मधुमासी रंग – सुशीला जोशी
मधुमासी रंग – सुशीला जोशी

नव रंगों से भर गए ,वन उपवन अरु बाग
केसरिया टेसू हुआ , ढाक लगावे आग ।।
मधुमासी मद से भरे सारे तरु कचनार
मस्ती हास् विलास ले ,आयी मधुप बाहर ।।
ऋतुराज की सुगन्धसे ,मदमाया परिवेश
शुक पिक कोकिल कुजते , अपने बैन विशेष ।।
नटखट वासन्ती चले ,छेड़ करे बरजोर
देख न पाई आज तक , अन्तस् मन का चोर ।।
निर्मल नभ से झांकता , करता विधु विनोद
ढोल ढप और गीत से , करता मोद प्रमोद ।।
ललछौंहीं कोपल हँसी , हसि लताएँ उदास
हृदय झरोखे झांकती ,नेह कोपली आस ।।
तरुवर बौराये हुए , देख फागुनी रंग
पीले लाल गुलाल का ,मचा हुआ हुड़दंग ।।
अम्बर सिंदूरी हुआ ,हुआ समंदर लाल
होली मस्ती रँग भरी , इठला देवे ताल ।।
दिशा बावरी हो गयी ,लख मधुमासी रूप।
पहले जैसी न रही ,वी कच्ची से धूप ।।
फूलों कीफूटी हंसी , बजे सुनहले पात
सम्मोहन सा बुन रही , अब मधुमासी रात ।।
ठिठुरायी सर्दी गयी , अब आया मधुमास ,
,खिल खिल वासन्ती भरे , कण कण बास सुबास ।।
फूल फूल को चूमते , भवँर करे गुंजार
रंग बिरंगी तितलियाँ , नाचे बारम्बार ।।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर