मन करता है कुछ लिखने को
जब भी सत्य के समीप होता हूँ,
असत्य को व्याप्त देखता हूँ ,
शब्द जिह्वा पर ही रुक जाते हैं,
मन करता है…..कुछ लिखने को ।।
वाणी से गरिमा गिरने लगती है,
लज्जा पलकों से हटने लगती है ,
विकारी दृष्टि लगने लगती है, तब..
मन करता है…..कुछ लिखने को ।।
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अंधानुकरण को स्वतःअपनाती,
नई पीढ़ी को व्यसनरत देखता हूँ,
खोंखला होता भावी देश देखता हूँ,
मन करता है…..कुछ लिखने को ।।
सपनों में दबता बचपन दिखता ,
सपनों में टूटता वयी दिखता ,
कहने को बहुत कुछ लगता, तब…
मन करता है…..कुछ लिखने को ।।
©अमित कुमार दवे,खड़गदा
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद