मां को पैगाम

मां को पैगाम

वह नन्हा
अबोध नासमझ
को क्या पता!
मां न रही
अब दुनिया में,
पर छुपाया गया
उससे
बिना कोई
किए खता!
वह आज भी
भेजता है
“पैगाम”
उस मां को
जो अब न रही,

कभी पतंगों में
चिट्ठियां बांध कर,
तो कभी
मन के संचार से
घंटो घंटों
ऊपर आसमान में
देख देखकर,
इसलिए कि
उसे बताया गया है
कि मां ऊपर गयी है।
वह उदास,
चिंतित
राह देखता
सोंचता!
कब पहुंचेगा?
मां तक
मेरा “पैगाम”
मां आयेगी
मुझे सुलाएगी
गोदी में
बहलाएगी
लोरी गा कर,
झड़ेंगे
ममता के फूल
मुझ पर,
पहुंच जाता था
उस शव के पास
इसलिए कि
उसे पता है
कि वह ऊपर
जा रहा है,
ले जाएगा
उसके मां के लिए
उसका वह
“पैगाम “।

रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

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