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महिनत के पुजारी-किसान

महिनत के पुजारी-किसान

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महिनत के पुजारी-किसान

रचनाकार-महदीप जंघेल
विधा- छत्तीसगढ़ी कविता
(किसान दिवस विशेष)

जय हो किसान भइया,
जय होवय तोर।
भुइयाँ महतारी के सेवा मा,
पछीना तैं ओगारत हस।
नवा बिहनिया के अगवानी बर,
महिनत के दिया ल बारत हस।।

दुनिया में सुख बगराये बर,
तैं अब्बड़ दुःख पावत हस।
अन्न पानी उपजाये बर,
पथरा ले तेल निकालत हस।।
जय हो किसान भइया,
जय होवय तोर।

उजरा रंग के काया तोर,
कोइला कस करिया जाथे।
जब नांगर गड़थे भुइयाँ मा,
कोरा ओकर हरिया जाथे।।

महिनत के पछीना तोर,
जब भुइयाँ मा चुचवाथे।
तब, धरती महतारी के कोरा मा,
धान पान लहलहाथे।।
जय हो किसान भइया,
जय होवय तोर।

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चमके बिजली ,बरसे पानी,
राहय अब्बड़ घाम पियास।
कतको मुसकुल,दुःख बेरा मा,
सब करथे तोरेच आस।।

कभू नइ सुस्ताइस सुरुज देवता हर,
नवा बिहान लाथे।
ओकरे नाँव अमर होथे,जेन,
नित महिनत के गीत गाथे।।
जय हो किसान भइया,
जय होवय तोर।

अपन फिकर ल ,तिरियाके
तैं भुइयाँ के सेवा बजावत हस।
चटनी बासी खाके ,जग के
भूख ल तैं ह मिटावत हस।।
जय हो किसान भइया,
जय होवय तोर।

सन्देश-

किसान भाई मन हमर धरती के सेवा करइया,अउ दुनिया के पालनहार हरे।हमन ल सदैव इंकर मन के मान सम्मान अउ दुःख सुख के खयाल रखना चाही।


– महदीप जंघेल
ग्राम- खमतराई
तहसील-खैरागढ़
जिला-राजनांदगांव(छ.ग)

No Comments
  1. Anonymous says

    बहुत अच्छा

  2. रामलाल साहू says

    बहुत ही सुंदर रचना महदीप भाई

  3. bhagwati prasad sinha says

    अब्बड़ सुघ्घर कविता गुरुदेव

  4. Surya Sahu says

    Sugghar

  5. अशोक जंघेल says

    किसान मन के हाड़तोड़ मेहनत ला दर्शाय के अब्बड़ सुघ्घर प्रयास करे हस महदीप ,गाड़ा गाड़ा बधाई

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