मज़दूर
कैसे लिखूं मैं तेरी परिभाषा?
तेरा श्रम देख आंखों में पानी आता।
कड़कती धूप, हड्डियों को चीरती सर्दी में भी
तेरे श्रम को विराम मिल ना पाता।
तेरे खून पसीने से सवरी ये सारी धरा,
न होता अगर तू, तो शायद ही कोई
मकान या कारखाना बन पाता।
तेरे तन पे लिपटी मिट्टी का एक- एक कण,
भरता तेरे कठिन श्रम का दम।
सुबह सवेरे जब देखती हूं
खड़े लाइन में लगे मजदूर बंधुओं को,
तो अपने ज़मीर पर एक बोझ सा हो जाता।
दुआ जब भी मांगने बैठती हूं,
वंदन तेरे श्रम को, नमन से
शीश खुद की झुक जाता।
तेरी रूखी सूखी रोटी देख कर,
मेरे मन का हर गरूर टूट जाता।
है वक्त की पुकार,
चाहे साहूकार हो या सरकार,
सब मिलकर लगाएं गुहार।
मनरेगा जैसी सकीमें ,
और भी करो तैयार ।
न कोई दे कम वेतन,
न कोई करे तुम्हारा शोषण।
फर्ज़ यह निभाना है,
कर्ज़ हर मज़दूर का चुकाना है।
ऋषि विश्वकर्मा की शुभाशीष का हो आग़ाज़,
हर मज़दूर के जीवन में हो हर्ष और उल्लासI
मौलिक रचना
अरुणा डोगरा शर्मा
मोहाली
8728002555
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कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद