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मनीभाई नवरत्न की १० कवितायेँ

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हाय रे! मेरे गाँवों का देश -मनीभाई नवरत्न

हाय रे ! मेरे गांवों का देश ।
बदल गया तेरा वेश।

सूख गई कुओं की मीठी जल ।
प्यासी हो गई हमारी भूतल ।
थम गई पनिहारों की हलचल ।
क्या यही था विकास का पहल ?
क्या यही है अपना प्रोग्रेस ?
हाय रे! मेरे गांवों का देश ।

भूमि बनती जा रही बंजर ।
डीडीटी यूरिया का है असर ।
कृषि यंत्र बना रहे बेकार के अवसर ।
क्या यही है विकास का सफर?
हम हार चुके अपना रेस ।
हाय रे !मेरे गांवों का देश ।

सुबह ने मुर्गे की बांग भूली।
और शाम नहीं अब गोधूलि ।
पेड़ भी कट रहे जैसे गाजर-मूली ।
गांव का विकास बना सचमुच पहेली ।
क्या यही है भावी पीढ़ी को संदेश।
हाय रे !मेरे गांवों का देश।

manibhainavratna
manibhai navratna

-मनीभाई नवरत्न

पैसा क्या है ?

पैसा क्या है ?
उत्तर पाने के लिए
जाओ सन्यांसी के पास
तो कहेंगे – पैसा मोह है , माया है ।
दुनिया को जिसने खुब भरमाया है ।

पर आपने ये भी सुना ही होगा
कि यह,
शेयर होल्डर्स के लिए कंपनी के शेयर हैं.
स्ट्रगलर के लिए संघर्ष के समय डेयर है.

कामगारों के लिए टपकती माथे की पसीना है।
बीमारों के लिए आगामी घड़ियों का जीना है॥

वेश्याओं के लिए अपने आबरु की दाम है ।
शराबियों के लिए , छलकता हुआ जाम है ।

व्यापारियों का ये पल पल का हिसाब है ।
याचकों के लिए ये राम नाम की जाप है ।

एक बाप के लिए जवान बेटी की डोली है ।
दीवालियों के लिए नीलाम घर की बोली है ।

पर सबकी बात कितनी छोटी है ।
बड़ी और सबसे सच्ची
ये तो भूखे के लिए रोटी है।

मनीभाई ‘नवरत्न’,छत्तीसगढ़

जलते हैं दिये

सच्चाई की जीत लिए ।
खुशियों की जीत लिए ।
जलते हैं यह दिये ,
दीपावली के लिए ।
दुनिया की Darkness, Light  हो ।
हर जगह freshness bright  हो ।
और लाइट हो रोशनी से जिये।
जलते हैं यह दिये…..
प्रकाश बंट कर भी कम नहीं होती
यह जीने का मतलब है ।
प्रसाद बांट कर भी कम नहीं होती
यही जीने का मतलब है ।
हर चीज मिल बांट कर खाएं
जलती दीपक हमको यही बताए
जान ले प्रिये मान ले प्रिये
जलते हैं यह दिये…..
तेरी आंगन कभी सुनी ना हो ।
तेरी उन्नति दिन रात चौगुनी हो ।
लक्ष्मी मां की तुझ पर हो कृपा
रहे ना कभी तुझ पर वह खफा ।
अबकी दिवाली तेरे जख्मों को सीये।
जलते हैं यह दिये …..

-मनीभाई ‘नवरत्न’

मत हो उदास

जिन्दगी अभी तू, मत हो उदास।

छूना है तूम्हें ,सारा आकाश।।

1.

जुड़ेंगे तेरे भी, नसीब के धागे।
आसान नहीं पल, मंजिल से आगे।
बदकिस्मती हर दिन होती नहीं पास।

जिन्दगी अभी तू, मत हो उदास।

2.

लाया नहीं कुछ तो, खोना क्या?
बेवजह किस बात पे ,रोना क्या?
हंस ले गा ले जरा, जब तक सांस।

जिन्दगी अभी तू, मत हो उदास।

-मनीभाई नवरत्न

अब यही मंजिल

ना कोई परवाह ना कोई डर ।
तेज रफ्तार में है ,यह सफर ।
जिंदगी का यह मस्ती है ।
बनती है अब हर खुशी ।

यहां हर पल सुबह हर पल में शाम है ।
यहां पल पल में काम ,चैन और आराम है ।
करते हैं जो मन चाहे वही अपना ले ।
कुछ पल ले मजा और खुद को दफना ले ।
अब यही मंजिल और यही अपना घर ।।

एक पल के लिए भी हमको फुर्सत नहीं ।
कहीं पर रुक जाना हमारी कुदरत नहीं ।
फिर भी इंतजार रहता है क्या याद ना आता है ?
कब से पलक बिछाएं मां की नजर ।।

क्या ऐसा होता है ?तेरे लिए जीना।
खाना तो कम होता ज्यादा होता पीना ।
हालत तेरी होता पस्त है ।
आदत तेरी बड़ी सख्त  है ।
क्या करें जवानी कमबख्त है ।
ना रखें किसी की खबर।।।

 मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

सही कहते हैं

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वह कहते हैं हमें ,हम को एक होना है।
अपने विचारों से कर्मों से नेक होना है।

जातीयता और क्षेत्रीयता से ऊपर उठना है।
आतंक और नक्सल के खिलाफ जीतना है।

हर संकट की घड़ी में , हौसला रखना है।
गुलामों की जंजीरों में ,न सोना है ।

अमीरी गरीबी की खाई को भरना है।
हाथ से हाथ मिला कर विकास करना है ।

जन जन की अशिक्षा को दूर करना है ।
हम हर भारतवासी को स्वस्थ रहना है ।

गांव कस्बे तक बिजली पहुंचानी है ।
हर प्यासों की प्यास बुझानी है ।

यह सब जो कहते हैं ,बिल्कुल सही कहते हैं।

मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

करले योग

करले योग ,करले योग ,ए दुनिया के लोग ।
करले योग ,करले योग, रहना है अगर निरोग।

यूं तो जिंदगी का ठिकाना नहीं ।
फिर हम कही , जमाना कहीं ।
जब तक जीना है, सुख से जीना है ।
सुख के लिए तू मत करना भोग।।

यहां की हर चीज पर तेरा अधिकार है ।
पर मन में तेरा अज्ञान के अंधकार है ।
योग की शक्ति से ज्ञान की ज्योति जला ।
योग का ज्ञान से बनता है ऐसा संजोग ।।

 मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

सबका भगवान वही

सुख के क्षण में ,चाहे ना हो एक ।
पर दुख के क्षण सब होते नेक।
चाहे अमीर देख,  चाहे गरीब देख।
दुख में रब को सब याद करते ।
सच्चे मन से फरियाद करते।
कोई ना छोटा रहता कोई ना बड़ा रे।
फिर आपस में तू कब से बिगड़ा रहे ।
सबका दिल वही और धड़कन एक ।
गरीब भाई तेरा कब से भूखा है ?
उसका मन भी आज दुखा है।
स्वामी जी कह गए दरिद्रनारायण है ।
जो सेवा करे वही धर्मपरायण है।
सबका पेट वही और भूख एक ।
आज तेरे पास दौलत है ।
सब मालिक की बदौलत है।
मालिक तुझमें भी ,मालिक मुझमें भी
फिर काहे झूठे धन की लत है ।
सबका भगवान वही और ध्यान एक।

-, मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

उठ जा तू पगले

पत्थर में तू पारस है ।
तुझमें वीरता,साहस है ।
फिर क्यों मन को मारे बैठा है ,
उठ जा तू पगले ! क्यों लेटा है?

देख रात ,अभी गहराई नहीं।
है चहलपहल, तहनाई नहीं ।
फिर क्यों भय से , खुद को समेटा  है ।
उठ जा तू पगले !क्यों लेटा है ?

मत खो; अपने अभिमान को।
दांव पर ना लगा सम्मान को ।
भारत मां का तू स्वाभिमानी बेटा है ।
उठ जा तू पगले !क्यों लेटा है ?

अभी सांसो की रफ्तार थमी नहीं
लहु की धार नब्ज़ में  जमी नहीं ।
फिर क्यों चुप है , किस बात पर ऐंठा है ?
उड़ जा तू पगले !क्यों लेटा  है?

हर खेल में जीतो

जीतो रे जीतो रे जीतो जीतो हर खेल में जीतो।
हर दिल को जीतो ,जीत आखिर जिंदगी ही तो ।
कोई ना आगे तेरे टिक सके।
जलवा ना कभी तेरा मिट सके।
ऐसा दम लगा दो,  बाजी ना कोई तेरा छीन सके ।
हर दांव को जीतो ,हर बार में जीतो ।।
आखिर जिंदगी…
वानरों ने जैसे जीता लंका है,
फिर तुमको क्या शंका है?
एकजुट जब हो जाओगे
फिर जीत का डंका है ।
हर मन को जीतो हर पल तुम जीतो।।
 जीत आखिर… जीतो रे. . 

 मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

कहलाए वही तो बाजीगर

आंखें जिसकी हो अपलक।
सीखने की हो जिसमें ललक।
अरे! वही तो मैदान मारता है  ।
अपने किस्मत को संवारता है ।
जो रहे निर्भर अपने हाथों पर
वही इनकी लकीरें निखारता है।।

समय का रहे जिसे ध्यान ।
रहता नहीं वो कभी गुलाम ।
हर दांव  उसकी बाजी में ।
चाहे दुनिया रहे नाराजी में ।
कहलाए वही तो बाजीगर
जो वक्त बिताये कामकाजी में ।।

जो मुश्किलों में खुश दिखे
हर  ठोकर से कुछ सीखें ।
वही छाते हैं इस जहां में
नाम लिखते हैं आसमां में।
जलते रहते हैं हर किसी के
दिली दुआओं के कारवां में।।
 
मनीभाई नवरत्न, छत्तीसगढ़

चलते फिरते सितारे- मनीभाई

ये चलते फिरते सितारे
धरती पे हमारे।
आंखों में है रोशनी
बातों में है चाशनी
तन कोमल फूलों सी
खुशबू बिखेरेते सारे।।
ये चलते फिरते सितारे…

ना छल है
ना छद्म व्यवहार
बड़ी मोहक है
इनकी संसार।
हम ही सीखे हैं,
खड़ा करना
आपसे में दीवार।
देख लेना एक दिन
ला छोड़ेंगे इन्हें भी
जहां होंगे बेसहारे।।
ये चलते फिरते सितारे…

किलकारियों संग 
हंसतीे खेलती
ये प्रकृति सारी।
हमने तो बस घाव दिए हैं
दोहन, प्रदूषण, महामारी।
स्वर्ग होता प्रकृति
इन बच्चों के सहारे।
ये चलते फिरते सितारे…

ये रब के दूत
ये  होंगे कपूत-सपूत
आंखों से तौल रहे
हमारी करतूत।
फल भी देंगे हमको
पाप पुण्य का
जो भी कर गुजारे।
ये चलते फिरते सितारे…

मनीभाई नवरत्न

वरिष्ठता – मनीभाई

वैसे तो लगता है
सब कल की बातें हो,
मैं अभी कहां बड़ा हुआ?
पर जो अपने बच्चे ही,
कांधे से कांधे मिलाने लगे।
आभास हुआ
अपने विश्रांति का।
उनकी मासुमियत,
तोतली बातें
सियानी हो चुकी है।
वो कब
मेरे हाथ से
उंगली छुड़ाकर
आगे बढ़ चले
पता ही नहीं चला।
मैं उन संग
रहना चाहता हूं,
खिलखिलाना चाहता हूं।
पर क्यों ?
वो मुझे शामिल नहीं करते
अपने मंडली में।
जब भी भेंट होती उनसे,
बाधक बन जाता,
उनकी मस्ती में।
शांति पसर जाती
मेरे होने से
जैसे हूं कोई भयानक।
अहसास दिलाते वो मुझे
मेरे वरिष्ठता का।
मैं चाहता हूं स्वच्छंदता
पर मेरे सिखाए गए उनको
अनुशासन के पाठ
छीन लिया है
हमारे बीच की सहजता।
मैंने स्वयं निर्मित किये हैं
जाने-अनजाने में
ये दूरियां।
संभवतः ढला सकूं
अपना सूरज।
और विदा ले सकूं
सारे मोहपाश तोड़ के।
जिससे उन्हें भी मिलें,
अपना प्रकाश फैलाने का अवसर।


✒️ मनीभाई’नवरत्न’,छत्तीसगढ़

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