से यूं नोच रहे हैं।

ना सरकारें हैं ना जन प्रतिनिधि ना मंत्री जी हैं,
इक सिस्टम है जो खड़ा हुआ लाचार लचर है।
सुनते थे भारत विश्व का मार्ग प्रशस्त करेगा,
उस भारत की सम्पूर्ण विश्व में झुकी नज़र है।

कुछ करना है हमको तो आओ इतना कर लें,
घर में रह लें कुछ दिन नियमों का पालन कर लें।
जितना हो पाए इक दूजे की मदद करें सब,
दिल में जितनी भी दूरी हो आओ सब भर लें।

सब साथ लड़ें तो जीत हमारी निश्चित होगी,
दृढ संकल्पों के आगे ये भी नहीं टिकेगा।
जब अच्छा वक़्त नहीं रह सकता सदा की खातिर,
यह बुरा वक़्त भी बहुत जल्द धरती से हटेगा।

~ सुमित श्रीवास्तव

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