दहेज पर कविता -काजल साह
दहेज प्रथा पर आधारित कविता
दहेज पर कविता
दे देते हैं
वो अपनी औलाद तुझे
फिर भी ना आई शर्म
आंखो में बेशर्मी की हाय लेकर
दिल में पैसे की आस लेकर
फिर मांग रहा दहेज।
आसान है क्या?
अपने कलेजे के टुकड़े को
कन्यादान कर देना।
छाती से लिपट कर सोती
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मां की गोद में
अब वो रो रही ।
मां की पल्लू खोज रही ।
दिया दर्द तूने ।
अपने दकनायनुसी सोच से
मारता रहा , गिराता रहा
झुकाता रहा और
दहेज मांगता रहा।
रो रही है मां
हो रहा है दुख उस बाप को
जिसने पाई – पाई करके दे दिया
अपना धन सारा।
नहीं शर्म है,अब तुझमें
अब बढ़ गई है लालच तेरी।
तू तौल रहा है
पैसे की तराजू में
अरे ! तुझे उन्होंने अपना
अपना सब दिया है।।
फिर भी मांग रहा दहेज।
काजल साह